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कोर्ट का सवाल बैंक विफल होने की स्थिति में ग्राहकों की सुरक्षा के क्या हैं उपाय?

एक याचिका में खाते में चाहे कितनी भी राशि क्यों न जमा हो, अधिकतम एक लाख रुपए का ही बीमा उपलब्ध कराने के डीआईसीजीसी के फैसले को चुनौती दी गई है

Bhasha

दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि अगर कोई बैंक विफल होता है तो ऐसी स्थिति में बैंक में एक लाख रुपए से अधिक जमा रखने वाले ग्राहकों की सुरक्षा के लिये क्या उपाय हैं. कोर्ट ने कहा कि यह मामला आम लोगों के हितों से जुड़ा है.

चीफ जस्टिस राजेन्द्र मेनन ओर जस्टिस वी के राव ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह सवाल केंद्र सरकार से पूछा और इस बारे में हलफनामा देने को कहा.


याचिका में दावा किया गया है कि ‘डिपोजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (डीआईसीजीसी) प्रति ग्राहक एक लाख रुपए की जमा पर ही बीमा उपलब्ध कराता है. फिर भले ही उसने बचत खाते मियादी या चालू खाते में कितनी भी राशि क्यों न जमा कर रखी हो.

रिजर्व बैंक की अनुषंगी डीआईसीजीसी का गठन 1961 में किया गया था. इसका मकसद बैंकों में जमा पर बीमा तथा कर्ज सुविधा की गारंटी उपलब्ध कराना है.

सिर्फ एक लाख रुपए की ही है गारंटी:

प्रदीप कुमार ने जनहित याचिका दायर करते हुए खाते में चाहे कितनी भी राशि क्यों न जमा हो, अधिकतम एक लाख रुपए का ही बीमा उपलब्ध कराने के डीआईसीजीसी के फैसले को चुनौती दी है.

कुमार की तरफ से पेश वकील विवेक टंडन ने पीठ के समक्ष कहा कि सूचना के अधिकार कानून के तहत प्राप्त सूचना के अनुसार देश में ऐसे 16.5 करोड़ खाते हैं जिसमें एक लाख रुपए से अधिक जमा हैं. उन्होंने कहा कि पिछले 25 साल में बीमा कवर की कोई समीक्षा नहीं हुई है.

सुनवाई के दौरान केंद्र और डीआईसीजीसी ने पीठ ने कहा कि एक लाख रुपए केवल तत्काल राहत है और बैंक के विफल होने पर यह अंतिम राहत नहीं है.

हालांकि, केंद्र के वकील यह बता पाने में नाकाम रहे कि किस प्रावधान के तहत यह कहा गया है कि एक लाख रुपया तत्काल राहत है.

पीठ ने पूछा, ‘कानून के तहत क्या संरक्षण उपलब्ध है? कहां है यह?...बैंक खातों में जमा राशि पर क्या सुरक्षा उपलब्ध है. यह जन महत्व का मामला है.’’ अदालत ने केंद्र तथा डीसीजीआईसी को इन सवालों का जवाब देने के लिए हलफनामा दायर करने को कहा.