view all

GDP और GST में कमी के साथ सरकारी घाटा से बढ़ेगा सिरदर्द

हालांकि सरकार चाहे तो स्थिति अभी भी बदल सकती है. और सरकार के नियंत्रण में आ सकती है

FP Staff

पिछले हफ्ते जारी किए गए तीन अलग-अलग आर्थिक आंकड़े सरकार के लिए एक नया सिरदर्द पैदा कर सकते हैं. आर्थिक विकास आज के समय में एक बड़ी चिंता है. क्योंकि यूपीए सरकार (बैक सीरीज़ डेटा के माध्यम से) के दो कार्यकाल के दौरान विकास दर और मौजूदा सरकार की विकास दर पर पहले ही काफी राजनीति हो रही है. 2019 के लोकसभा चुनाव भी काफी करीब है. और देश के कुछ महत्वपूर्ण राज्यों में हो रहा चुनाव भी अब खत्म होने के कगार पर है. ऐसे समय में सरकार द्वारा पिछले कुछ महीनों की आर्थिक वृद्धि के आंकड़े और ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाते हैं.

लेकिन मजबूत आर्थिक विकास दिखाना कोई बच्चों का खेल नहीं है. सबसे पहले तो, नवंबर महीने का सकल जीएसटी कलेक्शन दिखाता है कि 1 लाख करोड़ रुपए का मासिक कलेक्शन इस बार फिर से नहीं हो पाया. वित्त मंत्रालय के एक बयान के मुताबिक पिछले महीने 97,637 करोड़ रुपए ही आ पाए थे.


दूसरा सिरदर्द तब बढ़ा जब ये सामने आया कि अप्रैल-जून की अवधि के मुकाबले दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि धीमी हो गई. भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है. और इस स्थिति के लिए कई बाहरी कारकों को दोषी ठहराया गया है. लेकिन विश्लेषकों ने अनुमान लगाया है कि वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही में अक्टूबर-मार्च में आर्थिक विकास पहली छमाही से भी धीमी होगी.

फाइल फोटो

स्थिति बदल सकती है:

और आखिरकार, अप्रैल-अक्टूबर के लिए सरकार द्वारा जारी राजकोषीय घाटे के आंकड़ों ने बता दिया कि स्थिति चिंताजनक है. क्योंकि सात महीनों के लिए जो टारगेट सेट किया गया था देश उसे भी पार कर गया है.

हालांकि इसमें कोई शक नहीं कि आने वाले महीनों में चीजों में सुधार हो सकते हैं. केंद्र जीएसटी संग्रह में राज्यों के हिस्से में फेरबदल कर सकता है. कुछ सामानों पर खर्च को स्थगित किया जा सकता है. कुल कर संग्रह आश्चर्यचकित कर सकता है या फिर आखिर पलों में विनिवेश बढ़ सकता है.

इनमें से कोई एक या फिर सभी कार्य सरकार को अपने राजकोषीय घाटे के लक्ष्य के आस पास रख सकती है.

(न्यूज18 के लिए सिंधु भट्टाचार्या की रिपोर्ट)