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दिल की बीमारियों से बचना है तो मीट खाना बंद करें

शाकाहारी खानपान से इस जोखिम से बचा जा सकता है.

Maneka Gandhi

सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल लैंसेट में 1982 से ही कई डॉक्टर एक थ्योरी को समझा रहे थे कि शरीर में ज्यादा आयरन दिल की बीमारी के लिए एक जोखिम साबित हो सकता है.

हालांकि, 1992 में फिनलैंड के डॉक्टरों ने पांच साल की रिसर्च के बाद पाया कि शरीर में मौजूद आयरन दिल की बीमारियों या हार्ट अटैक की दूसरी बड़ी वजह है. इसकी सबसे बड़ी वजह स्मोकिंग है.


इस स्टडी में 42 से 60 साल उम्र वाले पूर्वी फिनलैंड के 1,931 लोग शामिल थे. पूर्वी फिनलैंड के लोगों में पूरी दुनिया में कोरोनरी हार्ट डिसीज के सबसे ज्यादा मामले पाए जाते हैं.

शोधकर्ताओं ने शरीर में मौजूद आयरन के लिए सीरम फेरिटिन की मात्रा का आकलन किया. उन्हें पता चला कि खून में फेरिटिन की हर 1 फीसदी बढ़त से हार्ट अटैक का खतरा 4 फीसदी बढ़ जाता है.

खून की एक लीटर मात्रा में 200 माइक्रोग्राम से ज्यादा फेरिटिन का होना इस जोखिम को दोगुना कर देता है. तब तक मेडिकल साइंस में कहा जा रहा था कि 100-400 माइक्रोग्राम तक फेरिटिन का होना आमतौर पर सुरक्षित माना जा सकता है.

इस स्टडी की दुनियाभर में चर्चा हुई. अमेरिकी हार्ट एसोसिएशन के जर्नल सर्कुलेशन में भी इस स्टडी पर बात हुई.

शरीर में आयरन कैसे काम करता है?

आयरन का एक बड़ा काम खून में ऑक्सीजन का आवागमन करना है. यह खाने और स्टोर्ड बॉडी फैट को जलाने में भी ईंधन की तरह से काम करता है. साथ ही यह पुरानी सेल्स की जगह नई सेल्स तैयार करने का भी काम करता है.

शरीर के लिए ज्यादा आयरन को प्रभावी तरीके से स्टोर करना जरूरी होता है. अगर शरीर में आयरन की अचानक कमी होती है तो यह खून में मौजूद आयरन की रीसाइक्लिंग के जरिए अपनी जरूरत को पूरा करता है.

चूंकि, आयरन को निकाला नहीं जा सकता है, ऐसे में खाने-पीने से इसकी रोजाना की जरूरत काफी कम होती है. अगर शरीर को और आयरन की जरूरत होती है तो आंतों में खाने से आयरन को लेने की मात्रा बढ़ जाती है.

कॉलेस्ट्रॉल और आयरन मिलकर पैदा करते हैं बीमारियां

आयरन-हार्ट स्टडी में तीन सवाल पैदा हुए. कॉलेस्ट्रॉल की क्या भूमिका है? ज्यादा आयरन किस तरह से दिल की बीमारियों और हार्ट अटैक का कारण बनता है? शरीर किस तरह से ज्यादा आयरन को इकट्ठा करता है?

पहले दो सवालों का एक ही जवाब है. कॉलेस्ट्रॉल और आयरन तकरीबन एकसाथ काम करते हैं. 1991 की एक ज्यादा बड़ी आबादी पर की गई स्टडी से पता चला कि दिल की बीमारियों से होने वाली मौतों की दर आयरन और कॉलेस्ट्रॉल से जुड़ी हुई है. इनके लिए अकेला आयरन या कॉलेस्ट्रॉल जिम्मेदार नहीं है.

पुरुषों में सबसे ऊंची मृत्यु दर अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और नॉर्थ यूरोप में दिखाई दी. इन जगहों पर आयरन और कॉलेस्ट्रॉल दोनों के लेवल ऊंचे थे.

फिनलैंड की और अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट दोनों के नतीजे एक ही थे. ज्यादा आयरन और ज्यादा बैड कॉलेस्ट्रॉल (जिसे एलडीएल- लो डेंसिटी लिपोप्रोटीन कहा जाता है) वाले पुरुषों में हार्ट अटैक होने का जोखिम चार गुना बढ़ जाता है.

