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जेपी दिवालिया: ग्राहकों का हक कैसे दिलाएगी सरकार?

अपने अंधाधुंध प्रोजेक्ट के कारण जेपी की माली हालत खराब हुई है

Ravishankar Singh

जेपी इंफ्राटेक को राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) ने पिछले 10 अगस्त को दिवालिया घोषित कर दिया था. जेपी इंफ्रा के दिवालिया होने से फ्लैट खरीदने वाले सैकड़ों लोग मझधार में फंस गए हैं.

बैंकरप्सी एंड डेट डिस्पोजेबल इनएबिलिटी एक्ट (दिवालिया एवं कर्ज शोधन अक्षमता कानून) के तहत जेपी इंफ्राटेक पर कार्रवाई की गई है. सूत्रों के मुताबिक, आम्रपाली ग्रुप को भी दिवालिया घोषित किया जा सकता है.


 

क्या करें होम बायर्स?

बिल्डरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग जोर पकड़ने लगी है. खरीदार केंद्र सरकार और योगी सरकार से यह सवाल पूछ रहे हैं कि उन्हें अपना हक कब मिलेगा. उनका कहना है कि बिल्डर की प्रॉपर्टी नीलाम करके बैंक तो अपना पैसा वसूल रहे हैं लेकिन घर खरीदारों का क्या होगा.

खरीदारों की यही चिंता है कि उनके पैसे वापस कैसे मिलेंगे? क्या सरकार कोई ठोस कार्रवाई करके बेईमानों पर शिकंजा कसेगी. अगर दूसरे बिल्डर भी ऐसे दिवालिया होते गए तो घर खरीदारों के पास क्या विकल्प बचेगी.

कैसे उनके डूबे हुए पैसे निकलेंगे? क्या सरकार कोई ठोस कार्रवाई करके बेइमान बिल्डरों पर शिकंजा कसेगी और अगर दूसरे बिल्डर भी ऐसे ही दिवालिए होते गए तो घर खरीदारों के पास क्या विकल्प बचेंगे? बिल्डरों की संपत्ति सील कर खरीदारों को घर दिलाना क्या मुमकिन है?

क्या हैं खरीदारों के सवाल?

बिल्डर के जाल में फंसे खरीददारों की मांग है कि सरकार अब सीधे मामले में दखल देकर या तो उन्हें घर दिलाए या फिर पैसे वापस करवाए. जेपी ग्रुप पर इस समय लगभग 8 हजार 365 करोड़ रुपए का कर्ज है. जिसमें सबसे ज्यादा कर्ज आईडीबीआई बैंक का है.

पूरे दिल्ली-एनसीआर में जेपी बिल्डर्स के करीब 32 हजार फ्लैट्स हैं. 32 हजार निवेशकों के पैसे इस फैसले के बाद फंस गए हैं. जेपी इंफ्राटेक के जेपी ग्रुप ने गोल्फ कोर्स बनाकर कंस्ट्रक्शन के क्षेत्र में अपनी धाक जमाई थी. मायावती के सीएम रहते इस कंपनी ने नोएडा से लेकर आगरा तक अपनी धमक दिखाई थी.

नोएडा से लेकर आगरा तक यमुना एक्सप्रेस और स्पोर्टस सिटी में करोड़ों खपाने के बाद भी जेपी को जब रिटर्न नहीं मिला तो कंपनी के बुरे दिन शुरू हो गए. यमुना एक्सप्रेस-वे ने जेपी की माली स्थिति को बिगाड़ कर रख दी.

मायावती सरकार में चांदी

साल 2007 में जब यूपी में मायावती सरकार थी तो जेपी और आम्रपाली ग्रुप की प्रदेश में जबरदस्त धाक थी. दोनों कंपनियों के मायावती से काफी अच्छे संबंध थे. सरकार से करीबी होने का दोनों कंपनियों ने जमकर फायदा उठाया. आम्रपाली ने जहां नोएडा एक्सटेंशन में कई जमीनें लीं वहीं जेपी को हाइवे और एक्सप्रेस-वे बनाने का ठेका मिला.

