view all

महाशिवरात्रि विशेष: विवाह से पहले रोज ऐसे सजे भोले बाबा

महाकालेश्वर मन्दिर में शिवरात्रि उत्सव की तैयारियां

Dinesh Gupta

उज्जैन के महाकाल मंदिर में शिव विवाह की तैयारियां जोरों पर चल रही हैं. महाकाल को रोज नये नये अंदाज में सजाया जा रहा है. उन्हें दूल्हा बनाने की तैयारियां जोरों शोरों से चल रही है.

भोले बाबा के विवाह का यह उत्सव 9 दिनों तक मनाया जाता है, जिसकी शुरूआत 16 फरवरी को हो चुकी है. इस विवाह के साक्षी बनने के लिए देश-दुनिया के लोग उज्जैन पहुंच रहे हैं. सोमवार को महाकाल का होलकर श्रृंगार किया गया. इससे पहले उन्हें शेषनाग, घटाटोप और छबीना श्रृंगार में सजाया जा चुका है .अगले चार दिन मनमहेश श्रृंगार, उमा-मनमहेश श्रृंगार, शिव तांडव श्रृंगार तथा महाशिवरात्रि श्रृंगार मे रंगा जाएगा.


श्री महाकालेश्वर मन्दिर प्रबंध समिति के प्रशासक श्री अवधेश शर्मा ने बताया कि श्री महाकालेश्वर मन्दिर में 24 फरवरी तक शिवनवरात्रि उत्सव मनाया जायेगा. इसकी शुरूआत 16 फरवरी को मन्दिर के नैवेद्य कक्ष में भगवान श्री चन्द्रमौलेश्वर का पूजन करने के साथ ही होगी. मन्दिर प्रबंध समिति द्वारा कोटितीर्थ कुण्ड के पास स्थापित कोटेश्वर महादेव एवं श्री महाकालेश्वर भगवान का पूजन कर नौ दिवसीय शिवनवरात्रि के पूजन का संकल्प लिया गया.

11 ब्राह्मणों का पूजन कर उन्हें चोला प्रदान किया गया. पं.घनश्याम शर्मा पुजारी के नेतृत्व में 11 ब्राह्मण श्री महाकालेश्वर का अभिषेक एकादश-एकादशमी रूद्रपाठ सेरोज कर रहे हैं. इसके बाद शाम को पूजन के पश्चात बाबा श्री महाकाल को नवीन वस्त्र धारण करवाये जाते हैं.

प्रतिदिन शाम को भगवान महाकाल को नवीन वस्त्र धारण कराये जायेंगे तथा नौ दिन तक बाबा महाकाल विभिन्न स्वरूपों में दर्शन देंगे, जैसे- शेषनाग, घटाटोप, छबीना, मनमहेश आदि स्वरूपों में बाबा महाकाल नौ दिन भक्तों को दर्शन देंगे.

नागपंचमी को होते है नागचन्द्रेश्वर के दर्शन

महाकालेश्वर मंदिर का निर्माण राणोजी शिन्दे शासन काल में हुआ था.यह तीन खण्डों में विभक्त है. निचले खण्ड में महाकालेश्वर बीच के खण्ड में ओंकारेश्वर तथा सर्वोच्च खण्ड में नागचन्द्रेश्वर के शिवलिंग प्रतिष्ठ हैं. नागचन्द्रेश्वर के दर्शन केवल नागपंचमी को ही होते हैं. मन्दिर के परिसर में जो विशाल कुण्ड है, वही पावन कोटि तीर्थ है. कोटि तीर्थ सर्वतोभद्र शैली में निर्मित है.

इसके तीनों ओर लघु शैव मन्दिर निर्मित हैं. कुण्ड सोपानों से जुड़े मार्ग पर अनेक दर्शनीय परमारकालीन प्रतिमाएँ देखी जा सकती हैं जो उस समय निर्मित मन्दिर के कलात्मक वैभव का परिचय कराती है. कुण्ड के पूर्व में जो विशाल बरामदा है, वहाँ से महाकालेश्वर के गर्भगृह में प्रवेश किया जाता है.

इसी बरामदे के उत्तरी छोर पर भगवान् राम एवं देवी अवन्तिका की आकर्षक प्रतिमाएं पूज्य हैं. मन्दिर परिसर में दक्षिण की ओर अनेक छोटे-मोटे शिव मन्दिर हैं जो शिन्दे काल की देन हैं. इन मन्दिरों में वृद्ध महाकालेश्वर अनादिकल्पेश्वर एवं सप्तर्षि मन्दिर प्रमुखता रखते हैं. ये मन्दिर भी बड़े भव्य एवं आकर्षक हैं.

कलात्मक एवं नागवेष्टित रजत जलाधारी एवं गर्भगृह की छत का यंत्रयुक्त तांत्रिक रजत आवरण अत्यंत आकर्षक है. गर्भगृह में ज्योतिर्लिंग के अतिरिक्त गणेश, कार्तिकेय एवं पार्वती की आकर्षक प्रतिमाएं प्रतिष्ठत हैं. दीवारों पर चारों ओर शिव की मनोहारी स्तुतियां अंकित हैं. जहा नंदादीप सदैव प्रज्ज्वलित रहता है.

दर्शनार्थी जिस मार्ग से लौटते हैं, उसके सुरम्य विशाल कक्ष में एक धातु-पत्र वेष्टित पाषाण नंदी अतीव आकर्षक एवं भगवान के लिंग के सम्मुख प्रणम्य मुद्रा में विराजमान है. महाकाल मन्दिर का विशाल प्रांगण मन्दिर परिसर की विशालता एवं शोभा में पर्याप्त वृद्धि करता है.

भगवान महाकालेश्वर मन्दिर के सबसे नीचे के भाग में प्रतिष्ठ है. मध्य का भाग में ओंकारेश्वर का शिवलिंग है. उसके सम्मुख स्तंभयुक्त बरामदे में से होकर गर्भगृह में प्रवेश किया जाता हैं. सबसे ऊपर के भाग पर बरामदे से ठीक ऊपर एक खुला प्रक्षेपण है जो मन्दिर की शोभा में आशातीत वृद्धि करता हैं.

महाकाल का यह मन्दिर, भूमिज चालुक्य एवं मराठा शैलियों का अद्भुत समन्वय है. ऊरुश्रृंग युक्त शिखर अत्यंत भव्य है. विगत दिनों इसका ऊर्ध्व भाग स्वर्ण-पत्र मण्डित कर दिया गया है.ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर दक्षिणामूर्ति हैं. तंत्र की दृष्टि से उनका विशिष्ट महत्त्व है.