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लंबी कहानी: विक्की मल्होत्रा का प्यार...

विक्की मल्होत्रा प्रिया से बेहद प्यार करता था, लेकिन पुलिस ने दोनों के साथ दुर्व्यवहार किया

Nikhil Sachan

20 सितंबर 2013 को छः बजकर बयालीस मिनट पर शाम के झुटपुटे के बीच, गुजरात में एक महत्वाकांक्षी आदमी भारत का प्रधानमंत्री बनने का 'अति-महत्वाकांक्षी सपना' देख रहा था.

ठीक इसी समय दिल्ली की एक बड़ी (नीरस) मल्टीनैशनल कंपनी में, ओवरटाइम पर अपने बॉस से चिढ़ा बैठा, सत्ताईस साल का एक नवयुवक मैनहैटन जाकर उससे भी बड़ी कंपनी में नौकरी करने का 'चमकदार सपना' देख रहा था.


वहीं जोधपुर की सेंट्रल जेल में, पिछले बीस मिनट से एक धर्मगुरु ध्यान में बैठा, एक महिला वैद्य से इलाज़ करवाने का 'सेहतमंद सपना' देख रहा था.

छः बजकर बयालीस मिनट से कुछ घंटे पहले लखनऊ विधानसभा में समाजवादी पार्टी का एक दुबला पतला विधायक, भारतीय जनता पार्टी के एक मोटे-तगड़े विधायक का अधगंजा सर फोड़ने का 'पाक़-पवित्र सपना' देख रहा था.

इन सभी बड़े, ग्रैंड और शानदार सपनों के बीच, विक्की मल्होत्रा दिल्ली के बुद्धा गार्डेन में, प्रिया का इंतज़ार करते हुए एक टुच्चा-सा 'लोअर-मिडिल-क्लास सपना' देख रहा था. प्रिया को प्यार करने का सपना. उसके शरीर को बस एक बार छू लेने का सपना.

इतने सारे सपनों के बीच विक्की मल्होत्रा का सपना ऐसा दिखाई दे रहा था जैसे किसी फाइव स्टार होटल के मेन्यू कार्ड में चिकन और मटन की अफ़गानी, पेशावरी और पंजाबी लज्ज़त के बीच दाल-खिचड़ी की बेहूदी फ़रमाइश.

लेकिन विक्की मल्होत्रा सच में प्यार करना चाहता था. और वो इतनी शिद्दत से प्यार करना चाहता था कि अगर छः बजकर बयालीस मिनट पर उसे देश का प्रधानमंत्री या मैनहट्टन में सीनियर कंसल्टेंट बनाए जाने की पेशकश की जाती, तो उसे बड़ी विनम्रता से ठुकरा कर, बदले में विक्की मल्होत्रा बस प्रिया को प्यार करने का अधिकार मांग लेता.

जब वो बुद्धा गार्डन पार्क में तमाम सारे कपल्स को मुहब्बत करते हुए देखता, तो वो बस यही तमन्ना करता कि एक दिन उसके पास भी प्रिया आकर बैठे और उससे प्यार से बातें करे. वो हौले से उसके बालों पर हाथ फिराकर कहे, ‘विक्की मल्होत्रा, आई लव यू.’ वो 'आई' और 'लव' के बीच कोई और घुसपैठिया या लाग़-लपेट नहीं चाहता था. 'आई रियली लव यू', 'आई एक्स्ट्रीमली लव यू' या फिर 'आई डीपली लव यू' कहे जाने की फ़रमाइश उसे कतई नहीं थी.

वो तो बस आई और यू के बीच में लव को देखना चाहता था. उसे किसी भी तरह के लव से परहेज़ नहीं था. इश्क़ वाला लव, रूमी वाला लव, ख़ुसरो वाला लव, मिल्स और बूंस वाला लव, या फिर समीर के सदाबहार हिट्स वाला लव. वो उन सबसे गुले-गुलज़ार हो सकता था, बशर्ते वो लव प्रिया के साथ वाला लव हो.

