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भारत का कमजोर कानून देता है महिलाओं से छेड़छाड़ को बढ़ावा

पीछा या छेड़छाड़ करने वाले शख्स के खिलाफ कड़े कानून नहीं होने से महिलाओं को हरदम रहती है अपनी सुरक्षा की फिक्र

Divya Vijayakumar

एक महीने पहले मेरी एक दोस्त एक किराने की दुकान गई. वहां उसे एक पहचाने से चेहरे वाला आदमी मिला. यह आदमी मेरी दोस्त को लगातार घूरे जा रहा था. तो, मेरी दोस्त उसके पास गई और पूछा कि क्या वो उसे जानता है? क्या उसने उसे कहीं देखा था?

उस आदमी ने मेरी दोस्त से कहा कि हां, वो उसे अच्छी तरह जानता है. वो कई बार मिल चुके हैं. उसने उन जगहों के नाम भी बताए जहां दोनों मिल चुके थे. मसलन, पार्क में, एक किताब की दुकान में.


जब मेरी दोस्त परेशान होकर वहां से जाने लगी, तो उस आदमी ने पीछे से पुकारा, दो दिन पहले तुम्हारा जन्मदिन था न? हैप्पी बर्थडे. ये आखिरी जानकारी तो मेरी दोस्त ने सोशल मीडिया पर भी नहीं डाली थी.

वो इस बातचीत से बेहद हैरान और डरी हुई थी. मगर उसके साथी हौसला बढ़ा रहे थे कि ये चिंता की बात नहीं. वो आदमी तुम्हें परेशान तो कर नहीं रहा था. उसने तो तुमसे अच्छे से बात की. जन्मदिन की शुभकामनाएं दीं. हालांकि मेरी दोस्त शिकायत लेकर पुलिस के पास नहीं गई. लेकिन वो इस बात से काफी दिनों तक परेशान रही थी.

केवल चेतावनी देकर छोड़ दिया 

17 दिसंबर को ज्योति कुमारी नाम की एक 20-22 बरस की वकील का बेंगलुरू में मर्डर हो गया. ज्योति की मधु नाम के शख्स ने उस समय हत्या कर दी, जब वो कोर्ट जा रही थी. मधु, ज्योति का काफी दिनों से पीछा कर रहा था. वो लगातार ज्योति को परेशान कर रहा था. उसे घर पर लगातार फोन करता रहा था.

जब ज्योति के चाचा ने उसे रोका-टोका तो मधु कुछ दिनों के लिए गायब हो गया था. लेकिन दो महीने पहले ज्योति ने पुलिस से शिकायत की थी कि मधु वापस आ गया है. और वो उसे फिर परेशान करने लगा है.

मधु ने एक बार ज्योति के हॉस्टल में उस पर हमला भी किया. मधु ने ज्योति का स्कूटर भी चुरा लिया था. उसकी शिकायत पर पुलिस ने बस मधु को कड़ी चेतावनी देकर छोड़ दिया था.

ज्योति उन महिलाओं की लंबी होती फेहरिस्त में शामिल हो गई है. जिनका छेड़खानी और पीछा किए जाने के बाद कत्ल कर दिया गया.

अधिकतर अपराध खुलेआम किए गए

ये हत्या उन लोगों ने किये जिन्हें इन महिलाओं ने रिजेक्ट कर दिया था. जिनके प्रेम निवेदन को अस्वीकार कर दिया गया था. ऐसे अधिकतर अपराध खुलेआम किए गए थे. खास तौर से उस वक्त, जब ये महिलाएं काम के लिए घर से निकली थीं.

ऐसी ही गुड़गांव की एक महिला पिंकी देवी का अक्टूबर में दिल्ली के मेट्रो स्टेशन पर कत्ल कर दिया गया था. वो ब्यूटीशियन थी और काम के सिलसिले में घर से निकली थी.

एस स्वाति नाम की इंफोसिस की एक कर्मचारी का चेन्नई के नुंगमबक्कम रेलवे स्टेशन पर उसका पीछा करने वाले ने कत्ल कर दिया था.

हर ऐसी घटना के बाद ये साफ होता है कि छेड़खानी की घटनाओं को हल्के में लेकर दरकिनार नहीं किया जा सकता. फिर भी बहुत सी फिल्मों में और सामाजिक चलन में छेड़खानी को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है.

फिल्मों में बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है

छेड़खानी की घटनाओं को फिल्मों में ऐसे पेश किया जाता है मानो वो बहुत अच्छा काम हो. और किसी आदमी का ऐसा लगातार करना आखिर में उसे कामयाबी दिलाता है.

कुछ महीनों पहले ही तमिल कलाकार शिव कार्तिकेयन ने छेड़खानी का बचाव किया था. शिव कार्तिकेयन ने कहा कि फिल्मों में कई बार शुरुआत में हीरो को कामयाबी नहीं मिलती. जबकि उसके इरादे नेक होते हैं और वो लड़की से शादी करने को तैयार होता है.

2013 में भारतीय दंड संहिता या इंडियन पीनल कोड में बदलाव किया गया था. इसमें सेक्शन 354 के तहत छेड़खानी और पीछा किए जाने को अपराध माना गया है. इस बदलाव में 354D के नाम से एक धारा जोड़ी गई है. जो छेड़खानी और पीछा करने के अपराध से संबंधित है. कोई आदमी जो किसी लड़की का पीछा करता है, उससे संपर्क करता है या उससे जबरदस्ती बात करने की कोशिश करता है. तो वो अपराध की कैटगरी में आता है.

IPC में इस बदलाव के बावजूद पुलिस पीछा करने की शिकायतों को न गंभीरता से लेती है. और न ही उसकी रिपोर्ट दर्ज करती है. बहुत कोशिश करने पर केस दर्ज भी होता है तो 354A के तहत, जो कि छेड़खानी की धारा है.

