सरकार की फर्जी कंपनियों पर दबिश जारी है. इनकम टैक्स विभाग ने अपनी ताजा कार्रवाई में ऐसी कई हजार कंपनियों को खोज निकाला है. ये कंपनियां टैक्स विभाग की नई जांच में सामने आई हैं. आईटी विभाग को शक है कि ये कंपनियां संदिग्ध ट्रांजैक्शन में लिप्त हैं.
2.09 लाख कंपनियां 'रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज़' से बाहर
सरकार ने मंगलवार को 2.09 लाख से अधिक ऐसी कंपनियों के नाम को रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज से बाहर कर दिया है. यह कार्रवाई इसलिए की गई, क्योंकि ये कंपनियां जरूरी नियामकीय प्रावधानों पर खरी नहीं उतर पाईं. सरकार ने इन कंपनियों के बैंक अकाउंट के ऑपरेशन को भी रोक दिया गया है. इन कंपनियों के डायरेक्टर्स के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.
हैदराबाद, मुंबई और अहमदाबाद में लिस्ट में ऊपर
वैसे तो देश के लगभग सभी हिस्सों में ऐसी कंपनियों की पहचान की गई है. लेकिन नवीनतम जांच के बाद जारी लिस्ट में सबसे अधिक संख्या में शेल कंपनियां हैदराबाद से पकड़ी गई हैं. उसके बाद मुंबई और फिर अहमदाबाद का नाम लिस्ट में आया है.
इन शहरों में हैं सबसे अधिक हैं शेल कंपनियां
हैदराबाद- 20,082 कंपनियां
मुंबई- 11820 कंपनियां
अहमदाबाद- 9, 625 कंपनियां
कोलकाता- 8,078 कंपनियां
हिमाचल प्रदेश- 754 कंपनियां
पटना- 634 कंपनियां
पांडिचेरी 405 कंपनियां
शिलोंग 249 कंपनियां
ग्वालियर- 24 कंपनियां
अभी तक सामने आई ऐसी कुल कंपनियां की संख्या 52,304 बताई गई है. माना जा रहा है कि ऐसी और कंपनियां सामने आ सकती हैं.
क्या होती हैं शेल कंपनियां और क्यों बनाई जाती हैं
शेल कंपनियां कागजों पर बनी ऐसी कंपनियां होती हैं जो किसी तरह का आधिकारिक कारोबार नहीं करती हैं. इन कंपनियों का इस्तेमाल मनी लॉन्ड्रिंग के लिए किया जाता है. इन कंपनियों में किसी तरह का कोई काम नहीं होता. इनमें केवल कागजों पर एंट्री की जाती हैं. हालांकि, कंपनीज एक्ट में शेल कंपनी शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है.
कैसे होता है रजिस्ट्रेशन इनका
शेल कंपनियों का रजिस्ट्रेशन सामान्य कंपनियों की तरह होता है. सामान्य कंपनियों की तरह इनमें भी डायरेक्टर्स होते हैं. हालांकि इनमें मालिक के नाम गुप्त रखे जाते हैं. ये कंपनियां रिटर्न भी फाइल करती हैं. ये दूसरों के काम आती हैं.
क्या करती हैं ये कंपनियां
ये कंपनियां ब्लैक मनी को व्हाइट करने का काम करती हैं. इनका इस्तेमाल ब्लैकमनी को कम से कम खर्च में व्हाइट बनाने में किया जाता है. इन कंपनियों में टैक्स को पूरी तरह से बचाने या कम से कम रखने की व्यवस्था होती है. इसमें पूरे पैसे को एक्सपेंस के तौर पर दिखाया जाता है, जिससे टैक्स भी नहीं लगता है. ये कंपनियां न्यूनतम पेड अप कैपिटल के साथ काम करती हैं और इनका डिविडेंड इनकम जीरो होता है. साथ ही टर्नओवर और ऑपरेटिंग इनकम भी बहुत कम होती है.