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रेपो रेट में 0.25 की कटौती: क्या अब भी है अच्छे दिन का इंतजार!

बैंकों का फोकस अपना मुनाफा बढ़ाने पर है न कि आम जनता तक इसका फायदा पहुंचाने में

FP Staff

आखिरकार रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में कटौती का ऐलान कर ही दिया. वो भी थोड़ा नहीं, पूरे चौथाई फीसदी यानी 25 बेसिस प्वाइंट. मगर ऐसा लगता है कि इस साल ब्याज दरों में इतनी ही कटौती होगी. महंगाई की दर को कम करने में जुटे रिजर्व बैंक से इससे ज्यादा ब्याज दर घटाने की उम्मीद करना बेमानी है.

तो, अब आगे क्या होगा?


बुधवार की रात को ब्याज दरों में कटौती की वकालत करने वालों को रिजर्व बैंक के फैसले के बाद चैन की नींद आई होगी. ब्याज दरें घटने के बाद उन्होंने ख्वाबों में अच्छे दिन देखे होंगे.

परेशानियां झेल रहे उद्योग जगत को भी रिजर्व बैंक के इस फैसले से खुशी हुई होगी. उन्हें आखिर वो चमत्कारी बूटी मिल ही गई, जिसकी उन्हें सख्त जरूरत थी. अब जबकि रिजर्व बैंक ने ब्याज दर में चौथाई फीसद की कटौती कर दी है, तो बैंक भी अब उद्योगपतियों को कर्ज देना शुरू करेंगे. क्योंकि लंबे वक्त बैंक कारोबारियों को कर्ज के तौर पर मोटी रकम नहीं दे रहे थे.

रिजर्व बैंक के फैसले से सरकार भी खुश होगी क्योंकि आखिरकार मौद्रिक नीति तय करने वाली कमेटी ने उसकी उम्मीदों के मुताबिक वो दवा दे दी है, जिससे दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था की बीमारी दूर होगी.

क्या सच है और क्या ख्वाब?

हां, ये सारी बातें सच हैं, अगर हम असल दुनिया में नहीं बल्कि ख्वाबों की दुनिया में रह रहे हैं. मगर अफसोस की हकीकत इसके उलट और बेहद कड़वी है.

बैंकों के लिए रिजर्व बैंक का ब्याज दर 25 बेसिस प्वाइंट घटाना कोई खास मायने नहीं रखता. यही बात कारोबार जगत के लिए भी सही है.

इससे हमारी जिंदगी जरा भी बेहतर नहीं होगी. ब्याज दर में इस मामूली कटौती से बहुत फायदा होने का दावा झूठा है, मजाक है. ये समझ से परे है कि ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद करने वाले इतने वक्त तक हौसला कैसे बनाए रखते हैं.

सच्चाई तो ये है कि बुधवार को रिजर्व बैंक ने जितने रेट घटाए हैं, उससे बैंक, कारोबारियों को कर्ज देना तो शायद ही शुरू करें. क्योंकि बैंकों का जोर अपना मुनाफा बढ़ाने पर रहता है. वो रिजर्व बैंक की नीतियों के एलान के बाद पहले अपने मुनाफे को देखेंगे, फिर कारोबारियों की फिक्र करेंगे.

क्या है यह सवाल?

साथ ही बड़ा सवाल ये भी है कि ऊंची दरों पर भी जब उद्योग जगत कर्ज लेने को राजी था, तो भी बैंक उन्हें कर्ज क्यों नहीं दे रहे थे?

इसकी कई वजहें हैं. पहली तो ये कि बैंकों का काफी पैसा पहले ही उद्योग जगत में फंसा हुआ है. दूसरी बात ये कि कारोबारी भी मोटी रकम कर्ज के तौर पर लेने से कतरा रहे हैं.

और विजय माल्या जैसे मामलों की वजह से अब हर कर्ज को देने से पहले बैंक सख्त पड़ताल कर रहे हैं. सरकार भी कर्ज लेकर भागने वालों से सख्ती से पेश आ रही है. जांच एजेंसियां ऐसे मामलों की सख्ती से पड़ताल कर रही हैं.

अगर हम रिजर्व बैंक के एलान के बाद जानकारों की राय सुनें तो साफ लगता है कि ब्याज दरें घटने का कोई खास फर्क अर्थव्यवस्था पर नहीं पड़ने वाला. इससे अच्छे दिनों की आमद की उम्मीद करना बेमानी है.

