26 मई 2018 को नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार अपने पांचवें साल के कार्यकाल का आगाज करेगी. चार साल पहले बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए ने कांग्रेस की अगुवाई वाले यूपीए को हराकर सत्ता हासिल की थी. पिछले चार सालों में इस सरकार ने अच्छे काम भी किए हैं, बुरे काम भी किए हैं और गलत भी किया है. इस दौरान केंद्र सरकार ने कई सुधारों की शुरुआत की. इनमें गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स, इन्सॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्सी कोड (IBC), कई क्षेत्रों में विदेशी निवेश से जुड़े सुधार, जन-धन योजना और आधार-बैंक को जोड़ने वाला सब्सिडी सुधार कार्यक्रम प्रमुख हैं.
हालांकि, ऐसे बहुत से क्षेत्र हैं जिनमें मोदी सरकार कोई अहम सुधार करने में नाकाम रही है. इसकी एक मिसाल है-/ जमीन और लेबर सुधार. ये उन लोगों के लिए सबसे बड़ी बाधा हैं, जो भारत में कारखाने लगाना चाहते हैं.
साथ ही, 8 नवंबर 2016 को 500 और 1000 के नोटों को अगले कुछ घंटों में गैरकानूनी ठहराने के ऐलान के साथ ही मोदी ने अर्थव्यवस्था की डूबती-उतराती नैया में छेद कर दिया था. इस तरह मोदी ने एक झटके में देश में चलने वाली 86 फीसद करेंसी को गैरकानूनी बना दिया. मोदी के विरोधी कहते हैं कि ये आधुनिक भारत के आर्थिक इतिहास की सबसे बड़ी आर्थिक तबाही थी.
दस साल तक अपने गृह राज्य गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के बाद एक तजुर्बेकार राजनेता मोदी ने 2014 की शुरुआत में भारतीयों से 'अच्छे दिन' और लाने और 'सबका साथ, सबका विकास' करने का वादा किया. तब से चार साल गुजर चुके हैं. क्या मोदी ने उन वादों को पूरा किया है?
कई बार आंकड़े आप को बरगला देते हैं. फिर भी हमें आंकड़ों को देखकर ये पता लगाना होगा कि आखिर वो क्या कहते हैं. ये 10 चार्ट बताते हैं कि एशिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था भारत ने मोदी के राज में कैसा प्रदर्शन किया है.
जीडीपी
पिछले चार सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था की औसत जीडीपी 7.3 फीसद की दर से बढ़ी है. ये यूपीए-2 के पहले चार सालों की जीडीपी विकास दर 7.2 फीसद के मुकाबले में एकदम बराबर ही है. वहीं यूपीए-1 के पहले चार सालों से तुलना करें, तो ये उनकी 8.9 फीसद की विकास दर के मुकाबले काफई कम रही है. यहां ये बात भी गौर करने वाली है कि मौजूदा सरकार ने जीडीपी का हिसाब लगाने का तरीका जनवरी 2015 से बदल दिया था. उन्होंने जीडीपी विकास दर तय करने के लिए आधार वित्त वर्ष 2004-05 से बदल कर 2011-12 कर दिया था.
इसके अलावा अगर हम अलग-अलग क्षेत्रों की बात करें, तो कृषि की विकास दर मोदी सरकार के दौर में घटकर 2.4 फीसद ही रह गई. इसकी वजह लगातार दो साल पड़ा सूखा बताया जाता है. यूपीए-1 और यूपीए-2 के पहले चार सालों में कृषि क्षेत्र की विकास दर औसतन 4 फीसद रही थी. मोदी सरकार के चार सालों में औद्योगिक विकास की दर 7.1 प्रतिशत रही. जो यूपीए-2 के 6.4 फीसद के मुकाबले मामूली रूप से ज्यादा है. वहीं यूपीए-1 के 10.3 फीसद से काफी पीछे है. इसी तरह मोदी सरकार के राज में सर्विस सेक्टर का विकास 8.8 फीसद की सालाना दर से हुआ. यूपीए-2 में ये दर 8.3 प्रतिशत और यूपीए-1 में ये 9.9 प्रतिशत रही थी.