मायावती की राज में यमुना प्राधिकरण और जेपी कंपनी ने एक करार किया कि ग्रेटर नोएडा से लेकर आगरा तक 185 किलोमीटर लंबा व 100 मीटर चौड़ा यमुना एक्सप्रेस-वे बनाया जाएगा.

यमुना एक्सप्रेसवे बनाने पर भारी खर्च

यमुना एक्सप्रेस-वे बनाने की जिम्मेदारी जेपी ग्रुप को दिया गया. सरकार से करार के मुताबिक जेपी ग्रुप को अपने खर्चे पर यमुना एक्सप्रेस-वे बनाने की जिम्मेदारी दी गई. बदले में जेपी ग्रुप को यमुना प्राधिकरण ने 2 हजार 500 एकड़ जमीन दी.

यमुना एक्सप्रेस-वे बनाने में जेपी ग्रुप ने लगभग 13 हजार करोड़ रुपए खर्च किए. 9 अगस्त 2012 को पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने यमुना एक्सप्रेस-वे का उद्घाटन किया था. कंपनी की तरफ से यह अनुमान लगया गया था कि एक्सप्रेस-वे पर बड़ी संख्या में मुसाफिर सफर करेंगे. राज्य सरकार और कंपनी के मुताबिक 38 साल तक कंपनी टोल टैक्स वसूलेगी.

लेकिन, इसी दौरान नेशनल हाईवे ऑथरिटी ऑफ इंडिया ने दिल्ली से लेकर मथुरा एनएच-2 और गाजियाबाद से लेकर अलीगढ़ एनएच-1 की चौड़ीकरण का काम कर दिया. इससे यात्रियों की संख्या यमुना एक्सप्रेस-वे पर ज्यादा नहीं बढ़ सकी.

क्या है गणित?

फिलहाल हर दिन करीब 20 हजार वाहन ही प्रतिदिन यमुना एक्सप्रेस-वे से गुजरते हैं. इससे ग्रुप का खर्चा तक भी नहीं निकल पा रहा है. साथ ही यमुना एक्सप्रस-वे में लगातार दुर्घटनाओं और डकैती की वारदातों ने साख पर और बट्टी लगा दिया.

जेपी ग्रुप को दूसरा झटका अखिलेश सरकार ने दिया. कंपनी का करार था कि आगरा एक्सप्रेस-वे चालू होने के बाद नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेस-वे का जिम्मा भी जेपी ग्रुप को सौंप दिया जाएगा लेकिन अखिलेश सरकार ने ऐसा नहीं किया. जेपी इंफ्रा नोएडा-ग्रेटर नोएडा, एक्सप्रेस-वे पर भी टोल लगाना चाहता था. यहां से रोज एक से डेढ़ लाख वाहन निकलते हैं, लेकिन सरकार ने इस मांग को खारिज कर दिया.

और बढ़ीं मुश्किलें

जेपी ग्रुप की रही सही कसर यमुना प्राधिकरण क्षेत्र में स्पोर्ट सिटी ने कर दी. जेपी ने यमुना स्पोर्ट सिटी के निर्माण में हजारों करोड़ रुपए लगा दिए. लेकिन, वहां पर सिर्फ एक-दो फॉर्मूला वन की रेसिंग ही हो पाई. जानकार कहते हैं कि इसमें से अकेले फॉर्मूला वन ट्रैक बनाने में ही जेपी को 2 हजार करोड़ रुपए खर्च हुआ था.

स्टेडियम अब भी खाली पड़ा हुआ है. वहीं, ट्रैक पर 2-3 रेस के बाद कुछ नहीं हुआ. लागत तो दूर मैनटेनेंस का खर्चा भी निकालने में जेपी की हालत खस्ता हो गई.