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जीएसटी इंपैक्ट: कारोबारियों को नहीं भरना पड़ेगा 37 बार रिटर्न

कारोबारियों के लिए बुरा नहीं बोनांजा है जीएसटी

Bhuwan Bhaskar

एक ओर जहां यह दावा किया जा रहा है कि जीएसटी से कर प्रणाली एकदम सरल हो जाएगी, वहीं दूसरी ओर पूरा कारोबार समाज इसके खिलाफ कमर कस कर तैयार हो रहा है. आखिर चक्कर क्या है, सच क्या है. इसमें कोई शक नहीं कि जीएसटी का सबसे ज्यादा असर कारोबारियों पर ही पड़ेगा, लेकिन ये असर क्या होगा, आइए समझते हैः

कम्प्लायंस की आसानी


अब तक जहां 10 लाख रुपए से कम टर्नओवर वाले कारोबारियों को वैट रजिस्ट्रेशन से छूट थी, वहीं जीएसटी में अब यह सीमा बढ़ाकर 20 लाख रुपए कर दी गई है. जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर सहित विशेष दर्जे वाले 11 राज्यों में यह सीमा 5 लाख रुपए से बढ़ाकर 10 लाख रुपए कर दी गई है. लेकिन साथ ही यह भी साफ कर दिया गया है कि जीएसटी नेटवर्क (जीएसटीएन) में गैर पंजीकृत कारोबारी इनपुट टैक्स क्रेडिट क्लेम नहीं कर पाएंगे.

इंस्पेक्टर राज का खात्मा

अब तक कारोबारियों को कई टैक्स विभागों और उनके अधिकारियों से निपटना पड़ता था. लेकिन अब उन्हें केवल जीएसटी अधिकारियों से मतलब होगा. उसमें भी इंफोसिस द्वारा विकसित जीएसटीएन में यह सुनिश्चित किया गया है कि पूरे तंत्र में कहीं भी मानवीय हस्तक्षेप न हो और सारा काम इलेक्ट्रॉनिक तरीके से हो.

रिटर्न फाइलिंग में आसानी

कारोबारियों का एक बड़ा विरोध रिटर्न फाइल करने को लेकर है. कहा जा रहा है कि कारोबारियों को साल में 37 रिटर्न भरने होंगे. लेकिन यह महज एक भ्रम है. इसे समझने के लिए पहले फाइलिंग का तरीका समझना होगा.

दरअसल जीएसटी के तहत ऐसी ऑनलाइन व्यवस्था है कि जिसमें कारोबारी को 10 तारीख तक अपना बिक्री का ब्योरा भरना है, 15 तारीख तक खरीद के हिसाब की पुष्टि करना है और फिर ऑटोमैटिकली तैयार रिटर्न को अगले महीने की एक तारीख ओके करना है. इसे 3 बार रिटर्न भरना बताया जा रहा है और साल में 36 के साथ सालाना रिटर्न जोड़ कर 37 रिटर्न की गिनती की जा रही है.

केंद्र सरकार ने प्रतिस्पर्द्धी बोलियों के जरिए करीब 3 दर्जन जीएसटी सुविधा प्रदाता (जीएसपी) चुने हैं, जो अलग-अलग कारोबारी वर्गों के लिए जीएसटी रिटर्न फाइल करने के लिहाज से यूनिक सॉफ्टवेयर तैयार करेंगे.

ये ऐसे सॉफ्टवेयर टूल होंगे, जिनमें अगर कारोबारी अपनी पूरी एकाउंटिंग करें, तो महीना पूरा होते ही ये ऑटोमैटिकली कारोबारी का जीएसटी रिटर्न तैयार कर देंगे. इनके अलावा जीएसटीएन ने भी एक्सेल शीट और जावा पर दो ऑफलाइन टूल तैयार किए हैं.

कारोबारी इनमें रियल टाइम में अपना इनवायस डाटा डाल कर रख सकता है और महीने के आखिर में उसे 5 मिनट के लिए नेट से कनेक्ट करना होगा, जिससे सॉफ्टवेयर अपने आप जीएसटी रिटर्न तैयार कर देगा.

आसान रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया

कारोबारियों को जीएसटी रजिस्ट्रेशन के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं है. उसे इलेक्ट्रॉनिक आवेदन करना है और उसका मामला जिस भी राज्य सरकार या केंद्र सरकार के पास जाएगा, उसे आवेदन की जांच कर कोई भी कमी होने पर 3 दिन के भीतर कारोबारी को जवाब देना होगा. यदि 3 दिन के अंदर कोई क्वेरी नहीं आती है तो जीएसटीएन का सर्वर ऑटोमैटिकली नंबर जेनरेट कर आवेदनकर्ता को बता देगा.

छोटे कारोबारियों को मदद

जीएसटी एक्ट में जीएसटी प्रैक्टिशनर तैयार करने का प्रावधान है, जिसके तहत सरकार ऐसे प्रोफेशनल्स को मान्यता देगी, जो छोटे कारोबारियों को रिटर्न फाइल करने में मदद करेगा.

