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बिहार: किसान क्रेडिट कार्ड और मुद्रा योजना के नाम पर बैंकों को चूना

बैंक कर्मचारियों ने बिचौलियों के साथ मिलकर रोहतास (सासाराम) जिले में फर्जी सर्टिफिकेट और अन्य संदिग्ध दस्तावेजों के सहारे बैंको से लोन बांट कर बैंकों को नुकसान पहुंचाया

Yatish Yadav

देश में बैंकों के माध्यम से हो रहे घोटाले थमने का नाम ही नहीं ले रहे. ताजा मामला है बिहार का है. यहां कम कम से 5 सरकारी बैंकों को करीब पांच सौ करोड़ का चूना लगा है. किसान क्रेडिट कार्ड और प्रधानमंत्री के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम मुद्रा लोन के वितरण में धांधली से बैंकों में घोटाला किया गया है. इन कर्जों के वितरण में घोर अनियमितता बरती गई है.

प्रधानमंत्री कार्यालय में इस संबंध में दो शिकायतें दर्ज कराई गई हैं. पीएमओ के अलावा वित्त मंत्रालय, केंद्रीय सतर्कता आयोग, बैंक ऑफ इंडिया, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, इलाहाबाद बैंक, पंजाब नेशनल बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा के अधिकारियों को भी कर्ज वितरण से जुड़े इस घोटाले से अवगत कराया गया है.


आरोप है कि बैंक कर्मचारियों ने बिचौलियों के साथ मिलकर रोहतास (सासाराम) जिले में फर्जी सर्टिफिकेट और अन्य संदिग्ध दस्तावेजों के सहारे बैंको से लोन बांट कर बैंकों को नुकसान पहुंचाया.

कैसे हुआ खुलासा?

मामले का खुलासा किया है विजय कुमार चौधरी ने जो कि एक संवैधानिक संस्था ‘अनुसूचित जाति के लिए राष्ट्रीय आयोग’ के सदस्य रह चुके हैं. उन्होंने पीएम को पत्र लिखकर बाताया है कि उन्होंने शिकायत करने से पहले इस संबंध में पूरे सुबूत इकट्ठे किए हैं.

चौधरी का दावा है कि ये घोटाला लगभग 500 करोड़ रुपए से ज्यादा का है. ऐसे में चौधरी की मांग है कि इस घोटाले की जांच सीबीआई से करा कर भोले भाले ग्रामीणों को शिकार बनाने वाले आरोपियों पर कानूनी रूप से कड़ी कार्रवाई की जाए.

बैंको को बड़ा झटका देने वाले नीरव मोदी और मेहुल चौकसी अगर शातिर फ्रॉड हैं तो ग्रामीण इलाकों में काम करने वाले बिचौलिए भी धोखेबाज से कम नहीं है जो कि पारस राम और अशोक पांडे जैसों के नाम पर बैंकों का एनपीए बढ़ा रहे हैं.

आम लोगों को लग रहा है चूना

रोहतास के पूर्वी भेलारी के निवासी पारस राम के नाम और पहचान पर बिचौलियों ने 7 लाख रुपए का मुद्रा लोन और किसान क्रेडिट कार्ड लोन प्राप्त कर लिया. उसी तरह से स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में अपना खाता रखने वाले अशोक पांडे ने अपना घर और जमीन 2007 में ही बेच दिया था. लेकिन इसके बावजूद बिचौलियों ने फर्जी कागजातों के आधार पर उन्हें किसान क्रेडिट कार्ड कर्ज के लिए योग्य बना दिया.

चौधरी ने पहला शिकायती पत्र पीएमओ और फाइनेंस मिनिस्ट्री को 19 फरवरी को लिखा जिसमें सासाराम के बैंक ऑफ इंडिया के महरोर ब्रांच की शिकायत की गई थी. चौधरी का आरोप था कि बैंक ऑफ इंडिया की इस शाखा से 2012 से 2017 के बीच में 100 करोड़ से ज्यादा रुपयों का घोटाला कर लिया गया.

