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बनारस डायरी: सुबह-ए-बनारस से जगते, गंगा आरती कर सोते हैं ये घाट

बनारस के घाटों की बदलती तस्वीर

Tabassum Kausar

काशी का मरकज (केंद्र बिंदु) है घाट, पौराणिक-ऐतिहासक, किस्से भी हकीकत भी. कहने को तो कठोर पत्थरों से तराशा गया है लेकिन जब भी गंगा की लहरें टकराती हैं, मानों यह सांस लेता हो.

सच भी है, बनारसीपन को जानना है, काशी को समझना है तो घाट से बेहतर कोई पाठशाला नहीं, कोई साहित्य नहीं. अल्हड़ जिंदगी देखनी हो, फक्कड़ दर्शन समझना हो या मोक्ष की मीमांसा करनी हो, सब इन घाटों पर रचा बसा है. समय के साथ इस शहर का आवरण भी बदला और लाइफस्टाइल भी लेकिन ये घाट ही हैं जहां आज भी बनारस पूरी रवानी से बहता है.


यूं तो सूरज रोज निकलता है, यहां भी निकलता है लेकिन उसे सुबह-ए-बनारस कहते हैं. घाट किनारे जब सूरज निकलता है तो मानो वह गंगा में डुबकी लगाकर निकल रहा हो. शाम को वही सूरज अपनी किरणें जब गंगा की लहरों पर फेरता है और धीरे धीरे सिमटने लगता है तो घाट पूरे सौंदर्य से उसकी विदाई को तैयार होने लगे हैं.

गंगा आरती की साक्षी बनने उमड़ती है भीड़

आरती के दीपों से लकदक और रौशनी से नहाए हुए. चंदन की खुशबू, हवन के मंत्रों के साथ शुरू होती है गंगा आरती. मां गंगा को प्रणाम करते हुए, कृतज्ञता प्रकट करते हुए. भव्य गंगा आरती का साक्षी बनने सात समंदर पार से पर्यटकों का हुजूम बनारस के इन घाटों पर उमड़ता है. मौनी अमावस्या से लेकर छठ पर घाटों की छटा तो देखते बनती है. देव दीपावली को कोई कैसे भूल सकता है जब अनगिनत सितारे इन घाटों पर उतर आते हैं.

गंगा आरती.

देश के कोने-कोने से और विदेशों से सैलानियों के यहां आने से जाहिर है, इसका व्यवसायीकरण भी होगा. सच है, घाट के आसपास रहने वाले लोगों के जीवनयापन का यही आधार है. यही उनकी भूख मिटाता है, घाट पर चलने वाले व्यापार से उनकी गृहस्थी की गाड़ी चल रही है.

चमक के पीछे का स्याह पहलू

लेकिन यह तस्वीर का एक पहलू है. दूसरा पहलू स्याह है, कष्टप्रद है. मोक्षदायिनी गंगा के तट को यहां के रहने वाले, यहां आने वाले श्रद्धालु ही जाने अनजाने गंदा कर रहे हैं. कई सीवर लाइन चोरी छिपे गंगा में गिराए जा रहे हैं. नतीजा, प्रयागराज से चलकर काशी पहुंचने तक इस प्राणदायिनी का रंग ही काला हो चला है. जहां जहां गंगा में नाले गिर रहे हैं चाहे वो रविदास हो, अस्सी हो, गंगा का रंग पूरी तरह से काला पड़ गया है. इसका असर इन घाटों की सीढ़ियों पर भी पड़ा है. पीना तो छोड़िए, स्नान से भी लोग कतराते हैं. हर साल बाढ़ की मिट्टी ने इन सीढ़ियों की चमक धूमिल कर दी है.

तकरीबन तीस साल पहले भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी ने बनारस से ही गंगा को प्रदूषण मुक्त करने का एलान किया था. घोषणा के बाद लगा कि शायद गंगा की सूरत बदलेगी लेकिन सपना अधूरा ही रहा. तीन दशक बाद पीएम मोदी काशी के सांसद बने. नवंबर 2014 में अस्सी घाट से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छता अभियान की शुरुआत की. गंगा सफाई के लिए 20,000 करोड़ की नमामि गंगा परियोजना की शुरुआत हुई लेकिन अब तक जमीनी स्तर पर काम कम ही हो पाया है. हां, फाइलों में भागमभाग जरूर नजर आती है.

पीएम मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे.

पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र की ये है तस्वीर

ऐसा नहीं है कि काम नहीं हुआ. पीएम के आह्वान के बाद कई एनजीओ गंगा व घाट की सफाई के लिए आगे आए. सफाई को गंगा मशीनें भी चलीं, मल्लाहों को सोलर बोट भी दिए गए, हालांकि अब वो गंगा की लहरों पर इठलाती कम ही नजर आती हैं. कई घाटों को गोद लिया गया, वहां साफ-सफाई हुई. अस्सी घाट इसमें गिना जा सकता है लेकिन सभी घाटों की तस्वीर ऐसी नहीं है. सीढ़ियों पर जमी काई और महल की दीवारों पर जमी कालिख अब भी जस की तस है.

प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र होने की वजह से बनारस को वैश्विक स्तर पर एक अलग पहचान मिलने लगी है. पीएम मोदी के साथ जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे का बनारस के घाट पर आना, यहां की अलौकिकता का साक्षी बनना, यहां के सौंदर्य को एक नया आयाम दे गया है.

सिनेमा और मनोरंजन का नया केंद्र

इसे उसी सौंदर्यता और अलौकिकता का ही असर कहें कि पिछले तीन सालों में बनारस के घाटों को केंद्र में रखकर कई बॉलीवुड फिल्में बन गईं तो कई सीरियल्स में बनारस की कहानी को पिरोया जा चुका है. हाल ही में कंगना रनावत ने दशाश्वमेध घाट पर अपनी आने वाली फिल्म मणिकर्णिका का पोस्टर रिलीज करने पहुंचीं. वही मणिकर्णिका जहां संसार के नश्वर होने की बात यथार्थ लगती है. जलती चिताएं मोह माया से निकलने का संदेश देती हैं.

यही नहीं अब तो तकरीबन हर घाट पर गंगा आरती की मनोरम छटा देखने को मिल रही है, कहीं घाट संध्या तो कहीं सांस्कृतिक कार्यक्रमों से घाट गुलजार हैं. हां, ये बात इतर है कि अब यहां एकांत की तलाश में आकर गंगा को निहारने, उससे साक्षात्कार करने के मौके अब यहां कम ही मिलते हैं.

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