रिटर्न भरने में मदद के लिए क्षेत्रीय भाषाओं में हेल्पलाइन शुरू होंगे और राज्यों में सहायता केंद्र बनाए जाएंगे, जहां कारोबारी कम्प्यूटर पर बैठकर अपना रिटर्न फाइल कर सकते हैं.

ट्रांजिशन रूल

1 जुलाई को जीएसटी लागू होने के बाद ऐसी तमाम वस्तुएं जो पहले से स्टॉक में हैं और जिन पर वैट और एक्साइज ड्यूटी का भुगतान किया जा चुका है, उनपर टैक्स क्रेडिट मिलेगा. कारोबारियों को केवल बिल और जरूरी दस्तावेजों से यह साबित करना होगा कि जो माल उनके पास है, उस पर वैट और उत्पाद कर दिया गया है.

यदि किसी कारणवश कारोबारी के पास रिसीट नहीं है, तो उसे केवल 40 प्रतिशत इनपुट टैक्स क्रेडिट मिलेगा.

छोटे कारोबारियों का खास ख्याल

जीएसटी एक्ट में 20 से 50 लाख रुपये तक के टर्नओवर वाले कारोबारियों के लिए रिटर्न में इनवॉयल और बिल पेश करने से छूट दी गई है और उन्हें केवल टर्नओवर का डिटेल भरना है. इसके अलावा बी2सी यानी कंज्यूमर को माल बेचने वाले कारोबारियों को, चाहे कितना भी टर्नओवर हो, इनवॉयस/बिल का विवरण देने से छूट दी गई है.

फिर भी क्यों है विरोध

सीधे तौर पर तो यह समझ पाना सचमुच मुश्किल है. बस एक कारण समझा जा सकता है कि जीएसटी लागू होने के बाद अब कारोबारियों के लिए कर चोरी करना नामुमकिन जैसा मुश्किल होगा.

इसे समझने के लिए रिटर्न फाइल करने के तरीके को समझना होगा. जीएसटीएन पर रिटर्न फाइल करने के दो हिस्से हैं, जीएसटीआर-1 और जीएसटीआर-2. जीएसटीआर-1 में केवल बिक्री का ब्योरा देना होगा और जीएसटीआर-2 में खरीद का.

कारोबारियों को केवल जीएसटीआर-1 में महीने की 10 तारीख तक अपनी हर बिक्री का ब्योरा डालना होगा, जिसमें वह अपनी बिक्री का विवरण, जैसे इनवॉयस नंबर, रकम और जिसे बेचा गया है, उसका जीएसटी रजिस्ट्रेशन नंबर आदि डालेगा. 10 तारीख की 12 बजे रात को कारोबारी के बिक्री विवरण के आधार पर कारोबारियों के जीएसटीआर-1 के आधार पर जीएसटीआर-2 अपने आप अपडेट हो जाएगा.

यानी कारोबारी 'A' ने अगर अपने जीएसटीआर-1 में लिखा कि उसने कारोबारी 'B'  को कोई माल बेचा है, तो 10 तारीख की रात 12 बजे अपने आप कारोबारी 'B' के जीएसटीआर-2 में वह विवरण दिखने लगेगा. कारोबारी 'B' को उसी महीने के 15 तारीख तक अपने जीएसटीआर-2 के डिटेल को ओके करना होगा.

अगर 'A' ने अपने जीएसटीआर-1 में कारोबारी 'B' के लेनदेन का जिक्र नहीं किया, तो उसे उस माल का हिसाब देना होगा क्योंकि उसने जिस कारोबारी 'X' से वह खरीदा होगा, उसके जीएसटीआर-1 में उसका जिक्र आते ही कारोबारी  'A' के जीएसटीआर-2 में वह दिखने लगेगा. और यदि  'A' ने गलत विवरण डाला तो 'B' उसका विरोध कर सकता है.

फिर टैक्स क्रेडिट क्लेम की बारी

इन्हीं विवरणों के आधार पर बी इनपुट टैक्स क्रेडिट क्लेम करेगा. यानी यह एक ऐसी फूलप्रुफ व्यवस्था है, जिसमें हर मैन्युफैक्चरिंग गुड्स का पूरा ट्रेडिंग ट्रेल सरकार के पास होगा. लिहाजा कहीं भी कर चोरी की कोई संभावना नहीं बचेगी.

इसके अलावा पहले कारोबारी एक राज्य में बनी वस्तु दूसरे राज्य में बेचने के नाम पर 2 फीसदी सीएसटी देकर उठाते थे और उसी राज्य के दूसरे शहर में ले जाकर बेच देते थे. इस तरह वे 14 प्रतिशत वैट की चोरी कर लेते थे.

अब क्योंकि हर मैन्युफैक्चर्ड गुड्स पर पहले ही पूरा जीएसटी (सीजीएसटी प्लस एसजीएसटी) लग जाएगा और दूसरे राज्य में आईएसजीटी (इंटीग्रेटेड जीएसटी) देना होगा जिसे बाद में क्लेम किया जा सकेगा, तो इस तरह की चोरी का पूरा स्कोप खत्म हो जाएगा.