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GST: वित्तमंत्री जी, ऐसे में कैसे खेलेगा और कैसे खिलेगा इंडिया?

जीएसटी लागू होने से खेल सेक्टर में क्या होगा इसमें कनफ्यूजन है. खेलना और खेल देखना...सब महंगा होने वाला है

Shailesh Chaturvedi

जालंधर में विरोध की तैयारी है. दिल्ली के स्टेडियमों में अभ्यास कर रहे और अभ्यास करा रहे लोगों में असमंजस के हालात हैं. खेल के सामान बनाने वाली तमाम कंपनियों में अभी कुछ साफ नहीं है. किसी को फोन कीजिए, तो सामने से जवाब आता है कि हम अभी तक समझ नहीं पा रहे हैं कि कितना असर पड़ेगा. लेकिन इतना तय है कि खेल के ज्यादातर सामान महंगे होंगे.

जीएसटी लागू होने से खेल सेक्टर में क्या होगा, इसे लेकर अभी तक की राय कुछ ऐसी ही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से लगातार खेलों को बढ़ावा देने की बात की जाती रही है. यहां तक कि वित्त मंत्री अरुण जेटली का भी खेलों से जुड़ाव रहा है. उसके बावजूद खेलों की ज्यादातर चीजों पर उनकी नजरे इनायत नहीं हुई हैं.


खिलाड़ी और खेल की दुकानों या खेल का सामान बनाने वाली इंडस्ट्री के ज्यादातर लोग खुलकर बात करने में हिचक रहे हैं. उसकी वजह है जीएसटी को जटिल समझा जाना. लेकिन मोटा-मोटा हिसाब यह है कि ज्यादातर चीजों पर 28 फीसदी टैक्स लगेगा. जीएसटी में सबसे ज्यादा टैक्स वाला यही स्लैब है.

खेल के सामान भी महंगे, एक्सरसाइज इक्विपमेंट भी

खासतौर पर एथलेटिक्स और एक्सरसाइज से जुड़ी ज्यादातर चीजें महंगी होंगी. हाई जंप पोल, शॉट पुट, जैवलिन, बॉक्सिंग ग्लव्स, जिम्नास्टिक्स के लिए सामान, स्विमिंग गीयर.. ये सब 28 फीसदी की श्रेणी में आएंगे. अब तक इनमें से ज्यादातर पर टैक्स कम था.

योग मैट, जिम मशीन, स्किपिंग रोप, डंबबल्स, ट्रेडमिल सब 28 फीसदी की श्रेणी में है. ये सब सीधे-सीधे खेल के सामान भले ही न हों, लेकिन किसी भी खिलाड़ी की जिंदगी का अहम हिस्सा हैं. इन्हें किसी भी लिहाज से विलासिता के सामान नहीं समझा जा सकता. कम से कम खिलाड़ियों के लिए तो बिल्कुल नहीं.

इन सामानों के बाद कपड़ों और जूतों पर आते हैं. खासतौर पर खेलों के लिए इस्तेमाल होने वाले जूते. ये आम जूतों से काफी महंगे होते हैं. आमतौर पर फुटबॉल, हॉकी या क्रिकेट में स्पाइक्स की एक जोड़ी के लिए दस हजार से ज्यादा की रकम ही खर्च करनी पड़ती है. महंगे जूते और महंगे होंगे. इनके लिए तर्क दिया जाता है कि जो लोग दस हजार के जूते लेते हैं, वो 400-500 रुपए ज्यादा खर्च कर सकते हैं. लेकिन एक गरीब परिवार अपने बच्चे के लिए दस हजार रुपए कैसे जमा करता है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.

अभी तक खेल इक्विपमेंट से जुड़ी कंपनियां तमाम खिलाड़ियों को फ्री में बैट या हॉकी स्टिक या टेनिस, बैडमिंटन रैकेट देती थीं. उन पर भी सर्विस टैक्स लगेगा. कंपनियां आमतौर पर उदीयमान खिलाड़ियों को मुफ्त में ये सामान देती रही हैं. इससे होता यही है कि जब वो बच्चा बड़ा खिलाड़ी बनता है, तो उन लोगों को याद रखता है. कई बड़े खिलाड़ी ऐसे हैं, जिन्होंने जिंदगी भर ऐसी कंपनी का बैट इस्तेमाल किया, जिसने उन्हें शुरुआती करियर में मदद की थी. अब ऐसी मदद महंगी पड़ेगी.

मैच देखना भी पड़ेगा महंगा

इनसे अलग, अगर आप सिर्फ मैच देखना चाहते हैं, तो टिकट लेना भी महंगा पड़ेगा. सिर्फ 250 रुपए से नीचे की टिकटों को जीएसटी से छूट मिली है. उदाहरण के तौर पर आईपीएल को देख लेते हैं. आईपीएल में ज्यादातर कैटेगरी की टिकट 500 या ज्यादा रुपए की होती हैं. ये सब महंगी होंगी.

इंटरनेशल क्रिकेट में भी एक छोटा सा हिस्सा और छात्रों के लिए टिकट छोड़ दी जाए, तो सब 250 से ज्यादा रुपए की होती हैं. ये सब जीएसटी के दायरे में आएंगी. खेल आयोजन भी टैक्स के दायरे में होंगे. यानी अगर कोई हॉकी इवेंट होता है, तो उस पर 18 फीसदी टैक्स लगेगा. अब तक राज्यों के हिसाब से टैक्स लगता था. जैसे टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक कर्नाटक में लगातार आईपीएल के अलावा बाकी क्रिकेट मैचों को टैक्स से छूट दी जाती थी. वो अब नहीं मिलेगी.

यकीनन, अभी काफी कनफ्यूजन है. लेकिन जो तस्वीर फिलहाल दिखाई दे रही है, उसमें खेलना और खेल देखना... सब महंगा होने वाला है. ऐसे में अभी समझ से बाहर है कि कैसे खेलेगा और खिलेगा इंडिया.