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उर्जित पटेल का इस्तीफा: क्या यह 19 नवंबर को ही तय हो गया था!

19 नवंबर को बैठक के बाद केंद्र और RBI गवर्नर के बीच सुलह के आसार दिखे लेकिन शायद वो तूफान से पहले की शांति थी. पटेल के अचानक इस्तीफे से शेयर बाजार को तगड़ा झटका लग सकता है

Pratima Sharma

RBI गवर्नर उर्जित पटेल और केंद्र सरकार के बीच इस साल नवंबर में जब मतभेद उजागर हुए तो सबकी नजर इस बात पर थी कि आखिर किसका पक्ष मजबूत साबित होगा. 19 नवंबर को आरबीआई बोर्ड की बैठक से पहले ही यह अंदाजा लगाया जा रहा था कि पटेल इस्तीफा दे देंगे. हालांकि बैठक के बाद आरबीआई और फाइनेंस मिनिस्टर अरुण जेटली ने ऐसे संकेत दिए थे कि दोनों के बीच सबकुछ सामान्य हो गया है. लेकिन पटेल के इस्तीफे से यह साफ हो गया कि केंद्र और RBI के बीच सुलह नहीं हो पाई थी. सितंबर 2016 में रघुराम राजन के इस्तीफे के बाद पटेल को गवर्नर बनाया गया था. इनका कार्यकाल सितंबर 2019 में खत्म होने वाला था.

आखिर कैसे हुई विवाद की शुरुआत?


पॉलिसी रेट घटाने को लेकर आमतौर पर आरबीआई और केंद्र सरकार के बीच खींचतान बनी रहती है. सरकार चाहती है कि RBI रेट कम रखे लेकिन महंगाई काबू रखने की नीयत से केंद्रीय बैंक ऐसे कदम उठाने से बचता है.

वैसे इस बार पूरे विवाद की शुरुआत RBI के डिप्टी चेयरमैन विरल आचार्या के एक बयान से हुई. आचार्या ने अपने एक स्पीच में सरकार को निशाने पर लेते हुए कहा था, 'रिजर्व बैंक की शक्तियों को कमजोर करना विनाशकारी हो सकता है.' आचार्या ने RBI की स्वायत्ता की जमकर वकालत की थी. इसी के बाद बात बिगड़नी शुरू हुई.  सबसे पहले RBI की इस बात को लेकर आलोचना हुई कि आचार्या ने केंद्र के साथ मनमुटाव को सार्वजनिक कर दिया.

आचार्या को गुस्सा क्यों आया था?

विरल आचार्या ने RBI की स्वायत्ता का मुद्दा उठाया था जो केंद्र को रास नहीं आया. असल में केंद्र सरकार ने ऐसी मंशा जाहिर की थी कि वह RBI एक्ट 1934 के सेक्शन 7 का इस्तेमाल कर सकती है. सेक्शन 7 का इस्तेमाल करने से RBI पर पूरी तरह सरकार की पकड़ हो जाएगी. असल में इस सेक्शन के लागू होने के बाद सरकार जन कल्याण या पब्लिक इंटरेस्ट के नाम पर RBI के सरप्लस फंड का इस्तेमाल कर सकती है.

पटेल का इस्तीफा क्या तय था?

RBI गवर्नर उर्जित पटेल ने पहले यह साफ कर दिया कि अगर सरकार सेक्शन 7 का इस्तेमाल करती है तो वह इस्तीफा दे देंगे. हालांकि बाद में इस खबर को अफवाह करार दिया गया. 19 नवंबर को आरबीआई बोर्ड की बैठक हुई तो यह अंदाजा लगाया गया केंद्र और RBI के बीच मतभेद खत्म हो गया. असल में उस वक्त RBI और केंद्र सरकार दोनों एक फॉर्मूले पर सहमत हुए थे. इसके तहत RBI से पैसे मांगने को लेकर केंद्र नरमी बरतेगा और दूसरी तरफ केंद्रीय बैंक भी सरकार को कर्ज देने में थोड़ी ढिलाई बरतेगा. माना जा रहा था कि इस फॉर्मूले के तहत RBI कुछ बैंको को अपने प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन (PCA) फ्रेमवर्क से बाहर रखेगा ताकि वो ज्यादा लोन बांट सके. अभी तक NPA बढ़ने के डर से RBI ने PCA को सख्त बना रखा है. PCA के तहत RBI ने 11 बैंकों के लोन बांटने पर पाबंदी लगाई थी जब तक वो अपने बैड लोन को कंट्रोल करके प्रॉफिट में नहीं आ जाते.

पिछले महीने पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने दावा किया था कि पटेल या तो 1 लाख करोड़ रुपए का सरप्लस फंड सरकार को ट्रांसफर करेंगे या इस्तीफा देंगे. आज इस्तीफे के बाद उन्होंने ट्वीट करके कहा, 'निराशाजनक है लेकिन हैरानी नहीं हुई है. आत्मसम्मान वाला कोई भी स्कॉलर या एकेडमिक इस सरकार के साथ काम नहीं कर सकता है. 19 नवंबर का दिन खास था. पटेल को उसी दिन इस्तीफा दे देना चाहिए था. डॉक्टर पटेल ने शायद सोचा था कि केंद्र अपने कदम पीछे खींच लेगी. लेकिन मुझे पता था कि ऐसा नहीं होगा. बेहतर है कि और शर्मिंदा होने से पहले उन्होंने यह पद छोड़ दिया.'

बाजार को झटका

पटेल के अचानक इस्तीफे से फाइनेंशियल सिस्टम को झटका लगा है. इसका सबसे पहला असर मंगलवार को बाजार खुलने के बाद नजर आएगा. 11 दिसंबर को पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे आने वाले हैं. आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल के इस्तीफे का असर शेयर बजार और रुपए की चाल पर देखने को मिलेगा. एक्सपर्ट्स का कहना है कि मंगलवार को सेंसेक्स में 1000 अंक की गिरावट आ सकती है.

इस दौरान निफ्टी 300 अंक तक गिर सकता है क्योंकि सिंगापुर में ट्रेड होने वाला SGX निफ्टी 350 अंक लुढ़क गया है. ऐसे में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए में भी गिरावट गहरा सकती है. लिहाजा ऐसे में छोटे निवेशकों को फिलहाल विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद ही कोई कदम उठाना चाहिए.