view all

जीएसटी: नए दौर की इस शुरुआत पर गर्व कर सकता है देश

राज्यों और केंद्र के बीच दलगत प्रतिबद्धताओं के बावजूद जीएसटी लागू होना एक खुशनुमा राष्ट्रीय अनुभव है

Bhuwan Bhaskar

ऐसे दौर में जब अक्सर राज्यों और केंद्र सरकार के बीच दलगत प्रतिबद्धताओं के कारण देशहित कहीं पीछे छूटता नजर आता है, उस समय वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी का लागू होना एक ऐसा खुशनुमा राष्ट्रीय अनुभव बन कर सामने आया है, जिस पर पूरा देश गर्व कर सकता है.

लेकिन इस अनुभव तक पहुंचने की यात्रा काफी लंबी और थकाऊ थी, जिसका जिक्र राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली, तीनों ने 30 जून की आधी रात के बुलाए गए संसद के विशेष सत्र में दिए गए अपने भाषणों में किया.


अब सवाल ये है कि जीएसटी लागू होने से उपभोक्ताओं और कारोबारियों के अलावा देश को क्या मिलेगा. राज्य सरकारों को क्या मिलेगा, केंद्र सरकार को क्या मिलेगा और जीडीपी में 2 प्रतिशत तक बढ़ोतरी होने की उम्मीदें क्या सचमुच हकीकत में बदलेंगी.

संघीय सफलता का बेमिसाल उदाहरण

जीएसटी को लागू करने से लेकर उसके संचालन तक की पूरी जिम्मेदारी जिस जीएसटी काउंसिल पर है, उसके अध्यक्ष केंद्रीय वित्त मंत्री हैं और उसमें केंद्रीय राजस्व राज्य मंत्री भी हैं. इनके अलावा 29 राज्यों, दिल्ली और पुडुचेरी जैसे विधानसभा वाले दो केंद्र शासित प्रदेशों के 31 मंत्री भी काउंसिल में शामिल हैं. काउंसिल की बैठक के लिए कम से कम 17 सदस्यों का कोरम है, जबकि फैसले के लिए मौजूद राज्यों और केंद्र के प्रतिनिधियों का 75 प्रतिशत वोट चाहिए.

वोटों का बंटवारा इस तरह है कि केंद्र के दोनों मंत्रियों के वोट का वजन एक तिहाई होगा. बाकी दो तिहाई वोट 31 राज्यों में बराबर बंटेंगे. यानी यदि केंद्र सरकार जीएसटी से संबंधित कोई फैसला करना चाहे, तो उसे कम से कम 20 राज्यों का समर्थन चाहिए होगा.

‘मेक इन इंडिया’ को प्रोत्साहन

इम्पोर्टेड गुड्स पर अब तक कस्टम ड्यूटी के अलावा उसी दर पर एक्साइज ड्यूटी लगता था, जो दर उस वस्तु के देश में उत्पादन पर लगती थी. इसके अलावा 4 प्रतिशत वैट भी लगता था, जबकि देश में उत्पादित वस्तुओं पर 14 प्रतिशत वैट लगता था. इस तरह देश में बनी वस्तुएं आयातित वस्तुओं के मुकाबले महंगी हो जाती थीं. अब ये विसंगति खत्म हो जाएगी क्योंकि आयातित वस्तु पर कस्टम के अलावा सीधे वही जीएसटी दर लगेगी, जो उस वस्तु पर देश में लग रही है. इससे सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम को जबर्दस्त प्रोत्साहन मिलेगा.

एक्सपोर्ट को होगा फायदा

जीएसटी लागू होने के बाद अब निर्यातकों को निर्यात के 90 प्रतिशत बिलों का रिफंड 7 दिनों के भीतर हो जाएगा. इसके तहत एक्सपोर्टरों को देश में दिए गए सभी टैक्स का पूरा रिफंड मिलेगा, जबकि जीएसटी लागू होने से पहले ऐसा नहीं होता था. नतीजतन निर्यात होने वाले माल की कीमत ज्यादा बैठती थी और वह विश्व बाजार की प्रतिस्पर्द्धा में पिट जाता था. अब उम्मीद की जा सकती है कि देश के निर्यात को बढ़ावा मिलेगा.