प्रति व्यक्ति जीडीपी
जैसा कि हमने पहले ही बताया जीडीपी के हिसाब-किताब के तरीके में बदलाव से एनडीए सरकार के दौरान प्रति व्यक्ति जीडीपी में काफी इजाफा हुआ. लागत की दर से ये आमदनी औसतन 91,153 रुपए और बाजार भाव के हिसाब से 1 लाख 12,556 रुपए रही. यूपीए-1 और यूपीए-2 के राज में ये प्रति व्यक्ति जीडीपी विकास दर इसकी आधी ही रही थी.
थोक मूल्य महंगाई दर
मोदी सरकार के शुरुआती कार्यकाल में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम काफी कम थे. इसकी वजह से थोक महंगाई दर का चार सालों का औसत 0.59 प्रतिशत बैठता है. वहीं यूपीए-2 के राज के पहले चार सालों में थोक महंगाई दर 7.4 प्रतिशत रही थी. यहां ये बात भी गौर करने लायक है कि थोक महंगाई दर तय करने का आधार वर्ष मोदी सरकार ने 2004-05 से बदलकर 2011-12 कर दिया था.
उपभोक्ता मूल्य महंगाई दर
ये वो दर है जिसकी मदद से रिजर्व बैंक अपनी मौद्रिक नीति तय करता है. मोदी सरकार ने इसके मापने की दर में भी थोक मूल्य सूचकांक की तरह ही बदलाव किया था. एनडीए सरकार के राज में उपभोक्ता महंगाई दर का औसत वित्त वर्ष 2018 में 3.58 फीसद और वित्त वर्ष 2015 में 5.97 फीसद था. मोदी सरकार ने इसे मापने का आधार वर्ष 2010 से बदलकर 2012 कर दिया था. इस दौरान औसत उपभोक्ता मूल्य सूचकांक वित्त वर्ष 2014 में 9.49 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2013 में 10.21 फीसद रही थी.
सेंसेक्स और निफ्टी से मिला मुनाफा
ये बात साफ है कि शेयर बाजार में निवेश करने वालों ने यूपीए सरकार के दौरान ज्यादा पैसा कमाया. सेंसेक्स ने मोदी सरकार के पहले चार सालों में औसतन 10.9 फीसद की दर से रिटर्न दिया है. वहीं निफ्टी ने 11.6 प्रतिशत के औसत से निवेशकों को मुनाफा दिया है. जबकि यूपीए-2 के कार्यकाल में सेंसेक्स ने 22.3 और निफ्टी ने 20.7 फीसद की दर से रिटर्न दिया था. यूपीए-1 के कार्यकाल में सेंसेक्स ने 31.4 और निफ्टी ने 29.6 प्रतिशत की दर से रिटर्न दिया था.
मौजूदा एनडीए सरकार के कार्यकाल में वित्त वर्ष 2015 में सेंसेक्स ने 24.9 प्रतिशत और निफ्टी ने 26.7 फीसद की दर से रिटर्न दिया. वहीं यूपीए-2 में सेंसेक्स ने 80.5 फीसद और निफ्टी ने 73.8 प्रतिशत की दर से रिटर्न दिया. इसी तरह यूपीए-1 के राज में वित्त वर्ष 2006 में सेंसेक्स ने 73.7 फीसद तरक्की की, तो निफ्टी ने 67.1 फीसद की दर से विकास किया.
खराब कर्ज की सफाई
रिजर्व बैंक ने जनवरी 2014 में बैंकों के बंद लोन खातों की पहचान शुरू की थी. इससे बैंकों को अपने खातों में जमा वो रकम बतानी पड़ी जो डूब चुकी है. बैंकों का एनपीए मार्च 2014 में 2.52 लाख करोड़ था. मार्च 2018 में ये रकम 9.62 लाख करोड़ आंकी गई. इसमें से करीब 90 फीसद पैसा सरकारी बैंकों का है. पहले से ही बेहाल बैंकिंग उद्योग को हाल में सामने आए कई घोटालों ने और भी तगड़ा झटका दिया है. मोदी सरकार बैंकों के मौजूदा हालात के लिए बार-बार यूपीए सरकार को जिम्मेदार ठहराती रही है.