चूंकि प्रिया अभी तक आई नहीं है और विक्की अकेले बोर हो रहा है इसलिए मैं इस ख़ाली समय का फ़ायदा उठाकर आपको विक्की के बारे में कुछ और ज़रूरी-सी बातें बता देता हूं.

जैसे कि विक्की मल्होत्रा, विक्की का उसका असली नाम नहीं था. उसका असली नाम सुधीर कुमार था. लेकिन ये नाम उसे लूज़रों वाला लगता था. उसके हिसाब से ये बहुत लाज़मी बात थी कि आज कल की लडकियां सुधीर नाम सुनते ही बिदक जाएं.

जहां सुधीर नाम में एक गरीब-सा देहातीपना था, वहीं विक्की मल्होत्रा नाम में एक अजीब-सा रुतबा था. वो एक अरसे से सोचता रहा था कि सुधीर नाम को तिलांजलि देकर एक नया नाम रख लिया जाए, लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो नया नाम आख़िर हो क्या?

वो नए नाम की तलाश में भटक ही रहा था कि एक दफ़ा उसने शाहरुख़ खान की बाजीगर देखी. जिसमे शाहरुख़ अपना नाम अजय शर्मा से बदलकर विक्की मल्होत्रा रख लेता है और नाम बदलते ही, मदन चोपड़ा (यानी कि दिलीप ताहिर), विक्की मल्होत्रा की क़ाबिलियत से ख़ुश होकर विक्की को अपनी बेटी काजोल और 'पावर ऑफ़ अटर्नी' सौंप देता है.

विक्की मल्होत्रा हार कर जीतने वाला इंसान था. विक्की मल्होत्रा बाजीगर था.

उस दिन सुधीर कुमार रात भर ये सोचता रहा कि शाहरुख़ ने अपना नाम बदलकर विक्की ही क्यों रखा? वो शाहरुख़ है, कोई असरानी या जगदीप तो है नहीं कि कुछ भी बिना सोचे समझे कर देता. और अगर उसका नाम सुधीर ही होता, तो क्या मदन चोपड़ा उसे पावर ऑफ अटॉर्नी देता? इस बात को समझने के लिए उसने अपने दिमाग़ में उस सीन के कई रीटेक लिए.

'सुधीर, ये लो पावर ऑफ अटॉर्नी.'

'सुधीर, मैं तुमको पावर ऑफ अटॉर्नी देना चाहता हूँ.'

"सुधीर, तुम बड़े काबिल हो. मैं अपनी पावर ऑफ़ अटॉर्नी तुम्हारे नाम करता हूं.'

'सुधीर ये लो...सुधीर...सुधीर.....?'

शिट!

किसी भी तरह से 'सुधीर' 'पावर ऑफ़ अटॉर्नी' के साथ फिट नहीं हो पा रहा था. पर जैसे ही विक्की मल्होत्रा ने पावर ऑफ़ अटर्नी की तरफ हाथ बढ़ाया, मदन चोपड़ा ने तुरंत कहा, 'विक्की माई ब्वाय, प्लीज़ तुम कुछ दिन के लिए मेरा क़ारोबार संभाल लो और मैं बेफ़िक्र होकर, इन झंझटों से दूर, थोड़े वक़्त के लिए लिए छुट्टी ले पाऊं.'

बदले में विक्की मल्होत्रा हकलाते-हकलाते हँसा

यदि सुधीर कुमार हकलाते हुए हंसकर मदन चोपड़ा से हाथ मिलाता तो चोपड़ा उसकी जालसाजी तुरंत पकड़ लेता. लेकिन चूंकि उसका नाम विक्की मल्होत्रा था, इसलिए मदन चोपड़ा उसकी चालाकी नहीं पकड़ पाया. मदन चोपड़ा! जो खुद एक छंटा हुआ हरामी था. मदन ख़ुद तो बेवकूफ बना ही, अगले ही सीन में काजोल शाहरुख के बालों से खेलती हुई पाई गई.

जैसे काजोल शाहरुख के आगोश में समा गई थी उसी तरह बुद्धा गार्डेन पार्क में तमाम प्रेमी जोड़े एक-दूसरे के आगोश में समाए हुए थे. उन्हें देखते हुए और प्रिया का इंतज़ार करते हुए, विक्की यही सोच रहा था कि अगर उसने प्रिया को अपना नाम सुधीर कुमार बताया होता तो क्या वो उससे पार्क में मिलने के लिए तैयार होती?

