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भारत में इस्लामी कट्टरता की जड़ें गहरी जमी हैं

कट्टरता फैला कर भारतीय मुसलमानों को आतंक में झोंकने की कोशिश होती है.

Tufail Ahmad

मुसलमानों में कट्टरता भारत में नहीं किसी और देश में बढ़ रही होगा. ऐसा कह कर हमारे यहां कई लोग इस सच से आंखे मूंद लेते हैं. लेकिन हकीकत यह है कि भारत में इस्लामी कट्टरता का मुद्दा पिछले कुछ समय से जोर पकड़ रहा है.

इस्लामी कट्टरता की गंभीरता को समझने वाले लोग इससे निपटने के सुझाव भी दे रहे हैं.


पेश है भारत में फैलते कट्टरपंथ पर तुफैल अहमद की चार लेखों की एक श्रृंखला जिसमें वे ऐसी परिस्थितियों और परिदृश्यों का जायजा ले रहे हैं जिनके कारण महाराष्ट्र, हैदराबाद, केरल और समूचे भारत में युवाओं को कट्टरपंथी बनाया जा रहा है. पेश है इस श्रृंखला का पहला  हिस्सा.

मीडिया रिपोर्टों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि भारत में पिछले तीन सालों में 350 के आसपास लोग इस्लामी कट्टरता के शिकार हुए हैं. इनमें वो लड़के शामिल हैं जो या तो सीरिया जले गए या फिर उन्हें जाने से ठीक पहले रोक दिया गया या जिन पर खुफिया एजेंसियों की नजर है. यह छोटा आंकड़ा लग सकता है लेकिन इसमें जम्मू और कश्मीर को शामिल नहीं किया गया है.

दर्जनों भारतीय मुसलमानों को इस्लामिक स्टेट के जिहाद में शामिल होने से भले ही रोक लिया गया हो लेकिन यह सच है कि 2014 के बाद से आईएस के प्रभाव में कमी नहीं आई है.

कट्टरता फैला कर भारतीय मुसलमानों को आतंक में झोकने की कोशिश होती है. इसके लिए आधार बनाया जाता है इस्लामी शिक्षाओं को और उस असंतोष को, जिसे इस्लामी प्रचारक, उर्दू मीडिया और इस्लामी मीडिया हवा देते हैं. भारत में कट्टरता हमेशा से रही है जिसके कारण कई बार बम धमाके हुए हैं.

लेकिन यह भारत की सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती बन सकती है, इस बात का एहसास 2014 के मध्य में उस वक्त हुआ जब चार युवा मुंबई से इराक और सीरिया के लिए रवाना हुए. इन्हीं मे से एक था अरीब मजीद जो बाद में तुर्की से लौट आया था. सीरिया में घायल होने के बाद उसे इलाज के लिए तुर्की लाया गया था.

आखिर कौन है जिम्मेदार?

तब से अब तक, लगभग एक दर्जन राज्यों में कट्टरता के कारण कई घटनाएं देखी गई हैं जिनमें महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, गुजरात, असम, पंजाब (खालिस्तान समर्थक), जम्मू कश्मीर, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश शामिल हैं.

इस साल गणतंत्र दिवस से पहले, कम से कम 14 संदिग्ध गिरफ्तार किए गए. जून में हैदराबाद से पांच युवक गिरफ्तार किए गए और फिर जुलाई में दो और गिरफ्तारियां हुईं. आपस में एक दूसरे को जानने वाले लगभग दो दर्जन युवा जुलाई में केरल से सीरिया के लिए रवाना हुए.

हमारे लिए खुशी की कोई बात नहीं है क्योंकि 2014 से अब तक हमारे देश में कट्टरता बढ़ते ही जा रही है.

दरअसल राजनीतिक मजबूरी के चलते विश्लेषक जिहादी आतंकवाद की विचारधारा को नजरअंदाज कर देते हैं. ऐसे में सबसे अच्छा शॉर्टकट यही है कि कट्टरता के लिए इंटरनेट को दोष दे दो. लेकिन हकीकत कुछ और है.

20वीं सदी में जब इंटरनेट नहीं था, तब लाहौर की गलियां बहुत हद तक वैसी ही दिखती थी जैसी पेरिस की गलियां दिखाई देती हैं. दिसंबर 1926 में स्वामी श्रद्धानंद की अब्दुर रशीद ने हत्या कर दी. बिना किसी संगठन या गिरोह के काम करने वाला शायद पहला जिहादी रशीद ही था. इस हत्या की वजह 'सत्यार्थ प्रकाश' नाम की किताब में पैगंबर मोहम्मद की आलोचना बताया गया.

तीन साल बाद 1929 में लाहौर में ही राजपाल पब्लिशर्स के राजपाल को उन्हीं वजहों से मार दिया गया जिनके कारण शार्ली एब्दो के संपादकों की हत्या की गई थी. इस वारदात को गाज़ी इल्मुद्दीन ने अंजाम दिया था.

इस्लामिक स्टेट से जुड़े संदिग्धों को कानून मदद की पेशकश करके असदुद्दीन ओवैसी कोई नई बात नहीं कर रहे. तब जिन्ना ने अदालत में गाज़ी इल्मुद्दीन की पैरवी की थी. यह नहीं, शायर मुहम्मद इक़बाल ने भी गाज़ी की तारीफ की थी.

