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बजट 2018: हाउसिंग और इंफ्रा पर सरकार का फोकस बरकरार

पिछले चार सालों में इंफ्रास्ट्रक्चर में सरकारी निवेश मनमोहन सिंह के समय से दोगुने से ज्यादा हो गए हैं

Rajesh Raparia

इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश को मनमोहन सिंह के राज में भी भारी प्राथमिकता थी. वित्त मंत्री एक बार नहीं, कई बार कह चुके हैं कि बैंकों के बेकाबू खराब कर्जों में (एनपीए) मनमोहन सिंह राज के दौरान इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को दिए गए अंधाधुंध कर्जों का सबसे बड़ा हाथ है. पर मोदी राज में भी इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश सर्वोच्च प्राथमिकताओं में बना हुआ है और इंफ्रास्ट्रक्चर में सरकारी निवेश भारी इजाफा हुआ है.

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पिछले चार सालों में इंफ्रास्ट्रक्चर में सरकारी निवेश मनमोहन सिंह के समय से दोगुने से ज्यादा हो गए हैं. इस क्षेत्र में स्मार्ट सिटीज, बुलेट ट्रेन, भारतमाला, सागरमाला जैसी लाखों करोड़ रुपए के कार्यक्रमों की घोषणा की गई. 2022 तक कमजोर तबकों को सबसे मकान देने के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत सरकारी सहायता और ब्याज सब्सिडी का दायरा भी बढ़ाया गया. ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर को भी चौकस करने के लिए काफी यत्न किए गए हैं.

आगामी बजट 2018-19 पर अनेक राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक दबाव हैं. इस बजट में मिडिल क्लास को आयकर में छूट देनी है. किसानों के बढ़ते असंतोष को दूर करने के लिए कृषि बजट का आवंटन बढ़ाना है. कॉरपोरेट क्षेत्र भी तमाम राहत चाहता है. अर्थव्यवस्था और जीडीपी ग्रोथ में छायी सुस्ती को तोड़ने के लिए भी इंफ्रास्ट्रक्चर में सरकारी निवेश बढ़ाना सरकार की अनिवार्यता है. पिछले बजट में इस निवेश में 24 फीसदी की वृद्धि की गयी थी. जाहिर है कि आगामी बजट में भी इंफ्रास्ट्रक्चर के सरकारी निवेश में बढ़ोतरी बरकरार रखी जाएगी.

इंफ्रा व्यय में दोगुने से अधिक वृद्धि 

वित्त वर्ष 2013-14 में सरकारी खाते में इंफ्रास्ट्रक्चर को 1.66 लाख करोड़ रुपए दिए गए थे, जो 2016-17 में बढ़ कर 2.21 लाख करोड़ रुपए हो गए. 2017-18 में यह राशि बढ़ कर 3.96 लाख करोड़ रुपए हो गई. यानी चार सालों में इंफ्रास्ट्रक्चर में व्यय पर दोगुने से अधिक की वृद्धि की गई. 2017-18 में रेलवे को 1.31 लाख करोड़ रुपए मिले, जो बजट इतिहास में अब तक की सर्वाधिक राशि है. राष्ट्रीय राजमार्गों के लिए बजट में 64 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया.

एक लाख करोड़ रुपए की लागत से आगामी पांच सालों में एक लाख करोड़ रुपए से रेल सुरक्षा कोष के निर्माण की घोषणा की गयी था. 2019 से 2022 तक नए राष्ट्रीय राजमार्गों को बनाने के लिए 3.43 लाख करोड़ रुपए की जरूरत होगी. यानी सड़क निर्माण को आगामी बजट में तकरीबन 20-25 हजार करोड़ रुपए अधिक मिल सकते हैं.

सड़क यातायात और राजमार्ग और मंत्रालय के मंत्री नितिन गडकरी के अनुसार आगामी पांच सालों में इंफ्रास्ट्रक्चर में 25 लाख करोड़ रुपए निवेश की आवश्यकता होगी. सड़क जहाजरानी समेत इंफ्रास्ट्रक्चर के इस निवेश से जीडीपी ग्रोथ तीन फीसदी बढ़ जाएगी.

बदल जाएगी देश की तस्वीर

भारतमाला, सागरमाला और प्रस्तावित सीप्लेन योजना से देश की तस्वीर बदल जाएगी. यह कहना है केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का. भारतमाला केंद्र सरकार एक बड़ा महत्वकांक्षी कार्यक्रम है. इसके तहत 2022 तक 6.92 लाख करोड़ के निवेश से 83 हजार 677 किलोमीटर नई सड़कें बनाई जानी हैं. इसके पूरा हो जाने के बाद आर्थिक गतिविधियों के बढ़ने से 2.2 करोड़ नए रोजगार पैदा होंगे और इससे लॉजिस्टिक लागत जैसे यातायात, भंड़ारण आदि की लागत एक तिहाई रह जाएगी.

