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जीएसटी लागू: लंबी अवधि में ग्राहकों के लिए फायदे का सौदा

जीएसटी लागू होने के बाद कुछ साल तक महंगाई का असर रहेगा लेकिन लंबी अवधि में महंगाई घट सकती है

Bhuwan Bhaskar

30 जून 2017 की आधी रात हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज हो गई. संसद के अशोक हॉल में विशेष तौर पर बुलाई गई दोनों सदनों की बैठक में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ठीक 12 बजे रात को आजादी के बाद का देश का सबसे बड़ा सुधार यानी वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) रिजीम के आगाज की घोषणा की.

खत्म हुआ टैक्स गड़बड़झाला


बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार ने जिस तरह जीएसटी के दौर की शुरुआत की, उसे लेकर राजनीतिक सरगर्मी भी बहुत रही. खास तौर पर कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल और तृणमूल कांग्रेस के बहिष्कार ने इसके राजनीतिक महत्व पर ग्रहण लगाने की भी कोशिश की.

लेकिन देश के लिए इस टैक्स रिफॉर्म का जो असर है, उसको यदि हम ठीक से समझ सकें, तो साबित हो जाएगा कि मोदी सरकार का आधी रात का यह विशेष सत्र वास्तव में एक नई तरह की आजादी का ही जश्न था.

किस पर होगा असर?

जीएसटी से मुख्य तौर पर प्रभावित होने वाले दो ही वर्ग हैं- उपभोक्ता और कारोबारी. और तीसरी श्रेणी में केंद्र और राज्य की सरकारें आती हैं जो अपने तमाम विकास कार्यक्रमों के लिए देश भर में पैदा होने वाली वस्तुओं और सेवाओं पर लगने वाले अप्रत्यक्ष करों पर ही निर्भर हैं.

तो जीएसटी के असर को समझने के लिए भी इन्हीं तीनों वर्गों के लिहाज से इसका विश्लेषण होना चाहिए. यह इसलिए भी और जरूरी हो गया है कि एक ओर जहां उपभोक्ता अलग-अलग वस्तुओं और सेवाओं की सूची खंगालने में लगा है कि क्या महंगा होगा और क्या सस्ता, वहीं देश भर का कारोबारी समाज जीएसटी के खिलाफ आंदोलन और हड़ताल की घोषणाएं कर रहा है. तो क्या वास्तव में जीएसटी मोदी सरकार का महज एक जुआ है?

सेवा लेंगे तो कर देना पड़ेगा 

शुरुआत करते हैं ग्राहकों पर जीएसटी के असर की. देश का हर व्यक्ति हर वक्त किसी न किसी वस्तु या सेवा का इस्तेमाल करता है. सुबह उठकर ब्रश-पेस्ट करने से लेकर नहाने में साबुन-शैम्पू का इस्तेमाल करने, ऑफिस जाने के लिए कार, बस से लेकर बच्चों की पढ़ाई के लिए स्टेशनरी खरीदने, टीवी देखने से लेकर फ्रिज, वॉशिंग मशीन और एसी का इस्तेमाल करने और वीकेंड पर फिल्में देखने, एंटरटेनमेंट पार्क जाने से लेकर रेस्टूरेंट में खाना खाने तक, हर पल हर कोई किसी न किसी वस्तु या सेवा का इस्तेमाल कर रहा है.

1 जुलाई से पहले तक देश में बनने वाली हर वस्तु पर करीब डेढ़ दर्ज तरह के टैक्स और दो दर्जन तरह के सेस लगते थे. इनमें से कई टैक्स राज्य लगाते थे और दूसरे कई केंद्र. लेकिन आखिर में इन सब टैक्स का बोझ इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति पर ही आता था.

देश में उत्पादन होने वाली हर वस्तु पर 12.5 प्रतिशत स्टैंडर्ड दर से एक्साइज ड्यूटी लगती थी और 14 प्रतिशत स्टैंडर्ड दर से वैट. उसके अलावा केंद्रीय बिक्री कर (सीएसटी), एंट्री टैक्स, स्टेट टैक्स जैसी दूसरी कई दरें भी थीं.

