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नवरात्र स्पेशल: 75 साल की शार्प शूटर दादी प्रकाशो और चंद्रो की कहानी

उत्तर प्रदेश के बागपत के जौहड़ी गांव की ग्रेनी सिस्टर्स की पहचान आज अचूक निशानेबाज के रूप में होती है.

Kinshuk Praval

(नवरात्र के मौके पर नवरात्र की पूजा विधि बताने या देवी की प्रार्थना के बजाय आपको मिला रहे हैं कुछ जागृत देवियों से, इन महिलाओं ने ऐसा कुछ किया है कि जो जीवन में शक्ति की मिसाल बनी हैं )

ढलती उम्र, कमजोर जिस्म और कमजोर आंखें भी उन्हें अचूक निशानेबाज बनने से नहीं रोक सकी. चंद्रा और प्रकाशो 75 साल की उम्र में भी अपने निशाने से बड़े-बड़े निशानचियों को दांतो तले उंगली दबाने पर मजबूर कर सकती हैं.


उत्तर प्रदेश के बागपत के जौहड़ी गांव की ग्रैनी सिस्टर्स की पहचान आज अचूक निशानेबाज के रूप में होती है.

प्रकाशो तोमर की उम्र आज 75 साल है. 10 साल पहले जो हाथ घर का चूल्हा जलाने, खाना पकाने, चारा काटने और गायों को चारा खिलाने के काम आते थे उन हाथों ने पिस्तौल थामी. निशाना साधने की ललक देखकर घर के भीतर और बाहर दोनों जगह उनका मजाक उड़ाया गया.

लोगों ने कहा कि बंदूक उठाई है तो करगिल चली जा तो किसी ने कहा कि बुढ़िया ने नवाबों के शौक पाल लिए. लेकिन घर और समाज के तमाम तानों के बावजूद बूढ़ी दादी के हौसले कम नहीं हुए.

निशाना साधने के लिये कड़ी मेहनत की. उसका नतीजा ये रहा कि सिर्फ यूपी ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों में भी प्रकाशो ने शूटिंग में कई गोल्ड मेडल जीते.

बात सिर्फ मेडल जीतने की नहीं थी. बल्कि, प्रकाशो ने इलाके की बेटियों के प्रति सोच को भी बदला. प्रकाशो की वजह से ही लोगों ने अपनी भी बेटियों को भी प्रकाशो बनाने का सपना देखना शुरू किया.

गांव के शूटिंग रेंज से ली ट्रेनिंग

साभार - ओपिनियन पोस्ट

प्रकाशो की जिंदगी में शूटिंग सीखने का मोड़ दस साल पहले आया. अपने पोते को निशानेबाजी सिखवाने के जौहड़ी गांव के बेसिक शूटिंग रेंज में प्रकाशो ने दाखिला दिलाया.

पोते की प्रैक्टिस के वक्त एक दिन प्रकाशो ने बंदूक उठा कर निशाना लगाया तो सब हैरत में पड़ गए. प्रकाशो का निशाना बेहद सटीक था. जिसके बाद शूटिंग के कोच राजपाल ने प्रकाशो को निशाना सीखने के लिये कहा. लेकिन, घर में सभी ने इसका विरोध किया.

दरअसल, गांव में महिलाओं को सिर्फ घर तक ही सीमित रहने की हिदायत थी. उसके बावजूद प्रकाशो रात में सबके सोने के बाद छुप-छुप कर निशाना लगाने की कोशिश करती थीं. खास बात ये रही कि इस अभ्यास में उनके साथ चंद्रो भी शामिल हो गईं. चंद्रो देवी रिश्ते में प्रकाशो की जेठानी हैं.

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रात के प्रहर में दोनों लोटे में पानी भर कर पिस्तौल की तरह हाथ उठा कर अभ्यास करती थीं जिससे कि हाथों का कांपना धीरे धीरे बंद हो जाए. दिन में रोज दादी प्रकाशो अपने पोते के साथ शूटिंग रेंज जातीं और निशानेबाजी का अभ्यास करतीं.

नियमित अभ्यास ने प्रकाशो और चंद्रो को अचूक निशानेबाज बना दिया. जिसके बाद उन्होंने निशानेबाजी की प्रतियोगिताओँ में शामिल होने का मन पक्का किया.

कई शूटिंग प्रतियोगिताओं में चंद्रो और प्रकाशो ने भाग लिया. जहां उन्हें मेडल मिला. प्रकाशो ने एयर पिस्टल .32 बोर की शूटिंग प्रतियोगिता में पुलिस के डीआईजी रैंक के अधिकारी तक को हरा दिया.

प्रकाशो के लिये ये गर्व और मुस्कान का वक्त होता था जब उनसे निशानेबाजी में पुरुष निशानेबाज भी हार जाते थे.

कई बार तो ये हुआ कि हारे हुए पुरुष निशानेबाजों ने उनके साथ फोटो खिंचवाने तक से मना कर दिया. चेन्नई, दिल्ली, चंडीगढ़ और अहमदाबाद, कोयंबटूर और यूपी में प्रकाशो ने कई वेटरन शूटिंग चैम्पियनशिप जीती.

प्रकाशो ने अब तक 200 से ज्यादा मेडल जीते हैं. राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर उन्होंने 25 मेडल जीतकर रिकॉर्ड बनाया. प्रकाशो और चंद्रो को उनकी अद्भुत प्रतिभा के लिये कई बार सम्मानित किया गया है.

साभार - ओपिनियन पोस्ट

लेकिन, इनकी उड़ान सिर्फ निशानेबाजी तक ही सीमित नहीं रही. प्रकाशो ने अपने गांव की बेटियों को भी शूटिंग चैंपियन बनाने की ठानी. घर में बने तबेले को शूटिंग रेंज में बदला और लड़कियों को निशानेबाजी सिखाना शुरू किया.

दादी प्रकाशो और चंद्रो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गांवों की बेटियों के लिए न सिर्फ प्रेरणा बनीं बल्कि बेटियों को बाहरी दुनिया में निकलने के लिए हिम्मत भी बनीं. प्रकाशो कहती हैं कि उन्हाेंने बुढ़ापे में बंदूक उठाई. ये शौक उन्हें बचपन की बजाए बुढ़ापे में लगा. जिसने उनके आत्मविश्वास को बढ़ाया.

बेटी और पोती इंटरनेशनल शूटर

साभार - ओपिनियन पोस्ट

आज प्रकाशो तोमर की बेटी सीमा तोमर और पोती रूबी तोमर इंटरनेशनल शूटर हैं. सीमा तोमर एशियाई शूटिंग चैंपियनशिप में गोल्ड और सिल्वर मेडल जीत चुकी हैं.

प्रकाशो और चंद्रो की मेहनत का ही नतीजा है कि उनके सिखाए कई बच्चे एयरलाइन्स और रेलवे की नौकरी में चुने गए. उम्र का जो पड़ाव घर की दहलीज पर आराम करने का होता है वहां प्रकाशो और चंद्रो ने अपनी लगन से नायाब पहचान बनाई.

मजबूत हौसलों ने कमजोर आंखों के बावजूद अर्जुन की तरह लक्ष्य को हासिल करने में साथ दिया. यही वजह है कि दादी प्रकाशो और चंद्रो आज पश्चिमी उत्तर प्रदेश की बेटियों के लिये रोल मॉडल हैं.