आईडीएफसी बैंक के अर्थशास्त्री इंद्रनील पान कहते हैं कि रिजर्व बैंक के फैसले से कर्ज बांटने की दर में किसी तेजी की उम्मीद नहीं. अपने ग्राहकों को लिखी चिट्ठी में इंद्रनील ने ये भी साफ कर दिया कि अब इसके बाद अगले साल मार्च तक रिजर्व बैंक के ब्याज दरें और घटाने की कोई उम्मीद नहीं.

बैंक आम तौर पर रिजर्व बैंक के संकेतों पर चलते हैं. फिलहाल उनकी हालत ठीक नहीं. पैसे की कमी है. नोटबंदी के बाद बैंकों के पास पैसे की कमी नहीं है. फिर भी कर्ज का लेन-देन नहीं बढ़ रहा है.

आखिर इसकी वजह क्या है?

असल में नकदी की कमी कोई समस्या नहीं है. न ही ब्याज दरें ज्यादा होने की वजह से ऐसा हो रहा है. अगर आप किसी बैंकर से पूछेंगे तो वो हकीकत बताएगा. सच तो ये है कि आज ऐसे कर्जदारों की कमी है, जिनके पास कर्ज के बदले में गिरवी रखने के लिए अच्छी संपत्ति हो. साथ ही उद्योगपतियों के पास कोई अच्छा बिजनेस प्लान भी नहीं है.

नए उद्योग नहीं लग रहे हैं. और पुराने प्रोजेक्ट कई वजहों से अटके हुए हैं. आज की तारीख में केवल रिटेल सेक्टर में ज्यादा लोन बांटे जा रहे हैं. साफ है कि जब तक अर्थव्यवस्था के बुनियादी हालात नहीं बदलते, कर्ज देने-लेने की ये तस्वीर भी नही बदलेगी.

उद्योग जगत लंबे वक्त से ब्याज दरों में कटौती की मांग कर रहा था. लेकिन अब कारोबारियों को रिजर्व बैंक के पॉलिसी डॉक्यूमेंट को ध्यान से पढ़ना चाहिए. इस दस्तावेज में रिजर्व बैंक ने कहा है कि सरकार को बुनियादी ढांचे के विकास की दिक्कतों को फौरन से पेशतर दूर करने की जरूरत है. रियल्टी सेक्टर में निजी निवेश को बढ़ावा देने की जरूरत है.

मौद्रिक नीति कमेटी ने अर्थव्यवस्था को लेकर कहा है कि, 'सरकार को चाहिए कि वो निजी निवेश को नए तरीके से बढ़ाए, बुनियादी ढांचे के विकास की दिक्कतें दूर करे और प्रधानमंत्री आवास योजना पर जोर-शोर से काम करे'.

सिर्फ ब्याज दरें घटाने से नहीं बनेगी बात

डोएचे बैंक एजी के भारत में मुख्य अर्थशास्त्री कौशिक दास कहते हैं कि, 'मौद्रिक नीति में मामूली बदलाव से निजी निवेश को बढ़ावा नहीं मिलता. देश में निजी निवेश का माहौल तेजी से बिगड़ा है'.

बड़े उद्योगपति अब बैंकों के बजाय बाजार से कर्ज ले रहे हैं. इसकी वजह ये है कि बाजार से उन्हें कम ब्याज दर पर पैसे मिल जा रहे हैं. छोटी कंपनियां इतनी किस्मत वाली नहीं हैं. उन्हें कर्ज के लिए बैंकों की तरफ ताकना पड़ता है. वहीं बैंक छोटी कंपनियों में पूंजी लगाने का जोखिम नहीं उठाना चाहते.

बैंकों की कर्ज के तौर पर बांटी गई जो रकम डूबी है, उसका बड़ा हिस्सा छोटे और मझोले उद्योगों में ही लगा है. इस सेक्टर को ज्यादा जोखिम भरा माना जाता है. वैसे छोटे और मझोले कारोबार में भी ब्याज दरें एक मामूली मसला हैं. इस सेक्टर में निजी निवेश बढ़ाने के लिए सरकार को कई कदम उठाने होंगे. जैसे जमीन के अधिग्रहण की दिक्कतें दूर करनी होंगी. श्रम कानूनों में सुधार करना होगा. ताकि कारोबार करना आसान हो सके.

सरकार के सामने चुनौती है कि वो निवेशकों का भरोसा जीते. यहां पर रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति का कोई खास रोल नहीं रह जाता. इसीलिए ये सही मौका है कि हर बार ब्याज दरों में कटौती की मांग का शोर मचाने वाले दूसरी चुनौतियों की तरफ ध्यान दें. उनका जोर आर्थिक सुधारों में तेजी लाने की मांग करने पर होना चाहिए.