2000 से 2015 तक इंफोसिस के बोर्ड मेंबर रहे ओमकार गोस्वामी ने इंफोसिस के सह-संस्थापक एनआर नारायण मूर्ति को एक खुले खत में कंपनी से दूर रहने की नसीहत दी है और यह कहा है कि वे कंपनी को अपना कारोबार खुद करने दें. उन्होंने यह भी कहा कि कंपनी को मूर्ति के कामों की वजह से हुए नुकसान से भी खुद ब खुद उबरने दें.
इकनॉमिक्स टाइम्स में छपे इस खुले खत में गोस्वामी ने कहा है कि अब यह अपनी हद पार चुका है. आपने पहला नुकसान कर दिया है. अब संगठन को अपने कामों से और अधिक घातक नुकसान न पहुंचाएं. इंफोसिस को अपना काम करने दें. आपके कामों की वजह से कंपनी पहुंचे चोट से उबरने दें और इसके बाद ही वे शेयरहोल्डर्स के वैल्यू को बढ़ा पाएंगे.’
गोस्वामी ने नारायण मूर्ति को 2014 के उस समय को याद दिलाया जब वे विशाल सिक्का को कंपनी की बागडोर सौंपते वक्त अपनी कुछ मांगें बोर्ड के सामने रखी थीं. गोस्वामी ने कहा कि आप भी कभी इस कंपनी के शीर्ष पर रहे हैं और अगर आपके समय भी शेयरहोल्डर्स ने इसी तरह की मांग रखी होती तो आप भी हिल जाते.
इजरायली कंपनी पनाया के अधिग्रहण से संबंधित ऑडिट रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग पर पर भी गोस्वामी ने मूर्ति को आड़े हाथों लिया है. मूर्ति और कंपनी के मैनेजमेंट के बीच विवाद का यह सबसे प्रमुख मुद्दा है.
इस डील से नाराज थे मूर्ति
इजरायल की क्लाउड कंपनी पनाया को इंफोसिस ने 2015 में 20 करोड़ डॉलर में खरीदा था. हालांकि 2017 की शुरुआत से यह मामला तूल पकड़ा क्योंकि यह डील ओवरवैल्यू थी. मूर्ति डील की रकम से नाराज थे.
पनाया की डील से जुड़ी ऑडिट रिपोर्ट को लेकर मूर्ति और मैनेजमेंट के बीच मतभेद शुरू हुआ. गोस्वामी ने अपने लेटर में लिखा है, ‘क्या आप इंफोसिस चला रहे होते तो इंफोसिस की पूरी रिपोर्ट पोस्ट कर देते. आप भी नहीं करते. ऐसे उदाहरण देखें तो आपने भी ऐसा नहीं किया है.’
मूर्ति लगातार यह मांग कर रहे हैं कि अमेरिकी लॉ कंपनी गिब्सन डन एंड क्रचर ने जो ऑडिट रिपोर्ट तैयार की है, उसे सार्वजनिक किया जाए. मूर्ति का कहना है कि अगर इस ऑडिट रिपोर्ट में कंपनी के अधिकारियों को क्लीन चिट दी गई है तो फिर सार्वजनिक क्यों नहीं किया जा रहा है.
इस साल फरवरी में दो गुमनाम लेटर आने के बाद यह पनाया डील विवादों में घिर गई थी. इन लेटर में यह आरोप लगाया गया था कि पनाया सहित कुछ दूसरी डील में इंफोसिस के अधिकारी गड़बड़ी कर रहे हैं.
आगे गोस्वामी ने यह भी कहा कि उन्हें नहीं लगता कि मूर्ति जो कर रहे हैं वो कॉर्पोरेट गवर्नेंस को दुरुस्त करने के लिए कर रहे हैं.
हालांकि गोस्वामी ने यह स्वीकार किया कि उन्होंने पूर्व सीएफओ राजीव बंसल को बहुत अधिक वेतन दिए जाने पर बोर्ड को चिट्ठी लिखने में मूर्ति की मदद की थी.
गोस्वामी ने आखिर में यह लिखा कि मैं इस कॉर्पोरेट वर्ल्ड में कई लोगों की तुलना में आपकी अधिक इज्जत करता हूं. इसलिए मुझे इस संदेश के माफ करें. काश मुझे यह सब लिखने की जरूरत नहीं पड़ती.