कट्टरता की जड़ें गहरी

सुन्नी इस्लाम की बरेलवी विचारधारा  का साथ पा चुके सूफीवाद को शांतिपूर्ण विचारधारा के तौर पर पेश किया जाता है. 1936 में चकवाल (जो अब पाकिस्तान में है) के एक सूफी मुरीद हुसैन के सपने में पैगंबर आए थे. जिसके बाद उसने डॉ राम गोपाल की हत्या की थी. हत्या का कथित कारण था कि गोपाल ने एक जानवर का नाम पैगंबर के नाम पर रख दिया था.

फोटो: आसिफ खान/फर्स्टपोस्ट हिंदी

अमेरिकी राज्य टेक्सस के फोर्ड हुड में 2009 में अपने साथियों की गोली मार कर हत्या करने वाला मेजर निदाल हसन पहला मुस्लिम सैनिक नहीं था जो कट्टरपंथी बन गया हो.

1937 में भारतीय सेना के सैनिक मियां मोहम्मद ने कराची में एक हिंदू सैनिक की गोली मार कर हत्या कर दी थी. 1942 में बाबू मेराजुद्दीन ने ईद उल अजहा पर होने वाली कुरबानी पर सवाल उठाने के लिए अपने सिख अफसर मेजर हरदयाल सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी थी.

गुआंतोनामो बे जिहादी कैदियों के लिए पहली विदेशी जेल नहीं है. अकेले दम पर हमला करने वालों को ब्रिटिश अफसर अंडमान द्वीप पर भेजा करते थे.

अबु बकर अल बगदादी का खुद को मुसलमानों का खलीफा घोषित करने से पहले ही मुंबई के चार मुसलमान लड़के भारत छोड़ सीरिया के लिए रवाना हो चुके थे. लेकिन जल्द ही बगदादी की अपील युवाओं के दिमागों में घर करने लगी जिसमें उसने सभी मुसमलानों से सीरिया और इराक में आईएस के इलाके में हिजरा करने (आ जाने) को कहा था.

हिजरा शब्द का इस्तेमाल पैगंबर के मक्का से मदीना जाने के लिए किया जाता है जहां बहुत सारे लोगों ने इस्लाम कबूल किया था. मुसलमानों के दिगाम में इस शब्द का विशेष अर्थ है. पिछले तीन साल में भारत में हिजरा के चलन को देखें तो दो बातें उभर कर सामने आती है.

पहली: लंदन, कतर, यूएई, अफगानिस्तान-पाकिस्तान, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले भारतीय मुसलमान युवा सीधे सीरिया जा रहे हैं आईएसआईएस में भर्ती होने के लिए.

दूसरी: कुछ युवा सीधे भारत से आईएस में शामिल होने के लिए अफगानिस्तान, ईरान और कुछ पश्चिमी एशियाई देशों की राजधानियों को जा रहे हैं या उन्हें नागपुर, हैदराबाद से विमान पर नहीं चढ़ने दिया गया या कोलकाता में रोका गया.

सतर्क रहना जरुरी

जुलाई 2015 में गृह मंत्रालय की तरफ से तैयार नोट में कहा गया है: 'मौजूदा खुफिया जानकारी के आधार पर, बहुत ही कम संख्या में भारतीय युवा इराक और सीरिया जाकर आईएसआईएस में भर्ती हुए हैं. इसके अलावा खुफिया/सुरक्षा एजेंसियों ने सीरिया/इराक जाने की कुछ युवाओं की योजनाओं को नाकाम कर दिया.'

फोटो: आसिफ खान/फर्स्टपोस्ट हिंदी

इस रिपोर्ट में बताया गया कि कुछ लड़कों की अब काउंसलिंग हो रही हैं और उन्हें निगरानी में रखा गया है. आईएस से सहानुभूति रखने वाले कुछ लोगों पर भी सुरक्षा एजेंसियां नजर रख रही हैं.

28 सितंबर 2015 को सेंटर फॉर लैंड वारफेयर स्टडीज ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसके अनुसार जिन लोगों पर नजर रखी जा रही है उनकी संख्या 250 है. जुलाई 2016 के अंत तक, भारत के अलग अलग राज्यों में जिन युवकों को आईएस समर्थक कट्टरता के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया है, उनकी संख्या कम से कम 60 है.

मीडिया रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि भारत से कम से कम 30 मुसलमान सीरिया और इराक में मौजूद हो सकते हैं और कुछ भारतीय पाकिस्तान-अफगानिस्तान के इलाके में हैं.

इस्लामी कट्टरता के बुनियादी कारण और जिहाद को सही ठहराए जाने की जड़ें इसकी शिक्षा, इस्लामी इतिहास के महिमामंडन और असंतोष को भड़काने में जमीं हैं.

हमें यह भी ध्यान में रखना होगा कि भारत में जिहादी खतरा पश्चिम एशिया में जिहादी आंदोलन के उभार और हालात को स्थिर करने में बड़ी ताकतों की नाकामी से भी पैदा होता है. जब तक वहां हालात स्थिर नहीं हो जाते भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को सतर्क रहना होगा.