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जीएसटी 1 जुलाई से: लोगों के गुस्से पर काबू कैसे पाएगी सरकार

मध्य प्रदेश में व्यापारियों के बढ़ते असंतोष और विरोध को दबाने के लिए राज्य सरकार ने एक जुलाई से राज्य भर में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाने का ऐलान कर दिया है

Rajesh Raparia

संसद में 14 अगस्त 1947 को देश की आजादी के वक्त ठीक मध्यरात्रि को प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने इतिहास प्रसिद्ध भाषण ट्रिस्ट विद डेस्टिनी (नियति के साथ वादा) दिया था जो दुनियाभर में बेहतरीन भाषणों में एक माना जाता है.

ठीक उसी तर्ज पर 30 जून की मध्यरात्रि को संसद के विशेष सत्र में प्रधानमंत्री मोदी के शब्दों में वित्त मंत्री अरुण जेटली देश को टैक्स आतंकवाद, भ्रष्टाचार और काले धन से आजादी (छुटकारा) दिलाने के लिए तत्काल प्रभाव से जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) लागू करने का ऐलान करेंगे.


उम्मीद थी कि इस कर का व्यापारियों, उद्यमियों और कॉरपोरेट जगत तहे दिल से स्वागत करेगा, क्योंकि इससे राज्य, केंद्र और स्थानीय स्तर के अनेक अप्रत्यक्ष करों से एक झटके में छुटकारा मिल जायेगा, कई तरह के रजिस्ट्रेशन और रिटर्न भरने से आजादी मिल जायेगी, देश में ‘इंस्पेक्टर राज’ राज के आतंक का खात्मा हो जायेगा आदि का शंखनाद अरसे से हो रहा है.

सब ठीक है, फिर विरोध क्यों?

कराधान की तमाम असाध्य बीमारियों से छुटकारा दिलाने वाले इस जादुई ताबीज को सौंपने की व्यग्रता से देश में बैचेनी और दुश्चिंताओं का आलम है. देश के अनेक औद्योगिक और व्यापारिक संगठन, नामचीन अतंर्राष्ट्रीय ऑडिट कंपनियों, सीए, विख्यात कर विशेषज्ञ और यहां तक कि कुछ केंद्रीय मंत्रालयों और राज्यों ने भी जीएसटी को टालने का पुरजोर आग्रह वित्त मंत्री से कर चुके हैं.

अनेक राज्यों और शहरों में व्यापारी और छोटे, लघु, माध्यम उद्यमी जीएसटी के मौजूदा प्रारूप के विरोध में सड़कों पर धरना-प्रदर्शन को उतर आये हैं. कई बड़े व्यापारिक केंद्रों में कारोबारियों ने तीन दिन की हड़ताल की है.

मध्य प्रदेश में व्यापारियों के बढ़ते असंतोष और विरोध को दबाने के लिए राज्य सरकार ने एक जुलाई से राज्य भर में रासुका (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) लगाने की पूर्व घोषणा कर दी है, जो बदनाम आपातकाल की याद दिलाता है. अब कुछ वित्त मंत्री के सुर बदले है कि जीएसटी से शुरुआत में कुछ परेशानियां हो सकती हैं. लेकिन ये जल्द दूर हो जायेंगी.

बेहद पेचीदा है जीएसटी 

दुनिया के 150 से अधिक देशों में जीएसटी या ऐसी ही कर व्यवस्था लागू है. लेकिन इनमें भारतीय जीएसटी सबसे पेचीदा, भिन्न और प्रचलित विश्व मानकों से बहुत अलग भी है. शायद दुनिया का यह पहला जीएसटी है जिसमें पेट्रोल, डीजल, शराब आदि को शामिल नहीं किया गया है, जिससे सरकारों को सबसे ज्यादा राजस्व मिलता है, क्योंकि इन पर करों की मात्रा 50 फीसदी से अधिक है.

यहां जीएसटी में टैक्स की अनेक दरें हैं और उनके भी कई-कई नियम हैं. कुल मिला कर जीएसटी व्यवस्था को जलेबी बना दिया है. इससे इस भीमकाय अप्रत्यक्ष कर कानून को लागू करना और उसका अनुपालन करना बेहद टेढ़ी खीर हो गया है.

