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हरतालिका तीज: ये है सुहागिनों के पर्व का महत्व, जानिए कथा और पूजन विधि

हरतालिका तीज के व्रत में नदी किनारे की रेत से शंकर-पार्वती बनाए जाते हैं

FP Staff

गुरुवार, 24 अगस्त को हरतालिका तीज है. सुहागिनों के महापर्व के रूप में प्रचलित हरतालिका तीज भाद्रपद, शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन मनाया जाता है. हस्त नक्षण में होने वाला यह व्रत सुहागिनें पति की लंबी आयु तथा अविवाहित युवतियां मनवांछित वर के लिए करती हैं. इस दिन शिव-पार्वती की पूजा होती है. ऐसा माना जाता है कि माता पार्वती और शिव अपनी पूजा करने वाली सभी सुहागिनों को अटल सुहाग का वरदान देते हैं.

इसलिए पड़ा नाम


पुराणों में उल्लेख मिलता है कि देवी पार्वती ने शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया और वरदान में उन्हें ही मांग लिया. इसी व्रत को हरतालिका तीज के नाम से जाना जाता है. वैसे मान्यता है कि इस दिन को 'हरतालिका' इसीलिए कहते हैं कि पार्वती की सहेली उनका हरण कर घनघोर जंगल में ले गई थी. 'हरत' अर्थात हरण करना और 'आलिका' अर्थात सहेली.

पूजा की कथा

कहा जाता है कि एक बार देवी पार्वती ने हिमालय पर कठोर तप किया. वे शिव जी को मन ही मन अपना पति मान चुकी थीं और उनसे शादी करना चाहती थीं. उनके पिता व्रत का उद्देश्य नहीं जानते थे और बेटी के कष्ट से दुखी थे. एक दिन नारद मुनि ने आकर गिरिराज से कहा कि आपकी बेटी के कठोर तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु उनसे विवाह करना चाहते हैं. उनकी बात सुनकर पार्वती के पिता ने बहुत ही प्रसन्न होकर अपनी सहमति दे दी. उधर, नारद मुनि ने भगवान विष्णु से जाकर कहा कि गिरिराज अपनी बेटी का विवाह आपसे करना चाहते हैं. श्री विष्णु ने विवाह के लिए अपनी सहमति दे दी.

गिरिराज ने अपनी पुत्री को बताया कि उनका विवाह श्री विष्णु के साथ तय कर दिया गया है. उनकी बात सुनकर पार्वती विलाप करने लगीं. फिर अपनी सहेली को बताया की वे तो शिवजी को अपना पति मान चुकी हैं और उनके पिता उनका विवाह श्री विष्णु से तय कर चुके हैं. पार्वती ने अपनी सखी से कहा कि वह उनकी सहायता करे, उन्हें किसी गोपनीय स्थान पर छुपा दे अन्यथा वे अपने प्राण त्याग देंगी. पार्वती की बात मान कर सखी उनका हरण कर घने वन में ले गई और एक गुफा में उन्हें छुपा दिया.

वहां एकांतवास में पार्वती ने और भी अधिक कठोरता से भगवान शिव का ध्यान करना प्रारंभ कर दिया. पार्वती ने रेत का शिवलिंग बनाया इसी बीच भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया को हस्त नक्षत्र में पार्वती ने रेत का शिवलिंग बनाया और निर्जला, निराहार रहकर, रात्रि जागरण कर व्रत किया.

उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने दर्शन देकर वरदान मांगने को कहा. पार्वती ने उन्हें अपने पति रूप में मांग लिया. शिव जी वरदान देकर वापस कैलाश पर्वत चले गए. इसके बाद पार्वती जी अपने गोपनीय स्थान से बाहर निकलीं. उनके पिता बेटी के घर से चले जाने के बाद से बहुत दुखी थे. वे भगवान विष्णु को विवाह का वचन दे चुके थे और उनकी बेटी ही घर में नहीं थी.

चारों ओर पार्वती की खोज चल रही थी. पार्वती ने व्रत संपन्न होने के बाद समस्त पूजन सामग्री और शिवलिंग को गंगा नदी में प्रवाहित किया और अपनी सखी के साथ व्रत का पारण किया. तभी गिरिराज उन्हें खोजते हुए वहां पहुंच गए. उन्होंने पार्वती से घर त्यागने का कारण पूछा. पार्वती ने बताया कि मैं शिवजी को अपना पति स्वीकार चुकी हूं. यदि आप शिवजी से मेरा विवाह करेंगे, तभी मैं घर चलूंगी. पिता गिरिराज ने पार्वती का हठ स्वीकार कर लिया और धूमधाम से उनका विवाह शिवजी के साथ संपन्न कराया.

व्रत की पूजाविधि

हरतालिका तीज का व्रत भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को किया जाता है. नदी किनारे की रेत से शंकर-पार्वती बनाए जाते हैं. उनके उपर फूलों का मंडप सजाया जाता है. यह निर्जल व्रत है, जिसमें व्रत करने वाली महिलाएं बिना कुछ खाए-पिए व्रत रहती हैं. दूसरे दिन सुबह नदी में शिवलिंग और पूजन सामग्री का विसर्जन करने के साथ यह व्रत पूरा होता है. ऐसा माना जाता है कि जो स्त्री पूरे विधि-विधान से इस व्रत को संपन्न करती है, वह शिवजी से वरदान में अटल सुहाग पाती है.

(साभार न्यूज 18)