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'जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपायों से भारत, चीन को होगा सबसे ज्यादा फायदा'

साल 2015 में हुए पेरिस समझौते का मकसद वैश्विक औसत तापमान को पूर्व औद्योगिक स्तर से दो डिग्री सेंटिग्रेड से ऊपर बढ़ने से रोकना है

Bhasha

पेरिस जलवायु समझौते को साल 2020 से 2050 के बीच क्रियान्वित करने में जो लागत आएगी, उसकी भरपाई वायु प्रदूषण से होने वाली मौत और बीमारियों में कमी आने से होने वाली बचत के जरिए हो सकती है. एक नए अध्ययन में इस तरह का दावा किया गया है.

इसमें यह भी कहा गया है कि प्रदूषण में कमी लाने के उपायों से भारत और चीन को सर्वाधिक लाभ होने का अनुमान है.


‘लैंसेट प्लानेटरी हेल्थ जर्नल’ में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपायों से सर्वाधिक लाभान्वित भारत और चीन होंगे. इसका कारण दोनों देशों की आबादी का बड़ा हिस्सा वायु प्रदूषण की समस्या से पीड़ित है.

अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि 2020 से 2050 के बीच वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण से मरने वालों की संख्या में उल्लेखनीय कमी आएगी. अगर तापमान के मामले में दो डिग्री सेंटिग्रेड के लक्ष्य को पूरा किया जाता है तो मरने वालों की संख्या में 21 से 27 प्रतिशत (10.1 से 9.3 करोड़ ) तक की कमी लायी जा सकती है.

साल 2015 में हुए पेरिस समझौते का मकसद वैश्विक औसत तापमान को पूर्व औद्योगिक स्तर से दो डिग्री सेंटिग्रेड से ऊपर बढ़ने से रोकना है. इस समझौते पर करीब 195 देशों ने दस्तखत किये. यह समझौता 2020 से लागू होगा.

अध्ययन के अनुसार देशों के स्तर पर रणनीति की लागत 7500 अरब डालर हो सकती है और संभवत: वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण से जुड़ी मौतों में 5 प्रतिशत तक कमी आयेगी. इसमें अनुमान लगाया गया है कि यदि प्रदूषण में कमी लाने के कोई उपाय नहीं किए गए तो 12.80 करोड़ मौतें हो सकतीं हैं.