जेपी इंफ्राटेक के 20,000 होम बायर्स एकबार फिर अधर में लटक गए. बुधवार को बैंकों ने कंपनी के रिवाइवल के खिलाफ वोट डालकर ग्राहकों की मुश्किल और बढ़ा दी है. इस रिवाइवल प्लान के तहत वालिया ग्रुप इस प्रॉपर्टी को खरीदने की तैयारी में था. लेकिन बैंकों के बीच इस पर सहमति नहीं बन पाई है.
क्या थी डील?
जेपी पर करीब 10,000 करोड़ रुपए का कर्ज है. इसकी लिक्विडेशन वैल्यू 8000 करोड़ रुपए है. कंपनी के लिए वालिया ग्रुप ने 7,350 करोड़ रुपए की बोली लगाई गई थी. अगर कंपनी वालिया ग्रुप को न देकर लिक्विडेट (एसेट बेचकर फंड जुटाना) किया जाता है तो इसका सीधा नुकसान ग्राहकों को होगा. ग्राहकों के हित में कंपनी का रिवाइव होना जरूरी है.
लिक्विडेशन का मतलब है कि कंपनी के एसेट्स बेचे जाएंगे और सबसे पहले बैंकों का कर्ज उतारा जाएगा. अगर ऐसा होता है तो होम बायर्स का जोखिम बढ़ सकता है. लेकिन वालिया ग्रुप सहित बैंकर्स ने ऐसे संकेत दिए किए वे अगले दो-चार दिन में हर वो कोशिश करेंगे ताकि लिक्विडेशन रोका जा सके. उनका मानना है कि अगर लिक्विडेशन होता है तो जेपी में घर बुक कराने वाले लोगों को नुकसान उठाना पड़ेगा. वालिया जेपी का प्रीफर्ड बीडर है.
दिलचस्प है कि रेज्योल्यूशन प्लान को उस वक्त खारिज किया गया जब दो दिन बाद इसकी डेडलाइन थी. जबकि बैंकर्स ने कई राउंड की बातचीत के बाद जेपी के लिए रेज्योल्यूशन प्लान रखा था. इस रेज्योल्यूशन प्लान के तहत कंपनी के एसेट बेचकर उससे बैंकों का कर्ज चुकाने की तैयारी थी. बैंकों का कहना है कि लिक्विडेशन के पक्ष में सिर्फ 6.6 फीसदी वोट आए.
जेपी को 13 बैंकों ने कर्ज दिया है. इन 13 बैंकों में से सिर्फ बैंक ऑफ महाराष्ट्र और जेएंडके बैंक ने 7,500 करोड़ रुपए में वालिया ग्रुप को कंपनी देने के पक्ष में वोट किया. बैंक ऑफ इंडिया इससे दूर रहा.
क्या करेगा वालिया ग्रुप?
लीगल एक्सपर्ट्स का कहना है कि कोर्ट रेज्योल्यूशन प्लान के लिए और वक्त दे सकता है. इस बीच सूत्रों का कहना है कि वालिया ग्रुप अपना ऑफर बढ़ा सकता है. वालिया ग्रुप मुंबई की कंपनी है. सूत्रों का कहना है कि वालिया ग्रुप का मानना है कि उसका ऑफर कंपनी के लिक्विडेशन वैल्यू से बेहतर है.