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गायसेक्सुअल: समलैंगिकों की इंद्रधनुषी दुनिया

समलैंगिकों की ख्वाहिशें और पसंद अलग-अलग होती हैं.

Aniruddha Mahale

भारत में समलैंगिकता अभी भी एक वर्जित विषय है. ऐसे लोगों को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता. अगर किसी के बारे में पता चलता है कि वो समलैंगिक है तो लोग यही सोचते हैं कि ये बाकी इंसानों से एकदम अलग होगा. उनके जेहन में सवाल आते हैं कि क्या इसे मस्टर्ड सॉस पसंद होगा या फिर केचअप.

उसका पसंदीदा रंग कौन सा होगा? उसे क्रीम ब्रुले खाने में अच्छी लगती होगी या नहीं? वो कॉफी ज्यादा पीता होगा या फिर चाय? या फिर उसे बीयर में ज्यादा दिलचस्पी होगी? जो लोग गे या समलैंगिक होते हैं क्या वो आम इंसान ही होते हैं? दो समलैंगिकों के बीच सच्चा प्यार होता है या नहीं?


जैसे दो इंसान एक जैसे नहीं होते. ठीक वैसे ही दो समलैंगिक मर्द भी एक जैसे नहीं होंगे. किसी को नीला रंग पसंद होगा तो किसी को लाल. किसी को केचअप पसंद होगा तो किसी को मस्टर्ड सॉस. सबकी अपनी पसंद-नापसंद होती है. ऐसे में गे मर्दों की पसंद एक सी होगी, ये कैसे मुमकिन है?

यकीन जानिए, चाहे वो समलैंगिक हों या न हों, मर्दों का मिजाज मर्दों वाला ही होता है. खास तौर से प्यार, सेक्स और रिश्तों में. सबकी एक जैसी फिक्र होती है. खाने का बिल कौन भरेगा? क्या मेरा साथी मुझे पसंद करेगा. क्या उसके दोस्त मुझे अपनाएंगे? क्या मैं उनसे प्यार करता हूं? आखिर प्यार है तो क्या बला?

कुल मिलाकर मर्दों की जात एक जैसी है. फिर वो लड़कियों में दिलचस्पी लेने वाले हो या फिर दूसरे लड़कों में. कई बार संजीदा किस्म का प्यार होता है. तो कई बार समलैंगिकों को बस यूं ही कोई अच्छा लगने लगता है. किसी को छुअन से ही सिहरन होने लगती है, तो किसी को सेक्स में खास दिलचस्पी होती है. सबकी पसंद बिल्कुल अलग-अलग होती है.

जैसे आम मर्दों की पसंद-नापसंद जुदा होती है. ठीक वैसे ही यहां हम समलैंगिकों के बारे में कह सकते हैं. जरूरी नहीं कि सबको गायिका एडले ही पसंद हो. ये भी जरूरी नहीं कि सबको गुलाबी रंग भाता हो. याद रहे किसी भी समलैंगिक से ऐसे सवाल करना भी तहजीब के खिलाफ है.

आपको अगर समलैंगिकों के बारे में जानने में दिलचस्पी है. तो बुनियादी तौर पर ये समझ लें कि इनकी ख्वाहिशें और पसंद बिल्कुल अलग-अलग होती हैं. किसी को ब्रैडले कूपर पसंद होता है तो किसी को ब्रैड पिट.

बड़ा सवाल ये होता है कि इंसान पहले अपनी पसंद के बारे में जाने. समलैंगिकों के खिलाफ समाज में इतनी बुरी सोच है कि बहुत से लोग खुद को गे कहलाने से डरते हैं.

पहली शर्त तो यही होती है कि वो खुलकर दुनिया के सामने अपनी पसंद का इजहार करें. लोगों को बताएं कि वो समलैंगिक हैं. उनके प्रति होने वाले बर्ताव से घबराकर बहुत से लोग अपनी भावनाओं को छुपाए फिरते हैं. उन्हें डर की इस कैद से निकालकर बाहर लाना ही बहुत बड़ी चुनौती है.