जैसे होटल, रेस्तरां ट्रांसपोर्ट सेवाओं पर टैक्स दर निर्धारण उनके किराए, कारोबार के टर्नओवर आदि पर निर्भर करेगा. एक से ढाई हजार रुपए, ढाई हजार रुपए से साढ़े सात हजार रुपये और साढ़े सात हजार रुपए से ऊपर के कमरे-किराए पर टैक्स दर अलग-अलग है. एसी रेस्त्रा में अलग टैक्स दर है, गैर एसी रेस्त्रां के लिए अलग. टर्नओवर के हिसाब से अलग टैक्स दर है, जो जीएसटी की प्रचलित धारणाओं के खिलाफ है.

टैक्स की उलझन

ऐसे ही खाद्य पदार्थों को लेकर यह कानून बेहद उलझा हुआ है. कौन-सा खाद्य पदार्थ किस श्रेणी में आयेगा, इसे लेकर अब काफी अस्पष्टता बनी हुई है. ब्रांडेड खाद्य पदार्थों पर अलग टैक्स दर है, गैर ब्रांडेड पर अलग. पर ब्रांड की कोई स्पष्ट व्याख्या जीएसटी कानून में नहीं है.

सबसे ज्यादा बेड़ा गर्क तो नमकीनों का हुआ है. नमकीनों पर 12 फीसदी टैक्स लगाया गया है, जो अभी तकरीबन आधा है. इनमें आलू-केले के चिप्स और सेब जैसे नमकीनों को भी नहीं बख्शा गया है. जिनका घर-घर इस्तेमाल होता है.

सबसे हैरत की बात यह है कि कड़ाई से गरमागरम निकले समोसों, कचौडियों या जलेबी पर टैक्स लगेगा या नहीं, इस पर अब तक संशय बना हुआ है. इन कारोबारियों की समस्या यह है कि एक ही दुकान से मिठाई, समोसा और नमकीन बिकता है, वह तब कैसे इनका अलग-अलग हिसाब रखेगा, जबकि इनके बनाने वाले एक ही कारीगर होंगे.

मुकदमों में आएगी बाढ़ 

जीएसटी से किसको फायदा होगा या किसको नुकसान, यह बताना अभी दूर की कौड़ी है. लेकिन सीए प्रोफेशनलों की फीस में 100 से 500 फीसदी बढ़ोतरी की खबरें आनी शुरू हो गयी हैं.

जीएसटी के दायरे में आने वाले हर कारोबारी को साल में 37 रिटर्न दाखिले करने हैं. हर लेन-देन का ब्योरा दर्ज करना है. सरकारी आंकडों के हिसाब से तकरीबन 3.6 करोड़ लघु-छोटे और मध्यम कारोबारी पहली बार अप्रत्यक्षकर के दायरे में आये हैं.

इसके अलावा तकरीबन 6 करोड़ छोटे-छोटे व्यापारी भी पहली बार  इसके दायरे में आयेंगे. इन लोगों को न कर कानूनों का ज्ञान है और न ही कंप्यूटर का. सीए लोग ही इनके रिटर्न ब्योरे रखने की कड़ी होंगे.

देश के विख्यात कर विशेषज्ञों के अनुसार जीएसटी से देश में मुकदमों की बाढ़ आना तय है, क्योंकि यह संसार सबसे भीमकाय और जटिल कानून व्यवस्था है. जीएसटी राज में टर्नओवर धंधों और उनके मूल्यांकन पर करारोपण और हर व्याख्या को लेकर कर अधिकारियों और कारोबारियों में विवाद बढ़ेंगे, जिनके निपटारे में 3-5 साल लगना मामूली बात है.

यह भी मजेदार तथ्य है कि कर संबंधी विवादों में लगभग 60-65 फीसदी मुकदमें सरकार हार जाती है. फिलवक्त अप्रत्यक्ष करों को लेकर तकरीबन एक लाख मुकदमे लंबित हैं.

कानून का भी बुरा हाल

वैसे भी कानून में हमारी ख्याति खराब है. यह अतिश्योक्तिी अवश्य है कि कानून में जितनी धाराएं होती हैं, उससे ज्यादा उसमें संशोधन और व्याख्याएं होती हैं. पर यह हकीकत से ज्यादा दूर नहीं है.

जीएसटी भी इसका कोई अपवाद नहीं है. इसके लागू होने से पहले ही इसमें बदलाव की तमाम खबरें आ चुकी हैं. अब देखना है कि 30 जून को मध्यरात्रि को टैक्स आतंक से आजादी के भाषण में संशयों का आतंक कम होता है या बढ़ता है.