एथेरोसक्लेरोसिस के विकास में आयरन और कॉलेस्ट्रॉल दोनों एकसाथ काम करते हैं. यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें आर्टरीज बंद होने लगती हैं.

एथेरोसक्लेरोसिस कैसे विकसित होती है? एलडीएल कॉलेस्ट्रॉल आर्टरी की दीवारों पर सेल्स के साथ चिपक जाता है. इससे यह बीमारी होती है. लेकिन, एलडीएल के आर्टरी की दीवार से चिपकने से पहले इसका ऑक्सीडाइज्ड होना जरूरी है. आयरन एलडीएल ऑक्सीडेशन को बढ़ावा देता है. और इससे बीमारी फैलती है.

वैज्ञानिकों के लगातार प्रयोगों से पता चला है कि जब तक आयरन गैरमौजूद है, कॉलेस्ट्रॉल अच्छी तरह से ऑक्सीडाइज नहीं हो सकता.

चूंकि, कॉलेस्ट्रॉल ऑक्सीडाइज होता है, ऐसे में इसे सेल्स द्वारा पकड़ लिया जाता है. इससे सेल्स बड़ी हो जाती हैं. आर्टरी संकरी हो जाती है और दिल को खून की सप्लाई कम होने लगती है. इससे दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है.

हार्ट अटैक में आयरन पहुंचाता है दिल को नुकसान

एक बार हार्ट अटैक पड़ जाता है, तो आयरन फिर से दिल को नुकसान पहुंचाने लगता है. हार्ट अटैक के दौरान दिल में खून का प्रवाह बंद हो जाता है. ऐसे में ऑक्सीजन की सप्लाई भी कम हो जाती है और हार्ट सेल्स में स्टोरेज के ठिकानों से आयरन रिलीज होने लगता है.

नुकसान तब होता है जब खून की सप्लाई बहाल होती है और ऑक्सीजन सेल्स में फिर से पहुंचती है. एक अनियंत्रित प्रक्रिया, जिसे आयरन कैटालाइज्ड ऑक्सीडेशन कहा जाता है, शुरू हो जाती है. इससे हार्ट की सेल्स को और गहरा नुकसान होता है. कई खोजबीन बताती हैं कि आयरन को रोकने वाली दवा टिश्यू को होने वाले नुकसान को बड़े पैमाने पर रोकने में कारगर होती है.

मीट की खपत है इसकी वजह

अगर ज्यादा आयरन हमारे शरीर के लिए इतना जहरीला है तो यह पश्चिम में इतना क्यों फैल रहा है और पूर्व में इसके विस्तार में इजाफा हो रहा है?

इसका जवाब यह है कि पश्चिम में मीट की खपत ज्यादा है. मीट में आयरन ज्यादा होता है. साथ ही मीट के जरिए आयरन ज्यादा आसानी से खप जाता है. जबकि फलों, सब्जियों और अनाज के जरिए आयरन आसानी से शरीर में खप नहीं पाता है.

पौधों से मिलने वाले आयरन की खपत ऊंचे आयरन लेवल वाले लोगों में घटेगी, लेकिन हमारे शरीरों में मीट से खपे आयरन को घटाने का कोई जरिया दिखाई नहीं देता. जो लोग मीट खाते हैं, उन पर अतिरिक्त आयरन का बोझ बढ़ जाता है. उम्र बढ़ने के साथ इसमें इजाफा होता जाता है.

अल्कोहल और आयरन नुकसानदेह

सीरम फेरिटिन के इकट्ठा होने की वजह अल्कोहल और मीट का सेवन है. शाकाहारियों के शरीर में कम आयरन स्टोर होता है और इससे उन्हें दिल की बीमारियां भी कम होती हैं.

आप कह सकते हैं कि शाकाहारियों में दिल की बीमारियां कम दिखाई देती हैं क्योंकि वे कम कॉलेस्ट्रॉल हासिल करते हैं. लेकिन, ऐसा नहीं है कि वे कम आयरन खाते हैं. ऐसा नहीं है.

