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नवरात्र स्पेशल: कृष्णा यादव और 'किसान चाची' की करिश्माई कामयाबी

नवरात्र के मौके पर ये नारी शक्ति वाकई जीवंत देवीय कहानी सी प्रतीत होती हैं

Kinshuk Praval

(नवरात्र के मौके पर नवरात्र की पूजा विधि बताने या देवी की प्रार्थना के बजाय आपको मिला रहे हैं कुछ जागृत देवियों से, इन महिलाओं ने ऐसा कुछ किया है कि जो जीवन में शक्ति की मिसाल बनी हैं )

कभी रेहड़ी-पटरी पर अचार बेचने वाली एक महिला आज 400 लोगों को रोजगार दे रही है. कभी दोस्त से 500 रुपाए उधार लेकर अपना कारोबार शुरु करने वाली इस महिला का आज 7 करोड़ सालाना का टर्नओवर है.


मजबूत हौसलों के साथ अगर ईमानदार कोशिश हो तो फिर किसी शिक्षा और पूंजी की जरुरत नहीं पड़ सकती. यही साबित किया है दिल्ली के नज़फगढ़ की अनपढ़ कृष्णा यादव ने जो कि आज चार-चार अचार फैक्ट्री की मालकिन हैं.

25 साल पहले सड़क के एक ठिकाने से की गई शुरुआत ने कृष्णा यादव को कृष्णा पिकल्स का मालिक बना दिया है. आज कृष्णा के नाम से उनका अचार बिकता है. लेकिन ये कामयाबी चुनौतियों और संघर्ष की हर राह से गुजर कर यहां तक पहुंची है.

कृष्णा यादव को राष्ट्रपति से सम्मान भी मिल चुका है

दरअसल दिल्ली आने से पहले कृष्णा अपने परिवार के साथ बुलंदशहर में रहती थीं. पति गोवर्धन की नौकरी अचानक छूट गई जिसके बाद उन्होंने कर्ज लेकर कारोबार शुरू किया. लेकिन कारोबार भी ठप हो गया.

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हालात इतने बिगड़े की मकान तक बिक गया. खराब आर्थिक स्थिति की वजह से काम की तलाश में पति को दिल्ली आना पड़ा. लेकिन यहां भी भाग्य ने साथ नहीं दिया और 3 महीने तक कोई काम नहीं मिला. उसके बाद जैसे ही कृष्णा का दिल्ली आना हुआ तो गोवर्धन को फार्महाउस में नौकरी मिल गई.

पति-पत्नी फार्महाउस में काम करने लगे. छोटी सी जमीन के हिस्से पर कृष्णा सब्जियां उगाया करती थीं. लेकिन मंडी में सब्जी के दाम कम मिलते थे. ऐसे में कृष्णा ने सब्जी से अचार बनाने के बारे में सोचा.

लोगों ने कृष्णा को कृषि विज्ञान की अचार बनाने की ट्रेनिंग के बारे में बताया. कृष्णा ने वहां से 3 महीने की ट्रेनिंग ली और अचार की कई किस्में बनाना सीखा. इसके बाद कृष्णा ने दो महिलाओं के साथ अचार बनाने का काम शुरु किया.

नज़फगढ़ में सड़क के कोने पर टेबल लगा कर कृष्णा ने अचार बेचना शुरू किया. इसके बाद वक्त ने ऐसी पलटी खाई कि कृष्णा के अचार का स्वाद लोगों की जुबान पर जायका बन गया.

कृष्णा के अचार की बढ़ती डिमांड के बाद श्रीकृष्णा पिकल्स के नाम से फैक्ट्री लगाई. एक कमरे में दो महिलाओं के साथ शुरू किया और फैक्ट्री की तरक्की ऐसी बढ़ी कि जल्द ही श्रीकृष्णा पिकल्स ब्रांड बन गया.

आज कृष्णा की अचार बनाने की चार फैक्ट्रियां हैं तो वो अचार-मुरब्बे के 152 प्रोडक्ट बनाती हैं. कृष्णा की कंपनी की वजह से तकरीबन 400 महिलाओं को रोजगार मिला हुआ है.

कृष्णा अपने यहां काम करने वाली महिलाओं के लिए न सिर्फ एक मालकिन हैं बल्कि प्रेरणा भी हैं. कृष्णा की कामयाबी को खुद पीएम ने भी सराहा है और उन्हें सम्मानित भी किया.

25 साल बाद आज भी कृष्णा उसी पुरानी सड़क पर अपने अचार बेचती हैं जहां उन्होंने संघर्ष की शुरुआत की थी.

