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लाखों की नौकरी छोड़ी, आज भरते हैं 400 गरीबों का पेट

नारायणन कृष्णन का अक्षय ट्रस्ट करीब 12 लाख बेघर और बेसहारा लोगों का पेट भरता है

FP Staff

ऐसे लोग आपने कम ही देखें होंगे जिन्होंने गरीबों का पेट भरने के लिए अपनी लाखों रुपए की नौकरी तक छोड़ दी हो. लेकिन इस दुनिया में आज भी नारायणन कृष्णन जैसे लोग मौजूद हैं.

नारायणन कृष्णन एक अवार्ड-विनिंग शेफ हैं और फाइव-स्टार होटल में मोटी सैलरी पर काम किया करते थे. लेकिन कहते हैं न जीवन में एक पल ऐसा जरूर आता है, जिससे इंसान का जीवन बदल जाता है.


वो दिन जिसने बदल दिया जीने का ढंग

नारायणन कृष्णन के साथ भी एक दिन ऐसा ही कुछ हुआ, जिसने उन्हें एक शेफ से 'गरीबों का मसीहा' बना दिया. नारायणन ने सीएनएन से कहा कि वह 2002 में मदुरै शहर के एक मंदिर में गए थे, जहां उन्होंने एक व्यक्ति को पुल के नीचे बैठे देखा था.

उस शख्स की दयनीय स्थिति को देख उन्हें बड़ा झटका लगा और एक हफ्ते के भीतर उन्होंने नौकरी छोड़ दी और घर लौट आए. इसके बाद से उन्होंने उस आदमी को खाना खिलाना शुरू किया और यहीं से फैसला कर लिया कि वह अपनी पूरी जिंदगी यही काम करेंगे.

आज भी है जज्बा

कृष्णन कहते हैं कि मानसिक रूप से पीड़ित या फिर जो लोग खुद का ख्याल नहीं रख सकते, उनकी मदद करने का जज्बा आज भी उनके अंदर है. कृष्णन ने गरीबों की मदद के लिए 2003 में अक्षय ट्रस्ट नाम के एनजीओ की स्थापना की. वो भारत के करीब 12 लाख बेघर और बेसहारा लोगों का पेट भरते हैं.

कृष्णन के दिन की शुरुआत सुबह करीब चार बजे होती है. वो और उनकी टीम मिल कर अपनी वैन के जरिए करीब 125 मील की दूरी तय करती है और प्रतिदिन कम से कम 400 लोगों का पेट भरती है.

खाने के साथ-साथ हेयर कट भी है फ्री

कृष्णन पुल के नीचे, मंदिरों या सड़कों पर रह रहे बेसहारा लोगों को गर्म खाना खिलाते हैं. यही नहीं कृष्णन हेयर कटिंग में भी माहिर हैं और कम से कम आठ हेयर स्टाइल्स जानते हैं. ऐसे में वो हमेशा अपने साथ एक कंघा, कैंची और रेजर रखते हैं और इन बेघर लोगों को खाना खिलाने के साथ उनकी शेविंग और कटिंग भी फ्री में करते हैं.

घर है पर फिर भी किचन में सोते हैं

गरीबों का पेट भरने के लिए कृष्णन को रोजाना करीब 20 हजार रुपए का खर्च उठाना पड़ता है. हालांकि उन्हें डोनेशन के जरिए पैसा जरूर मिलता है, लेकिन उससे सिर्फ महीने में करीब 22 दिन ही काम चल पाता है. बाकी के दिनों में भी काम चलाते रहने के लिए वो अपने घर का रेंट तक गरीबों का पेट भरने में झोंक देते हैं और खुद अक्षय ट्रस्ट के किचन में अपने कुछ साथी कर्मचारियों के साथ सोते हैं.