सागरमाला कार्यक्रम से देश के बंदरगाहों, जल परिवहन और तटवर्ती क्षेत्रों की तस्वीर भी पूरी तरह बदल जाएगी. इस कार्यक्रम में 415 परियोजनाएं शामिल हैं. जिन पर तकरीबन 8 लाख करोड़ (नितिन गडकरी के अनुसार 16 लाख करोड़ रुपए) खर्च होंगे. इसके तहत 6 नए बंदरगाहों का निर्माण होगा. मौजूदा बंदरगाहों का आधुनिकीकरण होगा जिन पर एक लाख 42 हजार करोड़ रुपए खर्च होंगे.

बंदरगाहों के जुड़े क्षेत्रों के औद्योगिकीकरण की 33 परियोजनाएं हैं जिन  पर 4 लाख 20 हजार करोड़ रुपए का व्यय होगा. यह कार्यक्रम कई चरणों में 2035 तक पूरा होगा. इस कार्यक्रम से देश के निर्यातों को काफी प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद है और जीडीपी में 2 फीसदी की बढ़ोतरी का अनुमान है.

गांवों में भी उड़ेंगे हवाई जहाज 

सपने दिखने में नितिन गडकरी का कोई जवाब नहीं. हवाई क्षेत्र उनका मंत्रालय नहीं है. लेकिन उनका कहना है कि सीप्लेन (जलचर हवाई जाहज) यातायात के विकास से देश में यातायात की सूरत ही बदल जाएगी. जलचर हवाई जहाज ऐसा विमान होता है जिसमें पहिए नहीं होते हैं और यह जल सतह से उड़ सकता है और उस पर उतर सकता है.

गडकरी का कहना है कि देश में 3-4 लाख तालाब हैं, सैंकड़ों बांध हैं, 2 हजार से ज्यादा नदी पोर्ट हैं. सी प्लेन एक फुट गहरे पानी पर उतर सकता है और उड़ान भरने के लिए महज 300 मीटर की जल सतह चाहिए. यह 400 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ सकता है. गडकरी के इस प्रस्ताव के अमल होने पर आप गांवों की यात्रा भी हवाई जहाज से कर पाएंगे. गडकरी का कहना है कि सी प्लेन, क्रूइस, इलेक्ट्रिकल व्हीकल, पोंड टैक्सी, बेड़ों (कैटामारैन), एक्सप्रेस मार्गों के साथ 16 लाख करोड़ रुपए की सागरमाला और 7 लाख करोड़ रुपए की भारतमाला से देश की सूरत ही बदल जाएगी.

लक्ष्य में पीछे गडकरी 

गडकरी मोदी मंत्रिमंडल के तेज तर्रार मंत्री माने जाते हैं. उनके ही मंत्रालय को इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश का बड़ा हिस्सा मिलता है. मोदी सरकार में उनके कामकाज को बेहतर माना जाता है. पर गडकरी अपने लक्ष्य से काफी पीछे चल रहे हैं. उनके मंत्रालय को रोजाना तकरीबन 41 किलोमीटर सड़कों के निर्माण से 2017-18 में 15 हजार किलोमीटर राजमार्ग का निर्माण करना है.

लेकिन बीते नवंबर तक प्राप्त जानकारी के अनुसार 4944 किलोमीटर के नए राजमार्ग का निर्माण ही हो पाया है, तकरीबन रोजाना 20 किलोमीटर सड़क का निर्माण यानी लक्ष्य का लगभग आधा. इस गति से मार्च 2018 तक महज 2451 किलोमीटर के नए राजमार्ग और बन पाएंगे.

यदि उन्हें 2017-18 में तय लक्ष्य 15 हजार किलोमीटर राजमार्गों का निर्माण करना है, शेष चार महीनों में तकरीबन 83 किलोमीटर रोजाना के हिसाब से सड़क निर्माण करना होगा.मौजूदा इस रफ्तार से तो 2022 तक भारतमाला का सपना साकार होना बेहत कठिन लगता है.

रेलवे भी पटरी से उतरी 

सार्वजनिक निवेश का सबसे बड़ा हिस्सा भारतीय रेलवे को मिलता है. 2017-18 में रेलवे के खाते में 1.31 लाख करोड़ रुपए आए हैं. लेकिन रेलवे का कार्य निष्पादन निराशाजनक ही रहा है. वैसे नई पटरी डालने में रेलवे का ट्रैक रिकॉर्ड पिछली सरकार से बेहतर रहा है, पर उतना नहीं, जितना दावा किया जाता है.