देश में शाकाहारियों में कॉलेस्ट्रॉल का मामूली कम लेवल इस वजह से है क्योंकि वे डेयरी उत्पादों (घी, दूध, पनीर, चीज, बटर, खोया, खीर, आइसक्रीम) को बड़ी मात्रा में खाते हैं. इन्हें लगता है कि ये स्वास्थ्यवर्धक हैं. ये खाद्य पदार्थ शरीर में बड़े पैमाने पर कॉलेस्ट्रॉल इकट्ठा करते हैं.

यह तकरीबन मांस खाने वालों के कॉलेस्ट्रॉल लेवल तक पहुंच जाती है. ऐसे में शाकाहारियों में कॉलेस्ट्रॉल के लेवल कम नहीं होते, बल्कि आयरन के लेवल मांसाहारियों के मुकाबले इनमें काफी कम होते हैं. इसी वजह से शाकाहारियों में दिल की बीमारियां कम दिखाई देती हैं.

कैंसर और आर्थराइटिस के लिए भी आयरन जिम्मेदार

अन्य अध्ययनों में बताया गया है कि आयरन कैंसर और आर्थराइटिस जैसी बीमारियों की भी वजह बनता है. ऑक्सीजन की मौजूदगी में आयरन कैंसरकारक हो जाता है. सेल्स की ग्रोथ के लिए आयरन की जरूरत होती है.

कैंसर सेल्स को तेज ग्रोथ के लिए आयरन मददगार साबित होता है. ऊंचे आयरन लेवल और कैंसर के बीच लिंक स्थापित करने वाले सबसे प्रभावशाली अध्ययनों में से एक 1988 में न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित हुआ. इस स्टडी में पता चला कि जिन लोगों के खून में ऊंचे आयरन लेवल होते हैं, उनमें लंग्स, गले, कोलन और ब्लैडर में कैंसर विकसित होने के आसार कम आयरन लेवल वालों से 37 फीसदी ज्यादा होते हैं.

नॉर्वे की एक स्टडी में इस तथ्य को समर्थन देने वाला पहला वैज्ञानिक सबूत दिया गया. इसमें कहा गया कि खानपान से गठिया अर्थराइटिस के लक्षणों में इजाफा हो सकता है और आयरन इससे जुड़ा हुआ है. 1991 में लैंसेट ने एक स्टडी प्रकाशित की. इसमें कहा गया कि एक समूह को शाकाहारी खानपान पर रखा गया. इस समूह में मांसाहारियों के मुकाबले काफी ज्यादा सुधार दिखाई दिया.

दिल की बीमारियों, कैंसर और आर्थराइटिस जैसी बीमारियों में आयरन एक बड़ी भूमिका निभाता है. इस बात की एक बार फिर से पुष्टि हीमोक्रोमेटोसिस से जूझ रहे लोगों के जरिए हुई. यह एक ऐसा डिसऑर्डर होता है जिसमें शरीर ज्यादा आयरन की खपत कर लेता है और स्टोर कर लेता है.

हीमोक्रोमेटोसिस के मरीज आमतौर पर कैंसर, दिल की बीमारियों, आर्थराइटिस और डायबिटीज से जूझते हैं. यह डिसऑर्डर आम है. हालांकि, इसमें से ज्यादातर अनुवांशिक होता है, लेकिन यह ऐसे लोगों में भी दिखाई देता है जो ज्यादा मात्रा में आयरन लेते हैं. मिसाल के तौर पर, यह ऐसी महिलाओं में दिखाई देता है जो एनीमिया से बचने के लिए शुरुआती उम्र में ही आयरन की गोलियां लेना शुरू कर देती हैं और 10 साल तक इन्हें लेती रहती हैं.

शरीर के लिए संतुलन बहुत जरूरी है. आयरन संतुलन के लिए इन चीजों की सलाह दी जाती है.

मांस न खाएं.

फल, सब्जियां और अनाज खाएं.

फाइटिक एसिड वाले खाद्य पदार्थ लें. इनमें व्हीट ब्रान, होल व्हीट प्रोडक्ट्स आते हैं.

अल्कोहल न लें, या इसकी मात्रा न्यूनतम कर दें.

व्यायाम करें. फिनलैंड की स्टडी के मुताबिक, जैसे-जैसे कार्डियो-रेस्पिरेटरी में इजाफा होता है, सीरम फेरिटिन का लेवल घटने लगता है.

बाकी, सब बातों की एक बात यह है कि मीट न खाएं.