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Reciprocal Tax: अमेरिका-चीन की लड़ाई में पिस जाएगा इंडिया?

चीन और अमेरिका एक दूसरे पर रेसिप्रोकल टैक्स थोप रहे हैं लेकिन इसका असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा पड़ रहा है

Pratima Sharma

1991 में भारतीय बाजार दुनिया के लिए पहली बार खोला गया था. तब के फाइनेंस मिनिस्टर डॉक्टर मनमोहन सिंह और प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने यह फैसला लिया था. घरेलू मार्केट खुलने से भारतीयों को सस्ती चीजें मिलने लगीं और विदेशी कंपनियों को बहुत बड़ा बाजार मिला. देशों के बीच लेनदेन और आर्थिक ग्रोथ में तेजी आई, नौकरियां बढ़ीं और आमदनी में इजाफा हुआ.

अब 2018 में हालात ऐसे हैं कि हर देश संरक्षणवाद (Protectionism) के रास्ते पर चल पड़ा है. फिर चाहे चीन और अमेरिका जैसे विकसित देश ही क्यों ना हो. चीन और अमेरिका अपनी-अपनी घरेलू इंडस्ट्री को बचाने के लिए इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ा रहे हैं. पहले अमेरिका और अब चीन ने रेसिप्रोकल टैक्स लगाने का ऐलान कर दिया है.


क्या है Reciprocal Tax?

रेसिप्रोकल टैक्स को आसान शब्दों में समझाने के लिए एक उदाहरण लेते हैं. मान लेते हैं कि A और  B दो देश हैं, जो आपस में आयात-निर्यात करते हैं. अपनी घरेलू इंडस्ट्री को बचाने के लिए A ने B के इंपोर्टेड सामान पर शुल्क बढ़ाना शुरू कर दिया. बदले में B ने भी A के इंपोर्टेड सामान पर टैक्स लगाकर उसे महंगा कर दिया. यानी विदेश से इंपोर्ट होने वाली चीजें महंगी हो जाएंगी और घरेलू प्रोडक्ट्स की डिमांड बढ़ेगी. इसका फायदा घरेलू कंपनियों को होगा.

यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे हर बार दिवाली में सस्ती चाइनीज लड़ियों का बहिष्कार करना. तब हमारी यह सोच होती है कि चाइनीज कंपनियों को क्यों फायदा पहुंचाना. उनकी जगह घरेलू उत्पाद को बढ़ावा दिया जाए.

अब क्या हुआ? 

अब यही लड़ाई अमेरिका और चीन के बीच में छिड़ गई है. ट्रेड वॉर शुरू करते हुए चीन ने अमेरिकी उत्पादों पर रेसिप्रोकल टैक्स लगा दिया है. करीब 106 अमेरिकी प्रोडक्ट्स पर चीन ने 25 फीसदी टैक्स लगाने का फैसला किया है. इनमें सोयाबीन, ऑटो और केमिकल्स शामिल हैं. हालांकि यह कब से लागू होगा यह तय नहीं हुआ है.

चीन ने यह टैक्स डोनाल्ड ट्रंप के उस फैसले के बाद लगाया है जिसमें ट्रंप ने चाइनीज प्रोडक्ट्स पर अतिरिक्त शुल्क लगाना शुरू कर दिया है. इनमें सोलर पैनल्स, स्टील्स और एल्यूमीनियम शामिल है. ट्रंप के इस फैसले को चीन पर लगाया गया 'जुर्माना' माना जा रहा है. अमेरिका को हमेशा इस बात की शिकायत रहती है कि चीन इंटेलेक्चुल प्रॉपर्टी की चोरी कर रहा है.

भारत की बढ़ गई मुश्किल

ट्रंप और चीन की नाराजगी में भारत और भारतीय कारोबारी पिस रहे हैं. ट्रंप ने अपनी कांग्रेस को संबोधित करते हुए कहा था, ‘हार्ले डेविडसन अमेरिका का एक शानदार आइकॉन है. मैं दुनिया में जहां भी जाता हूं, वहां मुझे जो भी बाइक दिखती हैं, उनमें कई हार्ले डेविडसन होती हैं.’

विजय माल्या की तीन पहियों वाला हार्ले डेविडसन फोटाे mensxp.com

ट्रंप ने कहा कि इंडिया में हार्ले डेविडसन पर इंपोर्ट ड्यूटी 75 फीसदी से घटाकर 50 फीसदी करने से अमेरिका को ‘कोई फायदा’ नहीं हो रहा है. दिलचस्प है कि फरवरी में ही सरकार ने हार्ले डेविडसन सहित कई महंगी बाइक की इंपोर्ट ड्यूटी घटाई थी. तब ट्रंप ने कहा था, ‘जब हार्ले डेविडसन अपनी बाइक कहीं भेजते हैं तो कई देशों में उसपर 100 फीसदी तक इंपोर्ट ड्यूटी चुकाना पड़ता है.’

भारतीय कारोबारियों को क्या है लॉस?

ट्रंप ने स्टील पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ा दी है, जिसका भारत पर भी गहरा असर पड़ा है. स्टील के मामले में भारत के लिए अमेरिका एक बड़ा बाजार है. मार्च में अमेरिकी प्रेसिडेंट ने स्टील के इंपोर्ट पर 25 फीसदी और एल्यूमीनियम के इंपोर्ट पर 10 फीसदी ड्यूटी लगाने का ऐलान किया था.

भारत, दुनिया का 14वां सबसे बड़ा स्टील निर्यातक है. यूनाइटेड स्टेट इंटरनेशनल ट्रेड एडमिनिस्ट्रेशन के आंकड़ों के मुताबिक, मार्च 2017 के अंत तक भारत ने 49 लाख टन स्टील निर्यात किया था. कीमत के लिहाज से यह 3.1 अरब डॉलर का था. भारत से अमेरिका को 9 लाख टन स्टील निर्यात किया जाता है. यह अमेरिका के टोटल स्टील इंपोर्ट का 2 फीसदी है. जबकि भारत के स्टील निर्यात के हिसाब से यह 5 फीसदी है.

हालांकि चीन के एक्सपोर्ट के हिसाब से यह आंकड़ा छोटा है. चीन दुनिया का सबसे बड़ा स्टील निर्यातक देश है. हर साल चीन 10 करोड़ टन स्टील निर्यात करता है. जानकारों का कहना है कि इसका कारोबारियों के बिजनेस पर बुरा असर होगा. चीन और अमेरिका जिस तरह से संरक्षणवाद को बढ़ावा दे रहे हैं, उससे अगले 10 साल में कारोबारी उदारवाद बीते दौर की बात हो जाएगी.