लेकिन 354A तभी अमल में आता है जब कोई आदमी किसी महिला को यौन संबंध बनाने के लिए जबरन छूता है. या जिस्मानी रिश्ते बनाने का दबाव बनाता है. उसे पोर्न फिल्में दिखाता है, या सेक्सुअल कमेंट करता है. पीछा करने के मामलों में ऐसा कम ही देखने को मिलता है.

बदला लेने का मिल जाता है मौका

अगर मेरी दोस्त ने पुलिस के पास जाकर शिकायत दर्ज कराने की कोशिश की होती तो इसका क्या असर होता? पत्रकार अरुणिमा मजूमदार अपना तजुर्बा बताती हैं.

अरुणिमा का एक पुराना साथी उनका पीछा कर रहा था. ऑनलाइन भी वो उनका पीछा कर रहा था. ऐसा 2013 से 2015 तक चला. जब अरुणिमा इसकी शिकायत के लिए पुलिस के पास गईं. तो पहले तो उन्हें घंटों इंतजार कराया गया. फिर बेफिक्री के साथ आए एक पुलिसवाले ने कहा कि 'प्रधान' यानी अरुणिमा के दोस्त ने कोई अपराध तो किया ही नहीं.

पुलिस ने अरुणिमा की शिकायत दर्ज नहीं की और आरोपी से एक माफीनामा लिखवाकर उसे छोड़ दिया.

अगर किसी आदमी को महिला का पीछा करने के लिए पहली बार सजा होती है. तो वो जमानत हासिल कर सकता है. यानी उसे मौका मिल जाता है जिसमें वो बदला ले सकता है. बार-बार ये अपराध करने पर जमानत नहीं भी मिल सकती है.

मिसाल के तौर पर दिल्ली में लक्ष्मी नाम की एक घरेलू महिला की चाकू से घोंपकर हत्या कर दी गई थी. सितंबर में हुई इस वारदात को संजय कुमार नाम के शख्स ने अंजाम दिया था. वो लक्ष्मी को परेशान करने के आरोप में पहले गिरफ्तार हुआ था. मगर उसे जमानत मिल गई थी.

प्रतिबंध लगाने वाले कानून का सुझाव

2015 में दिल्ली में मीनाक्षी नाम की एक लड़की को भी जयप्रकाश नाम के शख्स ने मार डाला था. क्योंकि मीनाक्षी के घरवालों ने जयप्रकाश के खिलाफ पीछा करने का केस दर्ज कराया था. ये केस मीनाक्षी की हत्या के दो साल पहले दर्ज कराया गया था.

तो क्या ऐसा कोई कानून है. जो ऐसे पीछा करने वालों को पुलिस में शिकायत दर्ज होने के बाद महिला का पीछा करने से रोक सके?

भारत में ऐसा कोई कानून नहीं जो ऐसे लोगों को पीड़ित महिला के करीब जाने से रोके. मगर अमेरिका में ऐसे आरोपियों पर पाबंदी लगाने वाला कानून है. उसके आधार पर भारत में भी ऐसे प्रतिबंध लगाने वाले कानून बनाने का सुझाव दिया गया है.

वकील आरती मुंदकर कहती हैं कि पाबंदियां लगाने वाली अर्जियां सिविल कोर्ट में दाखिल होती हैं. लेकिन ऐसा तभी हो सकता है जब आरोपी पर कोई आपराधिक केस पहले से चल रहा हो. हालांकि किसी के पास जाने या पीछा करने से रोक का आदेश बमुश्किल ही जारी होता है.

दिल्ली की सीनियर वकील रेबेका जॉन ने कहा कि, ये सिविल केस से भी लंबे वक्त तक खिंचते रहते हैं. ये अर्जियां डालने वाले भी काफी हलकान होते हैं.

रेबेका कहती हैं कि किसी भी कानून की सबसे अहम बात होती है कि उसे किस तरह लागू किया जा सकता है. कितनी ताकत से उसका पालन कराया जा सकता है. फिलहाल ऐसी कोई व्यवस्था नहीं जिससे पीछा करने वालों को फिर से पीछा करने से रोका जा सके. कोर्ट अगर आदेश दे भी देता है तो उस आदेश को लागू करना बड़ी चुनौती होगी. ऐसे में अदालत का आदेश भी कागजी कार्रवाई बनकर रह जाएगा.

प्राइवेसी में दखल

कुछ दिनों पहले एक वीडियो ‘The Horribly Slow Murderer with the Extremely Ineffic Weapon’ वायरल हो गया था.

ये एक शॉर्ट हॉरर कॉमेडी फिल्म थी. इसमें एक अजीब सा अजनबी एक आदमी का पीछा करता है. और उसे मारने की कोशिश करता है. ये मजाकिया लगता है क्योंकि वो उसे एक चम्मच से मारना चाहता है. वो अजनबी उस आदमी को लगातार पीछा करते हुए चम्मच से मारता रहता है.

पीड़ित आदमी का धीरे-धीरे दिमागी संतुलन बिगड़ जाता है. क्योंकि पुलिस उसकी शिकायतों को गंभीरता से नहीं लेती. क्योंकि उसकी शिकायतें पुलिस को अजीब लगती हैं. ऐसा ही पीछा करने वाले मामलों के साथ होता है.

पीड़ित को अपनी प्राइवेसी में दखल लगता है. उसे असुरक्षित महसूस होता है. मगर जब वो इसकी शिकायत करता है तो उसे हल्के में लिया जाता है.

किसी आदमी की किसी में दिलचस्पी का एक पहलू ये भी है कि सामने वाले की उसमें दिलचस्पी नहीं भी हो सकती है. और उसे इनकार का पूरा अख्तियार है.