view all

बजट 2018: सेना के खर्च पर स्वास्थ्य को वरीयता देना अच्छा कदम है

सैन्य बजट पर लगाम लगाकर हेल्थ पर फोकस करना मोदी सरकार का एक अच्छा कदम है और हमें इसकी तारीफ करनी चाहिए

Aakar Patel

1 फरवरी को पेश आम बजट के कुछ दिलचस्प और उम्मीद से हटकर पहलू हैं. पहला रक्षा खर्च का अभाव है जिससे हमारे स्ट्रैटेजिक एक्सपर्ट नाराज हैं. भारत हर साल अपनी सेनाओं पर 4 लाख करोड़ रुपये खर्च करता है. आंकड़ों को समझने के लिहाज से देखें तो सबसे चर्चा वाली मोदीकेयर स्कीम (इसकी चर्चा हम आगे करेंगे) पर महज 10,000 करोड़ रुपये सालाना का खर्च आएगा. इस स्कीम के जरिए 50 करोड़ गरीबों को कवर किया जाएगा.

आर्मी पर खर्च में पेंशन पर दी जाने वाली रकम भी शामिल है जो कि मोदीकेयर के मुकाबले 10 गुना ज्यादा है. सेना के सेवानिवृत्त कर्मचारियों पर सालाना 1 लाख करोड़ रुपये खर्च होता है. वन रैंक वन पेंशन एक ऐसी स्कीम है जो कि सरकार के किसी भी अन्य कर्मचारी को नहीं मिलती है. केवल रिटायर्ड सैनिक ही एक गरीब देश से इस तरह के स्थायी बेनेफिट्स की मांग करते हैं और उसे हासिल भी करते हैं. 4 लाख करोड़ रुपये की रकम में करीब 30,000 करोड़ रुपये के अन्य खर्च शामिल नहीं हैं, जिन्हें सरकार सीआरपीएफ जैसे समूहों पर खर्च करती है. ये बल कश्मीर और पूर्वोत्तर के राज्यों में स्थायी तौर पर तैनात हैं. ये बल आर्म्ड फोर्सेज की परिभाषा में शामिल हैं और इन्हें आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट (एएफएसपीए) जैसे कानूनों के जरिए छूट हासिल है.


हालांकि, नरेंद्र मोदी सरकार ने रक्षा खर्च में कटौती नहीं की है, लेकिन इसने 2014 से हर साल रक्षा बजट में केवल 6 पर्सेंट का ही इजाफा किया है. यह महंगाई दर से मामूली ज्यादा है. इसका मतलब है कि यह इजाफा वास्तविकता में और कम है. एक्सपर्ट्स को चिंता है कि ऐसे वक्त पर जबकि चाइनीज सरकार अपने प्रभाव दायरे को लेकर ज्यादा आक्रामक हो रही है, भारत इस चुनौती को स्वीकार नहीं कर रहा है. मेरे लिए, मोदी का यह तरीका कि बोलो ज्यादा मगर हाथ में छोटी छड़ी रखो, समझदारी भरा है.

मुझे देश के सेनाओं को कायम रखने से कोई समस्या नहीं है. यह सेनाविहीन होने या एक गाल पर चांटा पड़ने पर दूसरा गाल सामने करने जैसा नहीं है. हमें अपनी सुरक्षा को यथार्थ के हिसाब से रखने और चीजों को प्राथमिकता के हिसाब से तय करने की जरूरत है. एक औसत भारतीय के चाइनीज आक्रमण के मुकाबले बीमारियों और गरीबी से प्रभावित होने के ज्यादा आसार हैं. हमें अपनी सुरक्षा को इसी संदर्भ के हिसाब से देखना होगा और अगर हम ऐसा करते हैं तो 4 लाख करोड़ रुपये बहुत ऊंची रकम है और पेंशन के लिए 1 लाख करोड़ रुपये भी बहुत ज्यादा हैं.

अन्य एक्सपर्ट चाहे जो भी महसूस करें, मुझे लगता है कि मोदी ने इस बेहिसाब ज्यादा रकम को अगर बहुत ज्यादा कम नहीं भी किया है तो भी इस पर पाबंदियां लगाकर एक बेहतरीन काम किया है.

