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केंद्र ने नहीं माना था सरप्लस रिजर्व ट्रांसफर पर रघुराम राजन का फॉर्मूला: RBI के पूर्व डिप्टी गवर्नर

रिजर्व बैंक की स्वायत्तता और केंद्र सरकार के उसमें कथित हस्तक्षेप को लेकर काफी बहस हो रही है. इस मुद्दे पर राजनीति भी शुरू हो चुकी है.

FP Staff

रिजर्व बैंक की स्वायत्तता और केंद्र सरकार के उसमें कथित हस्तक्षेप को लेकर काफी बहस हो रही है. इस मुद्दे पर राजनीति भी शुरू हो चुकी है. हालांकि इस मामले को लेकर साल 2014 से 2017 तक रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर रहे आर गांधी की राय अलग है. उनका मानना है कि मतभेद होना एक तरह से स्वस्थ स्थिति का संकेत है.

एक साक्षात्कार में आर गांधी का कहना है कि रिजर्व बैंक की स्वायत्तता कोई नई बहस नहीं है. यह सिर्फ नजरिए का फर्क है. सरकारें बहुत से मुद्दों पर अल्पकालिक दृष्टि से सोचती हैं जबकि केंद्रीय बैंक को मध्यावधि और लंबी अवधि को ध्यान में रखकर चलना होता है. आरबीआई और सरकार के बीच मतभेद को लेकर आर गांधी का कहना है कि मतभेद होना एक तरह से स्वस्थ स्थिति का संकेत है. निर्णय, बहस और विचार विमर्श के बाद हों तो अच्छे होते हैं.


विचार-विमर्श का सिलसिला

वहीं केंद्र सरकार के जरिए रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा सात का इस्तेमाल करने के इरादे को लेकर आर गांधी का कहना है कि इस धारा के इस्तेमाल की चर्चा ही दुर्भाग्यपूर्ण है. उनका मानना है कि रिजर्व बैंक और सरकार के बीच बातचीत और विचार-विमर्श का सिलसिला बना रहे तो इसकी नौबत नहीं आएगी. इसकी चर्चा होना ही इस बात का संकेत है कि इस सिलसिले में कुछ दिक्कतें आई हैं. अगर बातचीत हो तो हर मुद्दे का समाधान निकल आएगा.

गांधी का कहना है कि जहां तक रिजर्व बैंक के पास आरक्षित धन से अधिक हिस्सा मांगने का मुद्दा है, रिजर्व बैंक अपना वार्षिक हिसाब-किताब पूरा कर लेने के बाद अपनी बचत में से सरकार का हिस्सा उसे देता रहता है. वहीं चार साल पहले तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन ने पहल की थी और कहा था कि यह हस्तांतरण किसी फॉर्मूले/मॉडल के आधार पर होना चाहिए. पर उस समय सरकार इसके लिए तैयार नहीं थी. अब यह मांग सरकार की तरफ से उठ रही है.

रिजर्व बैंक निदेशक मंडल की बैठक 19 नवंबर को प्रस्तावित है. जिस पर गांधी ने कहा कि यह जरूरी नहीं है कि सभी मुद्दों का समाधान एक ही बैठक में हो जाए. उसमें कुछ मुद्दों को आगे के लिए टाला जा सकता है ताकि शांति के साथ उनका समाधान निकाला जा सके.