प्रधानमंत्री मोदी भी दो बार दावा कर चुके हैं, कि नई रेल पटरियों डालने की गति यूपीए काल से दोगुनी हो चुकी है. पर उनका दावा उपलब्ध तथ्यों पर पूरा नहीं सही है. 2017-18 में रोजाना नई पटरी डालने की रफ्तार में गिरावट आई है. उपलब्ध जानकारी के अनुसार 17 अगस्त 2017 तक चालू साल के 139 दिनों में 717 किलोमीटर की नई पटरियां डाली गई हैं. यानी रोजाना 5.5 किलोमीटर रोजाना जो 2016-17 पटरी डालने की रफ्तार 7.8 किलोमीटर रोजाना से काफी कम है.

2017-18 में रेलवे का 3500 किलोमीटर पटरी डालने का लक्ष्य है. यानी शेष अवधि में इस लक्ष्य को पाने के लिए रेलवे को रोजाना 12.20 किलोमीटर की नई पटरियां डालनी होंगी, जो संभव नहीं दिखाई देता है. फिर भी रेलवे ने इस बार 1.46 लाख करोड़ रुपए की मांग वित्त मंत्री से की है.

सबको आवास और एनपीए का बोझ 

प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 2022 तक देश के हर कमजोर को छत मुहैया कराना है. प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण के तहत 2022 तक तीन करोड़ मकान बनाने का लक्ष्य है. पहले चरण में 2019 तक एक करोड़ मकानों का निर्माण होना है.

यह योजना सरकारी आंकड़ों के हिसाब से अपने लक्ष्य के अनुरूप चल रही है, जो मोदी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है. पर प्रधानमंत्री आवास योजना शहरी अपने लक्ष्य से काफी पीछे चह रही है. इस योजना के तहत शहर के कमजोर वर्ग को संशोधित लक्ष्य के अनुसार 2022 तक 1.2 करोड़ मकान बनाने हैं.

कई सरकारी राहत और सहायता के बावजूद 2017-18 में महज 12 लाख मकानों का ही निर्माण हो पाएगा. पिछले साल यानी 2016-17 में केवल 1.49 लाख मकानों का ही निर्माण हो पाया. यानी अब चारों सालों में तकरीबन एक करोड़ मकान मोदी सरकार को बनाने होंगे और मूल लक्ष्य के अनुसार तकरीबन 1.6 करोड़ मकान. योजना की मौजूदा हालात से लगता है कि यह योजना विफलता के कगार पर खड़ी है.

पर प्रधानमंत्री आवास योजना में लक्ष्य हासिल करने की हड़बड़ी में बैंकों के छोटे आवास कर्ज देने में एनपीए (खराब कर्ज) खातों की संख्या तेजी से बढ़ रही हे. इस योजना में नगद सहायता व राहतों के बावजूद इन कर्जों में एनपीए का बढ़ना बैंकों के लिए खतरे की नई घंटी है.

प्रधानमंत्री आवास योजना में सरकार कमजोर वर्ग (जिनकी आय सालाना तीन लाख रुपए है) के लिए 6.5 फीसदी की ब्याज सब्सिडी भी देती है. इसके बावजूद 2 लाख रुपए तक के आवास कर्जों में से 10 फीसदी कर्ज खराब यानी एनपीए हो चुके हैं, जबकि कुल आवास कर्ज में खराब कर्जों का प्रतिशत महज 1.1 फीसदी है. बैंक विशेषज्ञों को डर है कि अब ब्याज दर बढ़ने से ऐसे कर्जों के खराब होने की संख्या में और बढ़ोतरी हो सकती है.

नहीं मिलते सितारें

इसमें कोई संदेह नहीं है कि मोदी राज में इंफ्रास्ट्रक्चर, ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर और आवास योजनाओं के व्यय में इजाफा हुआ है. सामान्य धारणा है कि सार्वजनिक निवेश खास कर इंफ्रास्ट्रक्चर, ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर के बढ़ने से जीडीपी ग्रोथ में वृद्धि होती है और अर्थव्यवस्था में चमक रहती है.

लेकिन मोदी राज के चारों सालों में यह निवेश तो बढ़ा, लेकिन जीडीपी ग्रोथ भी चार सालों में न्यूनतम तक पहुंच गयी. ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर और कृषि में भी इस दरमियान निवेश में काफी इजाफा हुआ है, पर कृषि विकास दर साल 1991 के बाद सबसे कम  हो गयी है. किसानों में, ग्रामीणों में भारी असंतोष है जो मोदी सरकार के लिए सबसे बड़ी परेशानी का सबब है.

रोजगार सृजन भी औसत रूप से काफी कम है. लगता है कि इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश और प्रधानमंत्री मोदी के सितारों में छत्तीस का आंकड़ा है.पर इसक समाधान ज्योतिष में नहीं,अर्थव्यवस्था में ही छुपा हुआ है. अर्थव्यवस्था में पर्याप्त मांग और निजी निवेश की कमी से इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश का अपेक्षित लाभ मोदी सरकार  को नहीं मिल पा रहा है.