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रोजगार नहीं दे सकते ठीक है लेकिन हमारा मजाक मत उड़ाइए

एचआरडी मिनिस्टर प्रकाश जावड़ेकर का कहना है कि महिलाएं नौकरी नहीं करना चाहतीं इसलिए उन्हें बेरोजगार में गिनना गलत है

Pratima Sharma

क्या आपके आसपास ऐसी कोई महिला है जो नौकरी करना चाहती हो लेकिन उसे नौकरी ना मिल रही हो? करीब 90 फीसदी लोगों का जवाब हां होगा. लेकिन हमारे एचआरडी मिनिस्ट्री प्रकाश जावड़ेकर को ऐसा नहीं लगता है. उन्हें लगता है कि महिलाएं नौकरी नहीं करना चाहती है. लिहाजा उसका असर रोजगार के आंकड़ों पर हो रहा है और लोग शिकायत करते हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार में नौकरियों की कमी है.

यह बात पूर्व एचआरडी मिनिस्टर स्मृति ईरानी ने कहा तो शायद हमें इतना बुरा नहीं लगता. क्योंकि वो ऐसी बातें करने में माहिर हैं. लेकिन इस बार यह बात प्रकाश जावड़ेकर ने की है जिनसे हमें काफी उम्मीदें थीं.


जावड़ेकर ने कहा, 'रोजगार में क्या होता है, रोजगार कितने मिले, उसकी चर्चा नहीं होती है. स्वीपर्स के लिए या रेलवे के लिए एक लाख की भर्ती हुई एक धक्के में लेकिन इसकी चर्चा कोई नहीं करता. डेढ़ करोड़ लोगों ने एप्लिकेशन किए, यानी कितनी बेरोजगारी है. ऐसा लोग कहते हैं...लेकिन विभिन्न कारणों से रोजगार के आंकड़े उपलब्ध नहीं है. उन्हें कलेक्ट करने की व्यवस्था नहीं है. लेबर ब्यूरो जो करती है वह ऑर्गेनाइज्ड सेक्टर का करती है. उसमें अनऑर्गेनाइज्ड सेक्टर नहीं आता. सेल्फ एंप्लॉयमेंट का तो मुझे कोई सिस्टम नहीं दिखता, जिससे आंकड़े इकट्ठे हों.'

आंकड़ा जुटाने से क्यों परहेज

जावड़ेकर कहते हैं कि रोजगार के आंकड़े जुटाने का उन्हें कोई तरीका नजर नहीं आता. लेकिन क्या उन्हें यह बात भी याद नहीं है कि लेबर ब्यूरो 2015 तक अनऑर्गेनाइज्ड सेक्टर के भी आंकड़े जुटाता था. मुमकिन है कि उनके आंकड़े एकदम परफेक्ट ना हो लेकिन उनसे इतना अंदाजा तो लग ही सकता था कि कितने लोगों के पास रोजगार है और कितने लोग बेरोजगार.

लेकिन 2014 में नई सरकार आने के बाद एंप्लॉयमेंट और अनएंप्लॉयमेंट सर्वे बंद कर दिए गए. लिहाजा 2016-17 से कोई रोजगार के कोई आंकड़े जारी नहीं किए गए हैं. जावड़ेकर कहते हैं कि उनके पास अनऑर्गनाइजेशनल सेक्टर के आंकड़े जुटाने का कोई तरीका नहीं है. अगर ऐसा है तो सर्वे के पुराने तरीके को बंद करने की क्या जरूरत थी.

क्या है CMIE की रिपोर्ट?

इसी महीने की शुरुआत में सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के सर्वे के मुताबिक, 2018 के दौरान 1.10 करोड़ भारतीयों की नौकरियां गई हैं. इस रिपोर्ट का कहना है कि भारत में बेरोजगारी धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है. दिसंबर 2018 में 39.70 करोड़ लोग रोजगार में थे. एक साल पहले यानी दिसंबर 2017 में 40.79 करोड़ नौकरी कर रहे थे. आसान गणित के हिसाब से भी समझे तो इस दौरान 1 करोड़ से ज्यादा लोग बेरोजगार हुए हैं.

इस रिपोर्ट के मुताबिक, 2018 में जिन लोगों की नौकरियां गईं, उनमें महिलाओं की तादाद ज्यादा है. जो 1.10 करोड़ लोग इस दौरान बेरोजगार हुए हैं, उनमें 88 लाख नौकरियां महिलाओं की गई हैं. बाकी के 22 लाख रोजगार खोने वाले पुरुष हैं.

असल में महिलाओं की नौकरी को लेकर कंपनियों की मानसिकता एकदम अलग है. अगर किसी ऑफिस में कोई एक छंटनी करनी होगी तो वो महिलाओं पर फोकस करेंगे. उनकी दलील साफ होती है. एक पुरुष को नौकरी से हटाने पर उसका घर कौन चलाएगा. अगर किसी महिला को हटाया तो बात यह होती है कि चलो खाने-पीने की दिक्कत नहीं होगी. महिलाएं अभी तक इस 'संवेदनशीलता' से उबर नहीं पाई हैं. लेकिन बाद में जब वही महिला नई नौकरी की तलाश में जाएगी तब कंपनी यह सवाल पूछेकी कि आपको ही क्यों निकाला गया.

ऐसे में जब महिलाओं के लिए नौकरी का बेहतर माहौल मुहैया कराना मल्टीनेशनल कंपनियों की एचआर पॉलिसी होती है. वहीं भारत में आज भी महिला कर्मचारियों को दोयम दर्जे की ट्रीटमेंट मिलती है. घर संभालने के बावजूद महिलाएं अपने सपने पूरे करने के लिए नौकरी के लिए धक्के खाती हैं. और हमारे एचआरडी मिनिस्टर को लगता है कि महिलाएं नौकरी नहीं करतीं इसलिए उन्हें बेरोजगार नहीं माना जा सकता. बेरोजगारी तो है..आप ना मानें वो अलग बात है.