शायद नहीं.

'शायद नहीं' क्या', पूरा नहीं' वाला नहीं.

उसने सोचा कि अगर उन दोनों की शादी का कार्ड छपता तो ‘प्रिया वेड्स सुधीर कुमार’ कितना बेढंगा लगता.

ऐसा नहीं है कि विक्की ने एकबारगी ही प्रिया को प्यार करने (या फिर छू लेने) का सपना देख डाला था. छू लेने की बात तो सोच पाने में उसे तमाम साल लग गए थे. वो तो शाहरुख़ की विचारधारा का था जो कहता था कि प्यार दोस्ती है. उसे मोहनीश बहल एकदम पसंद नहीं था क्योंकि उसने ‘मैंने प्यार किया’ फ़िल्म में सलमान और भाग्यश्री की पवित्र मुहब्बत का मज़ाक ये कहकर उड़ाया था कि 'एक लड़का और लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते.'

एक दिन विक्की ने प्रिया से कहा था कि मोहनीश बहल बेहद ही नीच किस्म का इंसान है और उसे इस तरह के लड़कों से हमेशा बचकर रहना चाहिए. प्रिया भी विक्की की हरेक बात से इत्तेफ़ाक रखती थी और वो दोस्ती की कसौटी को अव्वल नंबरों से पार करने के बाद ही प्यार के हायर-सेकेण्ड्री में दाख़िल होना चाहती थी.

विक्की की इस सोच को समझ पाने के लिए हमें विक्की मल्होत्रा के डी.एन.ए. को पकड़कर हौले-हौले, सिरे से पूंछ तक, समझना होगा और कुछ साल पहले के विक्की मल्होत्रा की ज़िंदगी में टहल कर आने की मशक्कत करनी होगी.

टहल आने में कोई बुराई भी नहीं है क्योंकि प्रिया अभी तक नहीं आई है और विक्की ने उसके इंतज़ार में एक गोल्ड फ्लेक सुलगा ली है.

विक्की मल्होत्रा (यानी कि सुधीर कुमार) छठवीं कक्षा से लेकर बारहवीं कक्षा तक एक ऐसे स्कूल में पढ़ा था जहां पर लड़कियां नहीं पढ़ती थीं. पढ़ते तो वहां लड़के भी नहीं थे लेकिन स्कूल ज़रूर आते थे. लड़कियां उस स्कूल में वैसे ही नहीं आती थीं जैसे हथेली पर बाल या बाल में खाल. ये एक ब्वाय्ज़ स्कूल था.

इसे स्कूल नहीं, विद्यालय कहा जाता था और यहां पर लंगोट, विज्ञान से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण फ़लसफ़ा हुआ करता था. मुहब्बतें फ़िल्म के अमिताभ बच्चन की तरह इस विद्यालय का प्रिंसिपल परंपरा, प्रतिष्ठा और अनुशासन की ढपली बजाता था और अमिताभ से भी चार कदम आगे सदाचार, संयम और ब्रह्मचर्य को जीवन का सबसे ज़रूरी पहलू समझता था.

ये एक हॉस्टल था जहां से बाहर निकलने की अनुमति महीने में एकाध बार ही दी जाती थी. बाहरी दुनिया से ताल्लुक़ रखने के लिए फिल्में और मोबाईल फोन भी यहाँ मयस्सर नहीं थे. ऐसा माना जाता था कि फिल्में हमारी संस्कृति और सभ्यता का विनाश करने के लिए बनाई जाती हैं और इसमें ज़रूर विदेशी ताकतों का हाथ है. कुछ एक मनचले किस्म के लड़कों ने दो-एक बार विद्यालय की बाउन्ड्री फांदकर सिनेमाघर जाने की कोशिश की, तो प्रिंसिपल साहब ने उनका सर मुड़वा कर दिन भर के लिए उन्हें चप्पलों के ढेर में बिठाकर रखा.