बीमा स्कीम का मतलब

आइए अब दूसरी स्कीम की तरफ आते हैं जिसे मोदीकेयर कहा जा रहा है. इसमें देश के 10 करोड़ परिवारों को बीमा देने की बात कही गई है और अगर हम हर परिवार में पांच सदस्य मानकर चलें तो यह स्कीम देश के 50 करोड़ लोगों को कवर करेगी. इस स्कीम के तहत हर परिवार को अधिकतम 5 लाख रुपये के बेनेफिट मिलेंगे.

एक्सपर्ट्स को इस स्कीम की कुछ चीजों से दिक्कत है. पहला, अरुण जेटली ने इसके लिए पर्याप्त रकम का आवंटन नहीं किया. केवल 2,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जबकि इसकी वास्तविक कॉस्ट कहीं ज्यादा होने का अनुमान है. 5 लाख रुपये के बीमा कवर का प्रीमियम करीब 1,100 रुपये से 1,400 रुपये प्रति परिवार बैठेगा. इसका मतलब है कि इस स्कीम पर करीब 11,000 करोड़ रुपये से 14,000 करोड़ रुपये का खर्च आएगा.

दूसरा, कि स्कीम केवल एक ऐलान है. सरकार का कहना है कि यह स्कीम कैसे काम करेगी, इसको तय करने में छह महीने का वक्त लगेगा और इसे साल की दूसरी छमाही में ही लागू किया जा सकेगा. निश्चित तौर पर इस पर पहले ही विचार-विमर्श हो जाना चाहिए था और इसके बाद ही इसका ऐलान होना चाहिए था.

तीसरा, स्कीम में उम्मीद जताई गई है राज्य सरकारें कॉस्ट का करीब आधा हिस्सा अपनी जेब से देंगी और राज्यों के साथ बातचीत अभी तक शुरू नहीं हुई है.

चौथा, कि इस तरह की स्कीमें पहले से कुछ राज्यों में मौजूद हैं (जो कि पहले से 1,100 रुपये के करीब का भुगतान कर रही हैं), लेकिन इनका कोई बड़ा असर दिखाई नहीं दिया है.

पांचवां, तमाम भारतीयों के लिए अच्छे हॉस्पिटलों तक पहुंच न होना ज्यादा बड़ी समस्या है. देश के कई हिस्सों में अभी भी अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं मौजूद नहीं हैं. ऐसे में बीमा आधारित समाधान से बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी दूर नहीं होने वाली.

छठवां, अध्ययनों से पता चला है कि भारत सरकार की मेडिकल सुविधाएं दुनिया में सबसे निचले दर्जे में आती हैं. इनमें गैरहाजिरी और उत्तरदायित्व की कमी जैसे मसले दिखाई देते हैं. साथ ही गवर्नेंस की दिक्कत भी है. ऐसे में सरकार इन मसलों की उपेक्षा कर बीमा स्कीमों पर ही भरोसा करती नजर आ रही है.

इन सभी आपत्तियों में वजन है और इन्हें हल किया जाना चाहिए. हालांकि, हेल्थ प्लान देना एक बेहद जबरदस्त आइडिया है. भले ही यह अभी एक ऐलान है, लेकिन इससे सरकार को किसी बिंदु पर पहुंचकर खर्च करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. इससे कमजोर और हाशिये पर मौजूद तबकों के लिए स्वास्थ्य देखभाल का मसला प्राथमिकता में आएगा. अभी तय यह चीज रक्षा और वन रैंक वन पेंशन की बहस में कहीं दिखाई भी नहीं दे रही थी.

जब तक दबाव  बना रहेगा, पैसा मिलता रहेगा. एक बार नागरिकों को पैसा मिल गया, तो लोग सुविधाओं की भी मांग करने लगेंगे. हां, यह 5 लाख की रकम पर्याप्त है या नहीं इस पर भी हमें स्टडी करने की जरूरत है.

इन सभी वजहों से मुझे लगता है कि यह एक जबरदस्त कदम है. मैं ऐसे किसी भी तरह के धार्मिक बहुसंख्यकवाद से लगाव नहीं रखता जिस पर मोदी अपने राजनीतिक जीवन में चले हैं. इस मोर्चे पर उनके शासन के तहत जो कुछ भी हो रहा है वह डराने वाला और खतरनाक है. लेकिन, इस चीज से हमें उनके किए जाने वाले किसी अच्छे काम की तारीफ करने से खुद को रोकना नहीं चाहिए. स्वास्थ्य स्कीम ने देश की बहस की दिशा बदल दी है. इस चीज के लिए उनका समर्थन किया जाना चाहिए.