घोटाला करने के लिए विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत मिलने वाले लाभ को अधार बनाया गया और इसे प्राप्त करने के लिए फर्जी दस्तावेजों का सहारा लिया गया. चौधरी ने अपने आरोपों के साथ बैंक ऑफ इंडिया का आरटीआई के द्वारा प्राप्त हुआ जवाब भी संलग्न किया है जिसमें बैंक ऑफ इंडिया ने स्वीकार किया है कि इस संबंध में जांच की गई है. साथ ही किसान क्रेडिट कार्ड और मुद्रा योजना से जुड़े कर्जों को फर्जी तरीके से बांटने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई की जा रही है.

किसी और के नाम पर लगाया चूना 

प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में चौधरी ने कहा है कि बैंक ऑफ इंडिया के ब्रांच हेड,लोन मैनेजर्स और बिचौलियों ने मिलकर बैंक को 2012 से 2017 के बीच में 100 करोड़ रुपए से ज्यादा राशि का घोटाला किया वो भी फर्जी नाम, पता और दस्तावेजों के सहारे.

चौधरी के अनुसार उनकी आरटीआई में बैंक ने गोपनीयता की शर्तों के तहत घोटाले की राशि और लाभ लेने वालों के बारे में जानकारी तो नहीं दी लेकिन ये स्वीकार किया है कि उनके साथ धोखाधड़ी हुई है.

फ़र्स्टपोस्ट को जो फाइल मिली है उसमें 12 फरवरी 2018 को बैंक ऑफ इंडिया ने आरटीआई का जवाब दिया है जिसमें घोटाले की बात स्वीकार की गई है. बैंक की और से सूचना अधिकारी अमरेंद्र कुमार ने जबाव देते हुए लिखा है कि इस मामले को लेकर बैंक ने जांच कराई है और इसमें शामिल होने वाले कर्मचारियों के खिलाफ नियमों के अंतर्गत कार्रवाई की जा रही है.

इस संदर्भ में हमने भी बैंक ऑफ इंडिया के पटना जोनल हेड और चीफ विजिलेंस ऑफिसर के पास एक विस्तृत सवालों के साथ मेल भेजी लेकिन उन्होंने उसका कोई उत्तर नहीं दिया.

फ़र्स्टपोस्ट ने उन दस्तावजों को भी देखा जिसमें पांच कर्जों के बारे में विस्तृत जानकारी है. इसमें बैंक ऑफ इंडिया के अधिकारियों द्वारा फर्जी दस्तावेजों के आधार पर भोला, संतोष कुमार, विक्रम राम और बलीराम के नाम पर कर्ज मंजूर करने और उसे वितरित करने करने की पूरी कहानी दर्ज है.

बेशर्म दलालों और लोन अधिकारियों की मिलीभगत

28 फरवरी 2018 को चौधरी ने पीएम मोदी और वित्त मंत्रालय को एक और चिट्ठी लिखी. इसमें चौधरी ने दावा किया कि इसी तरह का घोटाला कई और बैंकों में सामने आया है लेकिन उन बैंकों के अधिकारी इनसे संबंधित घोटाले को छिपाने का प्रयास कर रहे हैं.

चौधरी ने अपने पत्र में लिखा है कि उनके पास सासाराम के पंजाब नेशनल बैंक के नटवार शाखा के बारे में पुख्ता सुबूत है कि वहां पर बिचौलियों ने 2014 से 2017 के बीच किसान क्रेडिट कार्ड लोन, मुद्रा योजना और अन्य लाभकारी योजनाओं के नाम पर गोरखधंधा किया है. उसी तरह से एसबीआई की नटवार शाखा से उसी तरकीब से बिचौलियों और उसी बैंक के अधिकारियों ने चूना लगाया.

लेकिन एसबीआई ने इन घोटालों के संबंध में जानकारी देने से इंकार कर दिया है. एसबीआई ने जवाब नहीं देने के लिए आरटीआई एक्ट 2005 का सहारा लिया है. इस संबंध में पूछे गए आरटीआई के जवाब में एसबीआई ने 28 फरवरी को (RBO-4/RTI/333) इसके तहत कहा है कि मांगी गई जानकारी तीसरे पक्ष से संबंधित है ऐसे में आरटीआई एक्ट 2005 के धारा 8 1(j) के तहत जानकारी नहीं दी जा सकती.