ऐसे माहौल में पढ़ते-लिखते, जब विक्की मल्होत्रा एक आदर्श बालक बनने की पुरजोर कोशिश कर रहा था तब उसके अधिकतर दोस्त गंदी फिल्में देखने में मगन थे. लेकिन तब भी विक्की मल्होत्रा अपने भीतर पैदा होती किसी भी प्रकार की ‘वासना’ पर काबू पाना चाहता था और ब्रह्मचर्य का ज्वलंत उदाहरण हो जाना चाहता था.

पर तुर्रा ये, कि विक्की तो चरित्रवान था लेकिन उसका हाथ चरित्रहीन किस्म का था.

उसका दिमाग दाएं चलने को कहता था तो उसका हाथ चुपचाप बाएं चल आता था. कभी-कभी उसका जी करता था कि वो अपना हाथ काटकर फेंक दे. लेकिन हाथ काटने के लिए भी हाथ की ज़रूरत होती है. वो ज़्यादा-से-ज़्यादा एक हाथ ही काट सकता था लेकिन ऐसा उसने इसलिए नहीं किया क्योंकि उसे पूरा यक़ीन था कि एक हाथ की अनुपस्थिति में, उसका दूसरा हाथ वो ज़लील हरकतें करना कभी नहीं छोड़ेगा.

लेकिन इन इक्का-दुक्का मौकों की बात छोड़ दी जाए तो विक्की मल्होत्रा एक आदर्श बालक था और ऐसा बिल्कुल नहीं है कि विक्की अपने चरित्र की इस कमज़ोरी पर शर्मिंदा नहीं होता था. विक्की मल्होत्रा कुंठा, यानी कि फ्रस्ट्रेशन का शिकार होता जा रहा था और अपनी हर नाक़ामी पर उसे गंभीर रूप से अपराधबोध होता.

इसलिए उसने क़सम खाई थी कि बारहवीं कक्षा पास करने तक विक्की इन सब गलत हरकतों से पूरी तरह दूरी बनाकर रखेगा और इसी क़सम के चलते, तब जबकि कॉन्वेंट में पढ़ने वाले लड़के-लड़कियां लव यू, मिस यू और फ्रेंड्स फॉर-एवर वाले क्यूट ग्रीटिंग कार्ड्स एक्सचेंज करने में लगे हुए थे, उस वक़्त हमारा विक्की मल्होत्रा आसाराम बापू के अजीम शाहकार ‘यौवन सुरक्षा’ में अपना माथा फोड़ रहा था.

हो सकता है कि आप ये भी समझ रहे हों कि इसका विक्की मल्होत्रा के प्यार या फिर विक्की मल्होत्रा के सपने से घंटा लेना-देना नहीं है. लेकिन मुझे लगता है कि ये सब बताना बेहद ज़रूरी है और अगर मैं आपको ये सब नहीं बताऊंगा तो आप ये कभी नहीं समझ पाएंगे कि विक्की इतनी शिद्दत से प्रिया को प्यार करना और छूना क्यों चाहता था.

प्रिया. जो कि यहां अपने घर से बुद्धा गार्डेन पार्क के लिए निकल चुकी थी और उसने पीले रंग का सलवार सूट पहना हुआ था और दुपट्टे पर नीले रंग की छींट का सुंदर काम था. उसने ऑटो में बैठते ही विक्की को मैसेज भेजा-  'रीचिंग इन टेन मिनट्स डियर.' विक्की ने मैसेज को पढ़ते ही सिगरेट बुझा दी और अपनी आंखों को बंद करते हुए गहरी सांस ली.

पता नहीं उसने गहरी सांस कोशिश करके ली थी या फिर प्रिया का मैसेज पढ़ने से उसे गहरी सांस ख़ुद-ब-ख़ुद आ गई. क्योंकि सांस उसे ऐसे ही आई थी जैसे बारिश में गीली मिट्टी की महक उठने पर भुट्टा खाने की तलब आती है या फिर फरवरी की लंबी सर्द रातों की आमद पर चाय का गिलास हाथों में पकड़ने की तलब अपने आप ही आती है.

