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आखिर कौन बनेगा महाराजा का नया मालिक?

सरकार ने ऑटोमैटिक रूट से 49 फीसदी निवेश की मंजूरी दी है, 51 फीसदी हिस्सेदारी के लिए घरेलू कंपनियां जोर लगा रही हैं

Ravishankar Singh

एयर इंडिया की खस्ता हालत देखकर लंबे समय से सरकार इसमें अपनी हिस्सेदारी बेचने की तैयारी में थी. अब एयर इंडिया के निजीकरण का रास्ता साफ हो गया है. कैबिनेट ने एयर इंडिया में 49 फीसदी विदेशी निवेश की अनुमति दे दी है. एयरलाइन कंपनी पर 50 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है. विदेशी निवेश कंपनी ही माली स्थिति बेहतर होने की उम्मीद बढ़ गई है.

एयर इंडिया में विनिवेश के फैसले से एविएशन इंडस्ट्री में कॉम्पिटिशन बढ़ सकता है. कई गैर एयरलाइन कंपनियां भी एयर इंडिया में हिस्सेदारी लेना चाहती है. एयर इंडिया में हिस्सा लेने के लिए टाटा-सिंगापुर एयरलाइंस की जेवी विस्तारा, इंडिगो और जेट एयरवेज भी बोली लगाने वाली है.


मैनेजमेंट पर किसका होगा कंट्रोल

केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि एयर इंडिया का मैनेजमेंट किसी भारतीय के पास ही रहेगा. सरकार के इस फैसले से उन लोगों को थोड़ी राहत मिलेगी, जो इसे बेचने के खिलाफ था. कोई भी भारतीय निवेशक 51 फीसदी हिस्सेदारी खरीदकर एयर इंडिया का मालिकाना हक अपने पास रख सकता है.

अंतरराष्ट्रीय एयरलाइंस सर्विस रेटिंग कंपनी एविएशन इनसाइट फ्लाइट स्टेटस ने पिछले साल एयर इंडिया को दुनिया की सबसे घटिया एयरलाइंस में शामिल कर दिया था. इस रेटिंग के बाद एयर इंडिया ने अमेरिकी रेटिंग कंपनी को माफी मांगने को कहा था. इस लिस्ट में इजराइली एअरलाइंस इल-अल को पहली जबकि आइसलैंड एयर को दूसरी सबसे खराब एयरलाइंस बताया गया था. एयर इंडिया तीसरे नंबर पर थी.

महाराजा की शान कैसे लौटेगी?

इंडियन एयरलाइंस को दुरुस्त करने के लिए सरकार कई स्तर पर काम कर रही है. कंपनी नए-नए ऑफर और सस्ते टिकट देकर ग्राहकों को लुभा रही है. साथ ही नए हवाई अड्डे भी बनाए जा रहे हैं.  देश के प्रमुख हवाई अड्डों को अगले पांच सालों में वर्ल्ड क्लास बनाने की कोशिश हो रही है. एयर ट्रैफिक सिग्नल को भी बेहतर बनाया जा रहा है. अगले 10 साल में लगभग 700 प्लेन को इंडियन एयरलाइंस के बेड़े में शामिल किया जाएगा.

एयर इंडिया को पटरी पर लाने के लिए सरकार कई विकल्प तलाश रही थी. इसमें से एक एयर इंडिया का निजीकरण करना भी है. तमाम विरोधों के बावजूद सरकार ने यह फैसला ले लिया है.

भारतीय एयरलाइंस में विदेशी कंपनियां अभी तक 49 फीसदी हिस्सेदारी ले सकती थीं, लेकिन उसके लिए सरकार की मंजूरी की जरूरत होती थी. अब ऐसा नहीं रहा. कैबिनेट की मंजूरी के बाद विदेशी कंपनियां ऑटोमैटिक रूट से 49 फीसदी तक निवेश कर सकती हैं.

कैबिनेट के फैसले से कौन है नाराज?

कैबिनेट के फैसले से विपक्षी दलों के नेता नाखुश हैं. कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा ने एयर इंडिया के सौदे पर सरकार को स्थिति स्पष्ट करने को कहा है. उन्होंने सवाल किया, क्या एयरलाइन कंपनी की लाखों करोड़ों की प्रॉपर्टी और रूट राइट भी निवेशकों को दिए जाएंगे.

आनंद शर्मा के मुताबिक, एयर इंडिया के सामने कई चुनौतियां हैं. इसके पास देश विदेश में लाखों करोड़ों की प्रॉपर्टी है. सरकार को यह बताना चाहिए कि इस नीति से क्या फायदा होगा. एयर इंडिया को औने-पौने दाम में नहीं बेचना चाहिए.

कर्ज का हिसाब-किताब

साल 2017 तक एयर इंडिया पर 49 हजार 877 करोड़ रुपए का कर्ज था. इसमें से 18 हजार 360 करोड़ रुपए बेड़े को लेकर है. बाकी का 31 हजार करोड़ रुपए का कर्ज ऑपरेशनल है. इसके अलावा हर साल 4 हजार करोड़ रुपए का ब्याज लग रहा है. इंडियन एयरलाइंस के साथ एअर इंडिया का विलय साल 2007 में हुआ था. एयरलाइन कंपनी के कुल रेवेन्यू का 20 फीसदी कर्मचारियों पर खर्च हो रहा है. साल 2012 में यूपीए-2 की मनमोहन सिंह सरकार ने एयर इंडिया को 30 हजार करोड़ रुपए का पैकेज भी दिया था, लेकिन एयरलाइन की हालत ठीक नहीं हुई. वैसे कैबिनेट के इस फैसले से उम्मीद है कि एयर इंडिया को नया मालिक मिल जाएगा.