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जन्माष्टमी स्पेशल: भगवान विष्णु के 'पूर्णावतार' हैं श्रीकृष्ण

हर साल भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जन्माष्टमी पूरे भारत वर्ष और कुछ अन्य देशों में धूमधाम से मनाई जाती है

Rajeshwar Pratap Singh

भगवद् गीता के उपदेशक भगवान श्रीकृष्ण मानव यानी लौकिक जीवन के सभी अवस्थाओं अर्थात जन्म-मृत्यु, सुख-दुख, रहस्य-प्रपंच आदि से होते हुए गुजरे हैं. भगवान राम के मर्यादापूर्ण जीवन के विपरीत श्रीकृष्ण व्यावहारिक लोकजीवन को पूर्णरूपेण जीते हुए दिखते हैं, इसलिए भगवान विष्णु के इस अवतार को 'पूर्णावतार' माना जाता है.

अत: श्रीकृष्ण की भक्ति में जो सर्वग्राह्यता है, वह लोकमानस को ज्यादा स्वीकार्य है. तभी तो कृष्णाष्टमी देशकाल की सीमा से परे लोकजीवन का एक महत्वपूर्ण त्योहार है. हर साल भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जन्माष्टमी पूरे भारत वर्ष और कुछ अन्य देशों में धूमधाम से मनाई जाती है.


श्रीकृष्ण के जन्म और उनके संपूर्ण व्यक्तित्व को यदि धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिपेक्ष्य में देखा जाए तो उनका हरेक पक्ष लोकमानस के लिए परम कल्याणकारी साबित होता है.

धर्म संस्थापक श्रीकृष्ण

भगवान कृष्ण का जन्म उस समय हुआ था जब धरती पर अत्याचार व अन्याय काफी बढ़ा हुआ था. स्वयं कृष्ण के मामा कंस ने जन्म से ही उन्हें मारने के काफी प्रयत्न किए पर श्रीकृष्ण के प्रताप और शक्ति से कंस सहित अनेक असुरों (अत्याचारियों और अन्यायियों) का नाश हुआ. इसी तरह श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध की रचना करवाकर, युद्ध क्षेत्र में ही अर्जुन को ज्ञान (अपनी पहचान) देकर और पांडवों को विजय दिलवाकर जगत गुरु और सत्य धर्म संस्थापक के रूप में प्रसिद्ध हुए.

भक्त वत्सल

श्रीकृष्ण को भक्त जिस भाव से भजता है, वे उसे उसी रूप में स्वीकार करते हैं. वे अपने भक्तजनों के लिए सर्वश्रेष्ठ मित्र, सखा, गुरु और पति रूप में सामने आते हैं. श्री कृष्ण ने अपने बालपन से ही अपने प्रेमियों और भक्तों को अपना विशुद्घ प्यार देना शुरू दिया. कृष्ण की बाल-लीला और रासलीला जग प्रसिद्ध हैं. कृष्ण ने समुद्र के बीच द्वारिकापुरी बसाई और द्वारिकाधीश के रूप में समस्त प्रेमी भक्तों के हृदय पर राज किया.

समाज सुधारक

श्रीकृष्ण का समाज सुधारक रूप भी अभिभूत करता है. उन्होंने ऊंच-नीच की भावना को खत्म किया. शोषित स्त्रियों का कल्याण किया. माना जाता है कि श्रीकृष्ण की 16,108 पत्नियां थीं. इसके पीछे भी एक कथा है, जिसके अनुसार भौमासुर नामक राक्षस ने 16,100 स्त्रियों को अपने यहां कैद किया हुआ था. कृष्ण ने युद्ध करके सभी को मुक्त कराया लेकिन इन स्त्रियों को कोई स्वीकार करने को तैयार नहीं था. तब स्वयं कृष्ण ने सभी को पत्नी रूप में स्वीकार किया और द्वारिका में जगह दी.

आत्मिक प्रेम

कृष्ण ने अपनी अत्यंत प्यारी गोपियों को शारीरिक रूप से सदा के लिए छोड़कर यह सिद्घ कर दिया कि उनका प्रेम शारीरिक या मानसिक स्तर पर न होकर आत्मिक रूप से था. उनका यह रूप संदेश देता है कि स्वार्थ, मोह और लोभ से प्रेरित प्रेम, प्रेम नहीं होता. यह निश्छल होता है. इसमें कोई शर्त नहीं होती.

कर्मयोगी

भगवद् गीता के जरिए श्रीकृष्ण ने संसार को कर्मयोग और ज्ञान का पाठ पढ़ाया. उन्होंने कहा कि कर्म ही मनुष्य की पहचान है. कर्म करना चाहिए, फल की चिंता नहीं करनी चाहिए. कृष्ण के पास तत्वज्ञान था, जो सत्य, प्रेम, धर्म और मानवता का आधार था. कृष्ण ने अपने ज्ञान की चर्चा करते हुए कहा कि यह प्रत्यक्ष अनुभव देने वाला, धर्मयुक्त, और सफलता से अभ्यास किया जाने वाला ज्ञान है.

आदर्श शिष्य

श्रीकृष्ण में एक आदर्श शिष्य के गुण भी थे. वे गुरु सेवा में कुछ भी करने को तैयार थे. एक समय की बात है. गुरु दुर्वाषा ऋषि द्वारिकापुरी आये और नगर घूमने की इच्छा जाहिर की. पहले तो कृष्ण ने सारथी को घोड़ों युक्त रथ पर गुरु को नगर भ्रमण करवाने का आदेश दिया. परंतु बाद में गुरु की इच्छा जानकर वे स्वयं रुक्मिणी के साथ घोड़ो की जगह रथ में जुड़े और रथ खींचकर अपने गुरु को पूरी द्वारिका नगरी का भ्रमण कराया.

परम मित्र

भगवान कृष्ण केवल शाक्तिशाली, ज्ञानी, धर्मात्मा, योग्य शासक, महान योद्घा और भक्तवत्सल ही नहीं थे बल्कि परम मित्र प्रेमी भी थे. काफी वर्षों के बाद बचपन के मित्र गरीब सुदामा अपने मित्र कृष्ण से मिलने के लिए द्वारिका पहुंचे. कृष्ण इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने अपने प्रेमाश्रुओं से ही अपने मित्र के पांव धोए और अपना सा कुछ देने के लिए तैयार हो गए. उन्होंने सुदामा के लिए सुदामापुरी ही बसा दिया.

कब मनाएं जन्माष्टमी

अधिकतर कृष्ण जन्माष्टमी दो अलग-अलग दिनों पर मनाई जाती है. ऐसा इसलिए क्योंकि पहले दिन वाली जन्माष्टमी स्मार्त (गृहस्थ) संप्रदाय के लोग मनाते हैं. दूसरे दिन वाली जन्माष्टमी वैष्णव संप्रदाय के लोगो के लिए होती है.

इस वर्ष स्मार्त लोगों के लिए 14 अगस्त को जन्माष्टमी होगी. इस दिन अष्टमी तिथि शाम 7 बजकर 45 मिनट पर शुरू होगी, जो अगले दिन 15 अगस्त को शाम पांच बजकर 31 मिनट पर खत्म होगी. वहीं, वैष्णवों के लिए जन्माष्टमी 15 अगस्त को सूर्योदय के साथ शुरू होगी और अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत का पारण (व्रत तोड़ना) होगा.

- निशिता पूजा का समय रात 12 बजकर तीन मिनट से लेकर 12 बजकर 47 मिनट तक रहेगा.