विक्की आंखें मींच कर मिनट भर के लिए एक नई सुनहरी दुनिया में कूद गया और वो अपनी बढ़ी हुई धडकनों को सुन सकता था. वहां बस विक्की था और प्रिया थी. वहां वो प्रिया को छू सकता था और प्रिया उसकी छुअन पर सिहर रही थी, खिल रही थी और बिना कुछ कहे विक्की को ये जता-सिखा रही थी कि वो उसे कहां-कहां और कैसे-कैसे छू सकता है. छू लेना विक्की के लिए जान लेने जैसा था. एक ऐसी गुत्थी को सुलझा लेने जैसा था जिसे वो तमाम सालों से सुलझाना चाहता था. लेकिन विक्की प्रिया को डरते-सिहरते ही छू रहा था, उतना ही जितना कि ज़रूरी हो. उतना कि जितना प्यार में किया जाता हो.

जल्दी ही विक्की की आंख ये सोचते ही खुली कि उसे बाबा-इलायची या पिपरमिंट खा लेना चाहिए. उसने हड़बड़ी में जेब में हाथ डाला तो किस्मत से मिंट की दो गोलियाँ बची हुई थीं.

प्रिया का इंतज़ार करते हुए, मिंट की गोलियां खाते हुए विक्की सोच रहा था-

क्या उसे प्रिया को बता देना चाहिए कि उसका असली नाम 'सुधीर कुमार' है?

क्या प्रिया, सुधीर कुमार को उसी तलब-तड़प से चूमेगी जिससे कि वो विक्की मल्होत्रा को चूमने वाली है?

क्या प्रिया सुधीर कुमार को 'चुंबन' देने से उसी तरह मुक़र जाएगी जिस तरह से विक्की के ख़यालों में मदन चौपड़ा सुधीर कुमार को पॉवर औफ़ अटर्नी देने से मुक़र गया था?

विक्की ने लकड़ी का एक छोटा-सा टुकड़ा उखाड़ कर, पोली मिट्टी पर पहले सवाल का जवाब लिखा: 'नहीं.' वैसे तो दूसरे सवाल का जवाब भी ‘नहीं’ ही होता लेकिन तुरंत उसका जवाब 'न' में लिख देना उसे अपने पवित्र-पाक़ प्यार ('प्यार दोस्ती है' से शुरू हुए प्यार) का अपमान मालूम हुआ. इसलिए उसने दुसरे सवाल का जवाब लिखा: ‘शायद’ और वो तीसरे सवाल की ओर बढ़ चला.

तीसरा सवाल बेहद पेंचीदा था और विक्की उसका जबाव सोच ही रहा था कि उसने एक जानी-पहचानी ख़ुश्बू महसूस की. प्रिया की ख़ुश्बू.

टैलकम पाउडर की ख़ुश्बू. डियोड्रन्ट की ख़ुश्बू. धुले हुए बालों की ख़ुश्बू.

वो एक छोटे बच्चे के उत्साह से पीछे मुड़ा तो उसका चेहरा प्रिया के दुपट्टे से ढक गया. प्रिया विक्की के चेहरे से अपना दुपट्टा हटाए बिना विक्की के बगल में बैठ गई क्योंकि उसे हर बार से कुछ अधिक शर्म आ रही थी. 'कुछ अधिक' इसलिए क्योंकि वो कभी विक्की से सटकर नहीं बैठती थी.

अमूमन विक्की से न सटने की वजह ये थी कि उसे ‘सटने’ की कल्पना मात्र से ही ‘हरारत’ होने लगती थी. हरारत इसलिए क्योंकि वो शायद कभी किसी से (अपनी इच्छा से) सटी नहीं थी. उसने अपनी मर्ज़ी से किसी की छुअन को देर तक महसूस नहीं किया था.

हालांकि, छुअन से उसका परिचय हुआ ज़रूर था लेकिन छुअन उसे अच्छा अनुभव देकर नहीं गई थी. छुअन उसके हिस्से में या तो तब आई थी जब उसने उसकी ख्वाहिश नहीं जताई थी या फिर तब आई थी जब वो ये समझने के लायक भी नहीं थी कि छुअन के समीकरण के वैरिएबल क्या-क्या होते हैं.