कुछ लोग अगर खुद को गे कहने की हिम्मत दिखाते हैं तो फिर समाज उन पर झपट पड़ता है. उन्हें बुरा-भला कहा जाता है. उन्हें किनारे लगा दिया जाता है. लोग उन्हें शक की निगाह से देखते हैं. मानो उन्होंने खुद को समलैंगिक बताकर बहुत बड़ा गुनाह कर दिया हो. इस बर्ताव से तंग आकर बहुत से गे खुद पर ही शर्म करने लगते हैं. उन्हें अपनी पसंद से ही नफरत हो जाती है. इसके लिए बहुत हद तक समाज का रवैया जिम्मेदार है.

लेकिन, होना ये चाहिए कि अगर कोई खुद को समलैंगिक बताता है तो उसकी बात का सम्मान होना चाहिए. उसके दोस्तों-रिश्तेदारों को इस बात पर शर्म करने की बजाय जश्न मनाना चाहिए. क्योंकि जो भी शख्स ऐसा ऐलान करता है, वो बहुत ताकत जुटाकर ये बात कह पाता है.

इसीलिए ऐसे लोगों को समझने के लिए,'गायसेक्सुअल' गाइड की जरूरत है. जो समलैंगिकों की जिंदगी पर रोशनी डाले. दुनिया को उनके बारे में समझने में मदद करे. उनसे कैसा बर्ताव किया जाए, ये बात बाकी दुनिया को बताए.

आपके आसपास कोई समलैंगिक हो तो उससे कैसा बर्ताव करना चाहिए, ये जानना जरूरी है. क्या सवाल करना ठीक होगा? क्या पूछने से बचना चाहिए? इन सब बातों को 'गायसेक्सुअल' से समझने में मदद मिलेगी. अगर आप समलैंगिक हैं तो आपको भी अपना साथी तलाशने में सहूलियत होगी.

दोनों डेट पर जाएंगे तो बिल कौन भरेगा? बीयर पिएंगे या फिर कुछ और? कौन सी बात है जो किसी समलैंगिक से नहीं कहनी चाहिए? क्या किसी महिला के बारे में भद्दी बातें कहना ठीक होगा? आखिर सभी दिलकश लड़के गे ही क्यों होते हैं? अगर आपका कोई दोस्त समलैंगिक है और आप किसी और गे से मिलते हैं. तो तुरंत ही दोनों की मुलाकात कराने का ख्याल ठीक है या नहीं? इन सब सवालों के जवाब आपको मिलेंगे.

मगर, सबसे पहले ये करना जरूरी है कि समलैंगिकता को हम खुले दिल से स्वीकार करें. ये समझें कि दुनिया में बहुत से ऐसे लोग हैं, जिनकी पसंद अपने जैसे लोगों में होती है. ऐसे लोगों के बारे में पहले से कोई राय कायम करना ठीक नहीं. ऐसे लोगों को डराना-धमकाना भी ठीक नहीं. उनकी पसंद का सम्मान करना, उन्हें बराबरी का इंसान मानना पहली शर्त है.

तब शायद आगे चलकर कुछ सालों या कुछ दशकों बाद समलैंगिक भी समाज में खुद को बराबरी के हक वाला इंसान समझेंगे. वो भी आम इंसानों जैसी जिंदगी जी सकेंगे. उन्हें घुट-घुटकर मरने की जरूरत नहीं होगी.

जब तक ऐसा होगा, तब तक समलैंगिकों के बारे में लोगों के ख्याल ऐसे ही उलझे हुए रहेंगे कि उन्हें नीला रंग पसंद है या फिर गुलाबी क्यों ज्यादा भाता है.

और हां, रंग से याद आया, सफेद कमीज किसी मौके पर, किसी के भी साथ चल जाती है.

( लेखक TedX स्पीकर और गे राइटर हैं )