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महाशिवरात्रि: शिव-पार्वती हैं दुनिया की सबसे बड़ी लव स्टोरी

सभी जीवों का सम्मान ही शिवभक्ति का सार है.

rakesh kayasth

आज महाशिवरात्रि है. बाबा भोलेनाथ अपने फैमिली फोटो के साथ सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहे हैं.

महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है, इसे लेकर कई पौराणिक कथाएं और लोक मान्यताएं प्रचलित हैं. फिर भी युवा पीढ़ी को समझाने के लिए एक लाइन में कहा जा सकता है कि आज शिव और पार्वती का मैरिज डे है.


शिव विवाह कोई साधारण विवाह नहीं था. प्रेम, समर्पण और तप की परिणति था शिव विवाह. दुनिया की बड़ी से बड़ी लव स्टोरी इस कहानी के आगे फेल है. जितनी नाटकीयता और उतार-चढ़ाव इस प्रेम कहानी में है, वो दुनिया की सबसे हिट रोमांटिक फिल्म में भी नहीं होगी.

सबसे बड़ी लव स्टोरी

यह कहानी एक जन्म की नहीं है. पार्वती पिछले जन्म में भी शिव की पत्नी थी, तब उनका नाम सती था और वे प्रजापति दक्ष की बेटी थी. परम प्रतापी राजा दक्ष ने जानबूझकर अपने दामाद शिव को अपमानित किया, जिससे आहत को होकर सती हवनकुंड में कूद गईं. सती के वियोग में शिव में विरक्ति का भाव भर दिया और वे तपस्या में लीन हो गए.

उधर शिव को फिर से हासिल करने के लिए सती ने पार्वती बनकर हिमालय के घर जन्म लिया. देवताओं ने शिव उनका ध्यान भंग करने के लिए कामदेव को भेजा तो शिव ने उन्हे भस्म कर दिया. लेकिन पार्वती ने शिव को प्राप्त करने के लिए तप जारी रखा. आखिरकार बाबा भोलेनाथ को पिघलना पड़ा और वे नंदी पर सवार होकर नंगे बदन पर भभूत मले बड़े ठाठ से बारात लेकर आए.

बारातियों की शक्ल में थे नाचते-गाते गण यानी अनगिनत भूत-पिशाच. दुनिया के तमाम पशु-पक्षियों से लेकर कीड़े-मकोड़े तक की इस बारात में नुमाइंदगी रही, आखिर वो पशुपतिनाथ यानी समस्त पशुओं के देवता शिव का विवाह जो था. शिवजी से विवाह करके पार्वती उनके साथ कैलाश पर चली गई और इस तरह दो जन्मों से चल रही एक प्रेम कहानी की हैप्पी एंडिंग हुई.

शिव जैसी उदारता दुनिया के किसी और देवी-देवता में विरल है. शिव को आशुतोष कहते हैं यानी तुरंत प्रसन्न हो जाने वाला. जब भी कोई राक्षस तपस्या में जुटता था, इंद्र के कान खड़े हो जाते थे. देवराज बाकी देवताओं के साथ मिलकर बाकायदा लॉबीइंग करते थे कि भोलेनाथ किसी राक्षस को वरदान ना दे. लेकिन देने के मामले में शिव ने कभी भेद नहीं किया.

आज के बड़े नेताओं की तरह उन्होने कभी कोई पॉलिटकली कैरेक्ट फैसला नहीं लिया. भक्त चाहे ईश्वर हो या राक्षस, जिसने मांगा उसे मिला, चाहे वो भस्मासुर ही क्यों ना हो. अमृत औरो में बांटा और विष खुद पी गये. भला कहां होगा पूरा दुनिया में कोई ऐसा दूसरा. सामूहिकता शिव का एक और गुण है, जो बहुत कम देवी-देवताओं में है.

शिव तो फैमिली मैन हैं

आज मैरिज डे है, फिर भी शिवजी कोई ऐसी तस्वीर ट्रेंड नहीं कर रही है, जिसमें वे नव-विवाहित जोड़े के रूप में माता पार्वती के साथ हों. ज्यादातर तस्वीरों में शिवजी दिखाई दे रहे हैं अपने पूरे परिवार के साथ, लाइक ए कंप्लीट फैमिली मैन.

शिव महापरिवार की तस्वीर देखता हूं जो जेहन में एक बात कौंधती है. दुनिया में इतनी विलक्षण कोई और तस्वीर नहीं है. शिव का वाहन नंदी है, जो एक बैल है. पार्वती का वाहन शेर है. लेकिन शेर नंदी बैल को देखकर लार नहीं टपकाता. तस्वीर में गणेश भी हैं और उनके साथ उनका वाहन नन्हा मूषक मौजूद है. लेकिन शिव के गले का सांप चूहे को निगलने के लिए नहीं दौड़ता है.

कार्तिकेय का वाहन मोर है. वही मोर जिसका प्रिय भोजन सांप है. लेकिन मोर कभी सांप पर झपट्टा नहीं मारता. सब एक-दूसरे के साथ खड़े हैं. शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का कोई दूसरा ऐसा उदाहरण आपने कहीं देखा है? शिव महापरिवार की तस्वीर ये बताती है कि जब तक सह-अस्तित्व है, तभी तक सृष्टि है. जहां सह-अस्तित्व नहीं है, वहां विनाश है.

सावन के महीने में सड़क पर हुड़दंग करते और राह चलते लोगो को पीटते कांवड़ियों को देखता हूं तो मन में सवाल उठता है- क्या इन लोगों ने कभी शिव महापरिवार की तस्वीर देखी है? यकीनन नहीं देखी होगी. अगर देखते तो उन्हे समझ में आता कि सभी जीवों का सम्मान ही शिवभक्ति का सार है.