मतलब उसकी कहानी छोटे तबके के घरों में रहने वाली हिंदुस्तानी लड़कियों से इतर नहीं थी.

छुअन की कशिश और शिद्दत के लिहाज़ से विक्की और प्रिया एक ही पेज पर थे. वो इस समय एक-दूसरे से सटे ज़रूर थे लेकिन इसके आगे की कार्यवाही फिलहाल उनके बस के बाहर थी. उन दोनों के बीच बस यही संभव हो पाया था कि विक्की की बड़ी उंगली, प्रिया की छोटी उंगली से गले मिलने आ पहुंची थी. ये आलिंगन उन दोनों के बीच का अकेला-पहला संपर्क सूत्र था.

जैसे किसी ने बिजली के पतले तार से, बिजली के मोटे तार पर कटिया मार दी हो और बिजली का आदान-प्रदान शुरू हो गया हो.

कटिया मारते ही, विक्की और प्रिया एक-दूसरे की सांसों की आवाज़ साफ़-साफ़ सुन सकते थे. क्योंकि इस वक़्त उनकी सारी इंद्रियां अपनी क्षमता से अधिक काम कर रही थीं. वो अधिक सुन सकते थे, अधिक देख सकते थे, अधिक छू सकते थे, अधिक सूंघ सकते थे और अधिक स्वाद ले सकते थे.

ये विक्की और प्रिया की ज़िंदगी का अभी तक का सबसे हसीन लम्हा था. और सबसे ताक़तवर भी. ताक़तवर इसलिए क्योंकि इस छोटे से लम्हे ने भारी-भरकम वक्त को रोक दिया था. वो वक़्त जो कभी किसी के लिए रुकता नहीं है, उसे इस चूज़े से लम्हे ने कान पकड़कर बिठा दिया था.

विक्की और प्रिया जब भी इस दिन को याद रखेंगे तो इसी बात के लिए याद किया करेंगे कि इस दिन उन दोनों ने एक-दूसरे को पहली बार छुआ था. हालांकि, बाकी की दुनिया इस दिन को ‘यदि’ याद करेगी तो कुछ ज़रूरी और महत्त्वपूर्ण बातों के लिए याद करेगी. महत्त्वपूर्ण. जैसे कि इस दिन यमन की मिलिट्री और अल क़ायदा की मुठभेड़ के बीच 46 लोग मारे गए.

ईरान के राष्ट्रपति ने सीरिया की सरकार से ‘सिविल वार’ के सिलसिले में बात-चीत करने की इच्छा जताई.

एप्पल ने जापान में आई फ़ोन 5S और 5C लांच किया.

अरमानी ने मिलान में स्प्रिंग-समर कलेक्शन पेश किया.

और एलेक्स रोड्रीगेज़ ने न्यूयार्क यैंकीस के लिए 24 ग्रैंडस्लैम होमरन्स का रिकार्ड बनाया.

फिर भी, विक्की और प्रिया की प्रेम कहानी, इन बेहद-ज़रूरी घटनाओं के बीच, अपनी गैर-ज़रूरी उपस्थिति दर्ज़ कराने की कश्मकश में उबाल ले रही थी.

तब, जबकि वो दोनों इतिहास के इस लम्हें में अमर हो जाना चाहते थे. विक्की ने अचानक महसूस किया कि किसी ने उसकी पीठ पर लकड़ी की छड़ी (या फिर डंडे) से जोर का वार किया है.

विक्की ने मुड़ कर देखा, तो मोहनीश बहल जैसा दिखने वाला एक पुलिस, दो पुरुष और तीन महिला पुलिसकर्मियों के साथ खड़ा, गुस्से में फनफना रहा था. मोहनीश बहल और और उसके पांचों साथियों ने पूरी उदारता के साथ, अपने-अपने मुंह से गालियों का फ़व्वारा खोल रखा था.