उसके ऊपर टैक्स का कास्केडिंग इफेक्ट अलग. यानी 100 रुपए की चीज पर पहले एक्साइज 12.5 रुपये लगता था और फिर 112.5 रुपये पर 14 प्रतिशत का वैट लगता था और फिर उस पर दूसरे टैक्स लगते थे. इससे कुल टैक्स 32 प्रतिशत के आसपास हो जाता था.

जीएसटी से बदलाव

अब जीएसटी के बाद सारे टैक्स मिलाकर 28 प्रतिशत कर दिया गया है. ऐसे ही 5, 12 और 18 प्रतिशत के 3 अन्य स्लैब बनाए गए हैं और जिस भी वस्तु पर सारे टैक्स जोड़ कर कुल दर जितनी होती थी, उसके आसपास के स्लैब में उसको शामिल कर दिया गया है. सभी सेवाओं को 18 प्रतिशत स्लैब में शामिल कर दिया गया है, जो अब तक 15 फीसदी हुआ करती थीं.

देश में कई बड़ी वस्तुओं का उत्पादन केवल कुछ राज्यों में होता है, जिसे उसके बाद पूरे देश में भेजा जाता है. ऐसे उत्पादों पर उत्पादन वाले राज्य में 2 प्रतिशत का सीएसटी लगता था, जिसका इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलता था और खपत वाले राज्यों में 14 प्रतिशत वैट लगता था.

नई व्यवस्था में 2 प्रतिशत सीएसटी का बोझ खत्म हो गया है. इसी तरह राज्य जो एंटरटेनमेंट टैक्स लगाते थे, उस पर केंद्र का सर्विस टैक्स भी लगता था. होटल के कमरे पर राज्य का लग्जरी टैक्स लगता था और फिर केंद्र का सर्विस टैक्स लगता था. ऐसे टैक्स पर टैक्स अब खत्म होंगे.

दिलचस्प है सेवा कर

खास तौर पर सेवाओं का मसला बहुत रोचक है. जीएसटी में एक खास प्रावधान ये है कि कोई सेवा प्रदाता जो भी वस्तुएं खरीदेगा, उस पर दिया गया जीएसटी वह इनपुट टैक्स क्रेडिट के तौर पर क्लेम कर सकता है.

जैसे कोई ट्रैवल एजेंट यदि अपने ऑफिस के लिए फर्नीचर, एसी और स्टेशनरी खरीदता है, तो इन तीनों पर दिया गया जीएसटी वह इनपुट क्रेडिट के तौर पर क्लेम कर सकता है. रेवेन्यू सक्रेटरी हसमुख अधिया के मुताबिक ये वस्तुएं करीब 3 प्रतिशत का बोझ उस पर डालती थीं.

यानी 15 प्रतिशत सेवा कर में इसे मिलाकर करीब 18 प्रतिशत का बोझ पहले से पड़ रहा था. अब क्योंकि ट्रैवल एजेंट 3 प्रतिशत क्लेम कर सकता है, तो उसे 18 प्रतिशत का टैक्स एकमुश्त देना होगा.

जीएसटी के तहत मुनाफाखोरी विरोधी नियम के जरिए यह भी सुनिश्चित किया गया है कि यदि जीएसटी के आने से किसी भी वस्तु या सेवा की टैक्स दर में कमी आने आता है, तो उसका फायदा ग्राहकों को दिया जाना चाहिए। इसे सुनिश्चित करने के लिए एक मैकेनिज्म बनाया जाएगा.

यहां मसला केवल किसी वस्तु या सेवा के महंगा या सस्ता होने का नहीं है. ज्यादातर वस्तुएं इसमें सस्ती हुई हैं, लेकिन कई वस्तुएं महंगी भी हुई हैं. हालांकि वस्तुओं के कुछ सस्ती या महंगी होने से ज्यादा अहम ये है कि अब किसी तरह का कोई गुप्त टैक्स या सेस नहीं रह गया है और पूरी प्रक्रिया पारदर्शी हो गई है. इससे आखिर में और लंबे समय में ग्राहकों को फायदा ही होगा.