जीएसटी कम्प्लायंस रेटिंग

इसके तहत ऐसे कारोबारियों की पहचान की जाएगी, जो डिफॉल्ट करेंगे. कोई व्यापारी यदि अपने खरीदार से तो टैक्स ले ले, लेकिन सरकार को उसका इनवॉयस नहीं दे, तो जीएसटीएन का सॉफ्टवेयर अपने आप ऐसे कारोबारियों की पहचान करेगा और उसकी डिफॉल्टी की आवृत्ति के आधार पर ए, बी, सी और डी श्रेणियों में उनका वर्गीकरण करेगा. ये रेटिंग सार्वजनिक होगी, तो किसी भी कारोबारी को ये पता होगा कि वह जिस कारोबारी के साथ व्यवहार कर रहा है, उसकी कम्प्लायंस रेटिंग कैसी है. इससे सेल्फ रेगुलेशन बढ़ेगा और सरकारों की टैक्स आय में बढ़ोतरी होगी. स्वाभाविक तौर पर इससे विकास के लिए सरकार के पास ज्यादा पैसे होंगे.

डिजिटल इंडिया की राह में बड़ा कदम

जीएसटी लागू होने के बाद पूरी प्रक्रिया इलेक्ट्रॉनिक होगी. कोई मैनुअल फाइलिंग नहीं होगी. हर तरह का रिफंड और इनपुट क्रेडिट केवल 60 दिनों के भीतर होगा और देर होने पर सरकार 6 प्रतिशत का ब्याज देगी. सिर्फ 10,000 रुपए तक टैक्स का भुगतान बैंक काउंटर पर कैश कर सकते हैं. उसके ऊपर की कोई भी रकम एनईएफटी, आरटीजीएस, भीम, क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड या किसी भी दूसरे ऑनलाइन माध्यम से करना होगा.

ई-परमिट अनिवार्य

50,000 रुपए से ज्यादा की वस्तुओं को राज्य से बाहर ले जाने से पहले किसी भी कारोबारी को जीएसटीएन पर खबर करनी होगी. कम्प्यूटर पर कुछ डिटेल भरने पर कारोबारी को एक यूनिक आईडी मिल जाएगी, जो उसे अपने ट्रांसपोर्टर को देना होगा. किसी भी चेकिंग में ट्रांसपोर्टर को केवल वह यूनिक आईडी दिखाना होगा. यदि माल भेजने वाला कोई बहुत छोटा या कम पढ़ा-लिखा या बिना कम्प्यूटर वाला ट्रेडर हो, तो उसके बदले यह काम ट्रांसपोर्टर या जिस कारोबारी के पास माल जा रहा है, वह भी कर सकता है.

कर चोरी करना लगभग नामुमकिन

जीएसटी के दौर में किसी के लिए भी कर चोरी करना लगभग नामुमकिन होगा. जीएसटी रजिस्ट्रेशन में आने वाले 15 अंकों के नंबर के अंदर ही पैन के 10 अक्षर और अंक भी शामिल होंगे. इसमें टैक्स डिडक्शन ऑन सोर्स (टीडीएस) और टैक्स कलेक्शन ऑन सोर्स (टीसीएस) का भी प्रावधान है, जिससे वस्तुओं और सेवाओं की बिक्री के हर चरण का पता लगाने में आसानी होगी और टैक्स चोरी करना संभव नहीं होगा. जैसे- किसी भी ई-कॉमर्स कंपनी पर यदि कोई एमएसएमई अपना माल बेच रहा है, तो कंपनी उसके लिए प्राप्त भुगतान पर 2 प्रतिशत काट कर (टीसीएस) 98 प्रतिशत एमएसएमई को देगी.

एमएसएमई की जिम्मेदारी होगी कि वह उस आमदनी पर जीएसटी भुगतान करे और फिर काटे गए 2 प्रतिशत का टैक्स क्रेडिट ले ले. इससे उस माल की बिक्री और भुगतान का सबूत हासिल हो जाता है और इस तरह एमएसएमई की तरफ से एकाउंटिंग में किसी भी तरह की गड़बड़ी संभव नहीं रहती.