आप विजनरी हैं...काबिल हैं...कोई कंपनी शुरू करना चाहते हैं. मुमकिन है कि आपकी कंपनी का टर्नओवर करोड़ों में हो जाए. लेकिन एक समय के बाद जब आप रिटायर होंगे, तब आपको अपनी कंपनी किसी युवा हाथों में देनी होगी. क्या कोई प्रमोटर अपने रिटायरमेंट के बाद सक्सेशन प्लान पर कोई काम करते हैं. बात जब भी कंपनी की बागडोर युवा लीडर को देने की आती है तो ज्यादातर मामलों में प्रमोटर अपने युवा लीडर से खुश नहीं होते हैं. अभी इंफोसिस का ताजा मामला है, इससे पहले इसी तरह का मामला टाटा ग्रुप में भी देखने को मिला था.
क्या है लीडरशिप की समस्या?
ऐसा नहीं है कि भारत में लीडरशिप की कोई योजना नहीं है. लेकिन दिक्कत इसे लागू करने में आती है. विशाल सिक्का के इस्तीफे ने इंडिया इंक के उत्तराधिकारी योजना पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं.
इंफोसिस से सिक्का की विदाई ने एकबार फिर साइरस मिस्त्री की याद दिला दी है. पिछले साल नवंबर में ही साइरस मिस्त्री को टाटा के बोर्ड ने बाहर का रास्ता दिखा दिया था.
जानकारों का कहना है कि बैंकिंग, फाइनेंशियल सर्विसेज और इंश्योरेंस (बीएफएसआई) की कुछ ही कंपनियों में सक्सेशन प्लानिंग के मामले में विदेशी संस्थाओं के बराबर हैं.
जानकारों का कहना है कि किसी भी कंपनी के लिए सही उत्तराधिकारी चुनना बेहद मुश्किल काम है. आमतौर पर देखा गया है कि कंपनी की कमान जब किसी नॉन प्रमोटर को दी जाती है तो दिक्कतें ज्यादा आती हैं. यही सिक्का के मामले में भी हुआ है.
मूर्ति और सिक्का में क्यों बिगड़ी बात?
विशाल सिक्का को बड़ी उम्मीदों के साथ इंफोसिस का सीईओ बनाया गया था. लेकिन वे अपना कार्यकाल भी पूरा नहीं कर पाए. कुछ ऐसा ही साइरस मिस्त्री के साथ भी हुआ था. इन दोनों मामलों में फर्क सिर्फ इतना है कि सिक्का को बोर्ड का समर्थन है जबकि मिस्त्री को बोर्ड का सपोर्ट नहीं मिला था.
सिक्का के इस्तीफा देने के बाद बोर्ड ने यह कहा है कि नारायण मूर्ति के व्यवहार के कारण सिक्का को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा. कुछ जानकारों का यह भी कहना है कि सिक्का ग्रुप में प्रोफेशनलिज्म लाने की कोशिश कर रहे थे, जो बात मूर्ति को नागवार गुजरी.
क्या था मूर्ति को डर?
विशाल सिक्का के काम करने का स्टाइल अलग था. और यही स्टाइल मूर्ति को पसंद नहीं था. सिक्का ने अपने इस्तीफा में लिखा है कि पर्सनल कमेंट से आहत होकर वे इस्तीफा दे रहे हैं. कुछ जानकारों का मानना है कि मूर्ति को यह डर था कि विशाल सिक्का जिस तरह से कंपनी में बदलाव कर रहे थे कुछ साल में कंपनी पर से संस्थापकों की छाप पूरी तरह खत्म हो जाएगी.
क्या था सिक्का का स्टाइल
विशाल सिक्का के काम करने का स्टाइल ग्लोबल था. उनकी सैलरी भी ग्लोबल लीडर के मुताबिक थी. सिक्का के दौर में कुछ एंप्लॉयीज को बेंच पर भी बैठना पड़ा, जो इसके पहले कभी नहीं हुआ था. वैसे इसका एक पहलू यह भी है कि यूरोप और अमेरिका में कारोबार कमजोर होने के कारण इंफोसिस का परफॉर्मेंस खराब रहा है.
इमोशनल प्रमोटर
अपनी कंपनी को लेकर प्रमोटर बेहद इमोशनल हैं. लिहाजा वे यंग सीईओ को उनके तौर-तरीके पर भरोसा नहीं कर पाते. इन सारी गड़बड़ियों की वजह है कि प्रमोटर अपने कार्यकाल के दौरान नीचे की लीडरशिप तैयार नहीं करते. इंफोसिस के मामले में विशाल सिक्का पहले नॉन प्रमोटर सीईओ थे. टाटा और इंफोसिस में जो हुआ उसे देखकर यह तय है कि प्रमोटर को इमोशनल न होकर लीडरशिप तैयार करने पर जोर देना चाहिए ताकि कंपनी लंबे समय तक अपनी ग्रोथ बरकरार रख सके.