जिस तरह सभी नदियां और झरने, आख़िरकार, समंदर में मिल कर समंदर हो जाते हैं और उनका ख़ुद कोई अस्तित्व नहीं बचता. उसी तरह मोहनीश और उसके साथियों की गालियां, अपना ग़ाली-नुमा गलीज़ अस्तित्व खोकर, विक्की की मां-बहनों में मिलकर मां-बहन हो जा रही थीं. हालांकि, विक्की को ग़ालियों की जगह, बस यही सुनाई दे रहा था.

'एक लड़का और लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते.'

हालांकि, मोहनीश बहल कुछ और कह रहा था.

'साले, बड़ी आग लगी है तुम लोगों को. डंडा मार-मार के आज सारी अगन न बुझाई तो मैं अपने बाप का नहीं. इतनी ही खुजली है तो साले होटल क्यों नहीं कर लेते हो तुम लोग?'

अचानक पार्क में साफा बांधे हुए तमाम नव युवक फूट कर बिखर आए जो एक मिनट में देश की सभ्यता और संस्कृति को नुकसान पहुंचाने वाले लड़के-लड़कियों को ऐसा सबक सिखा देना चाहते थे जो उन्हें ज़िंदगी भर याद रह जाए(मैं आपको उनके साफे का रंग नहीं बताऊंगा). जब तक विक्की कुछ समझ पाता, उनमें से एक 'कल्चर-विजिलान्टे' ने प्रिया के बाल पकड़ कर उसे ज़मीन पर पटक दिया और उसे कस-कर थप्पड़ रसीद दिया.

मोहनीश बहल ने इस बात का विरोध नहीं किया और उसकी महिला पुलिसकर्मी साथियों ने 'कल्चर-विजिलान्टे' की हरकत से 'क्यू' लेते हुए प्रिया को थप्पड़ रसीदने की कार्यवाही आगे बढ़ानी शुरू की. बेसुध होती हुई प्रिया इस बात से हैरान हो रही थी कि ये कौन-सी महिलाएं हैं जिनके हाथों में पुरुषों से अधिक जान है. ताक़त भी और वहशियत भी. एक वक़्त ममता सींचने वाले इन हाथों में इतनी निर्ममता कहां से आ ठहरती है.

वो चिल्लाते हुए ये भी पूछ रही थी कि वो उसे क्यों मार रही हैं और आखिरकार उसने ऐसी क्या गलती कर दी है कि उसके साथ ऐसा बर्ताव किया जा रहा है. जो हद दर्ज़े की गलीज़ औरतों के साथ किया जाता है.

वैसा बर्ताव, जैसा उसका मामा, प्रिया की मामी के साथ करता था क्योंकि उसकी मामी अक्सर घर से बाहर जाने पर दुपट्टा लेना भूल जाती थी. उसके हिसाब से ये गलीज़ औरतों की पहली निशानी हुआ करती थी. लेकिन प्रिया तो आज भी दुपट्टा डालना नहीं भूली थी.

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विक्की, जो अभी तक जड़ खड़ा था, वो जोर से चिल्लाया और इतनी जोर से चिल्लाया कि महिला पुलिसकर्मी कांप गईं. मोहनीश बहल विक्की की इस धृष्टता पर गुस्से में आगे बढ़ा और उसने विक्की का कॉलर पकड़ लिया. विक्की ने उसका हाथ अपने कॉलर से छुड़ाते हुए उसके पेट पर जोर की लात मार दी.

'साले पुलिस वाले हो तो क्या लड़की पर हाथ उठाओगे तुम लोग. प्रिया को मारोगे तुम. साले हाथ ही तो पकड़े हुए थे और क्या कर रहे थे. तुम साला दो कौड़ी का आदमी जान ले लेंगे हम तुम्हारी.'

विक्की मोहनीश बहल की छाती पर बैठ गया था और घूसे मार-मार कर उसका मुंह तोड़ देना चाहता था. मोहनीश बहल की नाक से खून का फ़व्वारा फूट पड़ा था. ये वो गलती थी जो विक्की को नहीं करनी चाहिए थी. सारे सिपाहियों और साफा-धारियों ने विक्की को धक्का मारकर ज़मीन पर पटक दिया.