मुज़फ्फरपुर की मशहूर 'किसान चाची'

लेकिन सिर्फ किसानी की कहानी कृष्णा तक ही सीमित नहीं है. एक और कम पढ़ी-लिखी महिला की मेहनत और लगन ने उन्हें किसान चाची का तमगा दिया है.

ये हैं बिहार के मुज़फ्फरपुर की राजकुमारी देवी जिन्हें लोग प्यार से किसान चाची बुलाते हैं. किसान चाची साइकिल से गांव-गांव घूम कर लोगों को किसानी के गुर सिखाती हैं. किसान चाची की खासियत ये है कि वो सिर्फ मिट्टी की सुगंध से ही फसल की तकदीर बता सकती है.

बिहार के मुख्यमंत्री 'किसान चाची' को सम्मानित कर चुके हैं

लेकिन साथ ही किसान चाची भी 25 तरह के अचार-मुरब्बे बनाती हैं हैं और देश के महानगरों में बेचती हैं.

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बिहार सरकार ने राजकुमारी देवी की प्रतिभा से कायल हो कर उन्हें किसानश्री अवार्ड से सम्मानित किया है. खुद सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी किसान चाची की बागवानी देखने आ चुके हैं.

अहमदाबाद में एक मेले में किसान चाची के उत्पाद देखकर तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी प्रभावित हुए थे. उन्होंने किसान चाची का वीडियो गुजरात सरकार की वेबसाइट में बतौर प्रेरणा लगवाया था.

ढाई बीघा जमीन से शुरू हुई किसान चाची बनने का सफर

राजकुमारी देवी के 'किसान चाची' बनने की कहानी ढाई बीघा जमीन से शुरू होती है. 1974 में राजकुमारी देवी की शादी किसान परिवार में हुई थी. भाइयों के बीच बंटवारे के बाद उनके परिवार के हिस्से में ढाई बीघा जमीन आई.

राजकुमारी देवी ने खेत में अपने पति का हाथ बंटाया. हालांकि खेतों में उनके काम करने पर उस वक्त लोगों ने आलोचना भी की. क्योंकि उस वक्त खेत में काम करने को लेकर पुरुष प्रधान सोच हावी थी. लेकिन राजकुमारी देवी ने समाज के दबाव की परवाह नहीं की और खेतों में काम करने का फैसला नहीं बदला.

राजकुमारी देवी ने पारंपरिक तंबाकू की खेती को छोड़कर कभी गेहूं उगाया तो कभी धान बोया. मौसम के हिसाब से उन्होंने अपनी जमीन का इस्तेमाल किया. फल और सब्जियों की पैदावार ने उनका हौसला बढ़ाया. धीरे-धीरे उन्होंने अचार-मुरब्बे बनाना भी शुरू कर दिया. राजकुमारी देवी की ख्याति भी समय के साथ फैलने लगी.

लोग उनसे किसानी के गुर सीखने आने लगे. वहीं किसान चाची ने गांवों की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए महिला मंडल का गठन किया. वो महिलाओं को न सिर्फ खेती के तरीके बताती हैं बल्कि अचार-मुरब्बा बनाना भी सिखाती हैं.

नारी शक्ति की मिसाल हैं दोनों महिलाएं

तकरीबन तीन सौ महिलाओं को सेल्फ हेल्फ समूहों से जोड़ा है. इन महिलाओं को खेती, पशुपालन और मछली पालन की ट्रेनिंग दिलाकर आर्थिक मजबूती दी है क्योंकि सेल्फ हेल्प समूहों की मदद से महिलाओं को अपना रोजगार शुरू करने के लिए सरकार से मदद और बैंक से लोन तक मिल जाता है.

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इलाके के लोग उन्हें प्यार से 'किसान चाची' कह कर बुलाते हैं. उनके प्रयासों की वजह से आज तीन सौ महिलाएं आत्मनिर्भर हो सकी हैं. मेट्रिक पास किसान चाची ने अपनी बेटियों को भी उच्च शिक्षा दिलाई है. उनकी बेटियां सुप्रिया और सोनाली एमसीएम पास हैं.

चाहे बात कृष्णा यादव की हो या फिर किसान चाची के नाम से मशहूर राजकुमारी देवी की, दोनों ही देश की उन महिलाओं के लिए मिसाल हैं जो अभाव और समाजिक दबाव के चलते अपने सपनों को पूरा करने की हिम्मत नहीं जुटा पाती हैं. नवरात्र के मौके पर ये नारी शक्ति वाकई जीवंत देवीय कहानी सी प्रतीत होती हैं.