पेट्रोल-डीजल की कीमतें
मोदी सरकार के लिए इस वक्त सबसे बड़ी चुनौती पेट्रोल-डीजल के दाम में लगी आग है. अब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल महंगा हो रहा है, तो, तेल कंपनियां घरेलू बाजार में ईंधन के दाम बढ़ाने को मजबूर हो गई हैं. पिछले नौ दिनों में मुंबई में पेट्रोल की कीमत 2.51 रुपए प्रति लीटर तक बढ़ गई है. वहीं डीजल के दाम 2.58 रुपए प्रति लीटर तक बढ़ गए हैं. असल में पेट्रोल के दाम कोलकाता को छोड़कर सभी बड़े शहरों में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गए हैं. इसी तरह डीजल की कीमत पूरे देश में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है.
एनडीए सरकार के चार साल के राज में पेट्रोल का औसत मूल्य मार्च महीने तक मुंबई में 73.20 रुपए प्रति लीटर था. वहीं यूपीए-2 के राज में पेट्रोल का दाम औसतन 65.14 रुपए प्रति लीटर रहा था. यूपीए-1 में ये औसत 47.83 रुपए प्रति लीटर रही थी.
इसी तरह, मोदी सरकार के चार साल में मुंबई में डीजल औसतन 61.40 रुपए प्रति लीटर बिका. यूपीए-2 के राज में डीजल औसतन 45.44 रुपए और यूपीए-1 के दौरान ये औसत 35.36 रुपए प्रति लीटर रहा था.
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश
एनडीए सरकार के दौरान सीधा विदेशी निवेश जमकर हुआ. मोदी सरकार के पहले चार साल में देश में औसतन 52.2 अरब डॉलर सालाना का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ. यूपीए-2 में सालाना औसतन 38.4 अरब डॉलर और यूपीए-1 के दौर में 18.1 अरब डॉलर सालाना का विदेशी निवेश आया था. मोदी सरकार ने जो तमाम सुधार किए हैं, उनका फायदा विदेशी निवेश में दिख रहा है.
टैक्स से आमदनी
किसी भी सरकार के लिए टैक्स वसूली आमदनी का बहुत अहम जरिया है. अच्छी टैक्स वसूली होने पर कोई भी सरकार जनता की भलाई के कार्यक्रम और बुनियादी ढांचे के विकास के प्रोजेक्ट चला सकती है. एनडीए सरकार के पहले चार साल के कार्यकाल में सरकार ने औसतन हर साल 15.91 लाख करोड़ रुपए टैक्स वसूली की. यूपीए-2 की टैक्स से सालाना आमदनी 8.36 लाख करोड़ थी, तो यूपीए-1 के पहले चार साल में ये दर 4.35 लाख करोड़ रही थी.
अब सवाल ये है कि अपने कार्यकाल के आखिरी साल में प्रधानमंत्री मोदी क्या करेंगे? इस साल बीजेपी को कई राज्यों में चुनाव लड़ने हैं और 2019 के आम चुनाव की तैयारी भी करनी है. हाल ही में हुए कर्नाटक विधानसभा के चुनाव में बीजेपी ने सबसे ज़्यादा सीटें जीतीं, लेकिन उसे बहुमत नहीं मिला. 104 सीटें जीतने के बाद भी बीजेपी सरकार नहीं बना सकी.
तो, सवाल ये है कि क्या अगले साल मोदी मैजिक काम करेगा? क्या वो 2019 में सत्ता में लौटेंगे? आम भारतीयों से लेकर अंतरराष्ट्रीय निवेशकों तक के सामने ये सवाल मुंह बाए खड़े हैं.