थोड़ी ही देर में विक्की मल्होत्रा खून में लिथड़ा हुआ पड़ा था. आंख पर खून होने की वजह से वो ये भी नहीं देख पा रहा था कि प्रिया रोते हुए, कान पकड़ कर, उठक-बैठक लगा रही थी और साफा पहने हुए लोग (जिसका रंग मैं आपको नहीं बताना चाहता) बीच-बीच में, प्रिया को, इधर उधर छू कर ढंग से उठक बैठने करने का आदेश दे रहे थे.

प्रिया के पीले रंग के सलवार सूट का दुपट्टा (जिस पर नीले रंग की छींट का सुंदर काम था) ज़मीन पर गिर गया था, जिसे वो उठक-बैठक लगाने के दौरान उठा लेना चाहती थी. लेकिन उसकी इस ख्वाहिश को ये कहके खारिज़ कर दिया गया कि जब वो यहां दुपट्टा सरकाने ही आई थी, तो अब उसे उठाने का नाटक क्यों कर रही है.

वो प्रिया को आज ऐसा सबक सिखाना चाहते थे जिससे कि वो दुबारा उनकी संस्कृति और सभ्यता को खुले में गंदा करने से पहले दस बार सोचे. उनमें से एक ने प्रिया को बताया कि वो *** है. दूसरे ने प्रिया को छाती पर छू कर पूछा, 'बहुत आग लगी हुई है यहां?' तीसरे ने सलाह दी कि उसके जैसी छिनार को जीबी रोड पर जाकर बैठ जाना चाहिए.

विक्की मल्होत्रा आंख पर खून होने की वजह से ये भी नहीं देख पा रहा होगा कि प्रिया रोते-रोते पार्क से बाहर भाग रही है. वो बे-इन्तहा डरी हुई है. इतना कि अब वो शायद दुबारा कभी विक्की का फोन भी नहीं उठाएगी. महिला पुलिसकर्मी ने केस को वहीं शट-डाउन करने की इच्छा से प्रिया के घर वालों को इस बात की इत्तला कर भी दी थी कि उनकी बेटी एक नंबर की छिनाल है.

प्रिया (उर्फ़ छिनाल) भागते हुए ये सोच रही थी कि आज अगर वो घर नहीं जाएगी तो कहां जाएगी. उसके घर में उसके जैसी लड़कियों के लिए कोई जगह नहीं थी. क्योंकि उसके घर में पहले उसके मामा के लिए ज़गह थी. उसके बाद प्रिया के लिए.

आंख पर खून होने की वज़ह से विक्की मल्होत्रा ये भी नहीं देख पा रहा होगा कि फटे कपड़ों में प्रिया बुद्धा पार्क से धौला कुआं की रोड के तरफ़ बेसुध दौड़ रही है और भारतीय सभ्यता के चार रक्षक एक जिप्सी में उसका पीछा कर रहे हैं. प्रिया के फटे कपड़े, फटी हुई भारतीय संस्कृति को उजागर कर रहे थे और प्रिया (उर्फ़ छिनाल) इतना भी नहीं समझ रही थी कि फटे कपड़ों में सड़क पर दौड़ना भारतीय सभ्यता को किस हद तक शर्मसार कर रहा था.

ये तो भला हो भारतीय सभ्यता के उन रक्षकों का, जो साफा बांधकर जिप्सी में आए और प्रिया को गाड़ी में डालकर धौला कुआं के बियाबान की और ले गए और वहां उसे ऐसा सबक सिखाया कि अब वो कभी भी इतनी घटिया हरक़त करने की कोशिश नहीं करेगी.

इधर, बुद्धा गार्डन में विक्की मल्होत्रा जैसे-तैसे सुध बटोर कर वापस उठा और वो दोबारा मोहनीश बहल को गिराकर उसकी छाती पर बैठ गया और अपने हाथों की पूरी शक्ति बटोरकर उसने मोहनीश को तब तक घूसे मारे जब तक कि चरित्र के रक्षकों ने पीछे से मार-मार कर विक्की को अधमरा नहीं कर दिया.

वैसे तो विक्की चरित्रवान था. मगर उसका हाथ ही चरित्रहीन किस्म का था.