इस धारा के मुताबिक 'सूचना, जो व्यक्तिगत सूचना से संबंधित है, जिसका प्रकटन किसी लोक क्रियाकलाप या हित से संबंध नहीं रख या जिससे व्यक्ति की एकांतता पर अनावश्यक अतिक्रमण होगा ऐसी सूचना को प्रकट करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है.'

लेकिन चौधरी एसबीआई के इस जवाब से संतुष्ट नहीं हैं और वो अपने आरटीआई जवाब के खिलाफ आगे अपील करने पर विचार कर रहे हैं. उनके अनुसार मांगी गई जानकारी लोगों के हित में है क्योंकि टैक्स देने वालों को छला गया है और सरकार को धोखे में रखा गया है.

बैंक नहीं ले रहे हैं कोई एक्शन

चौधरी अपनी सारी जानकारी जांच अधिकारियों को देने को तैयार हैं. उनका आरोप है कि मुद्रा और किसान क्रेडिट कार्ड के कर्ज फर्जी दस्तावेजों के आधार पर वितरित करने के बावजूद बैंक अधिकारियों ने इस संबंध में कभी भी कोई चेतावनी जारी नहीं की. हालांकि उन बैंकों के कुछ ईमानदार अधिकारियों ने पहल की है और वो इस घोटाले के खुलासे के लिए इससे संबंधित सभी दस्तावेज जांच ऐजेंसियों और सरकार को देने के लिए तैयार हैं.

बैंक ऑफ बड़ौदा और इलाहाबाद बैंक के दिनारा ब्रांच में भी कुछ इसी तरह का घोटाला हुआ है और यहां भी इन सरकारी योजनाओं के नाम पर भ्रष्टाचार हुआ है. चौधरी का कहना है कि उन्होंने इन बैंकों से भी आरटीआई के तहत जानकारी मांगी थी लेकिन ये बैंक जानकारी देने के बजाए उसे छिपाने में जुटे हैं. बैंकों ने अपनी अंदरूनी जांच के बारे में जानकारी देने से इंकार कर दिया है.

फ़र्स्टपोस्ट ने इस स्टोरी के संबंध में एसबीआई,पंजाब नेशनल बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा से उनका पक्ष जानने की कोशिश की लेकिन लगातार प्रयास और उन्हें विस्तृत प्रश्नावली भेजने के बाद भी उनकी तरफ से इस संबंध में कोई उत्तर नहीं मिल सका.

चौधरी का आरोप है कि बिचौलिए और दलालों की पहुंच ऊपर तक है और उनके इस घोटाले की शिकायत के एक हफ्ते के भीतर पुलिस घोटालेबाजों के साथ मिलीभगत करके उनकी सुरक्षा हटा कर उन्हें खतरों के साथ रहने के लिए मजबूर कर दिया है.

चौधरी का कहना है कि उन्हें 26 फरवरी 2018 को पटना पुलिस का एक पत्र मिला जिसमें दी गई जानकारी से वो चौंक गए. फ़र्स्टपोस्ट को चौधरी ने बताया कि पटना पुलिस ने उनकी सुरक्षा यह कह कर वापस ले ली कि पुलिसकर्मियों की कमी है जबकि उन्हें वहां के माफियाओं से लगातार केस वापस लेने के लिए धमकियां मिल रही है. चौधरी का कहना है कि वो बड़े घोटाले का खुलासा करने वाले व्यक्ति हैं और उनकी जान खतरे में भी है इसके बावजूद पुलिस ने उनकी सुरक्षा हटा कर उनपर खतरे की अनदेखी की है.

क्यों सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में घपला होता है?

किसान क्रेडिट कार्ड जैसी सरकारी योजनाओं में घोटाले की पूरी गुंजाइश बनी रहती है क्योंकि इसमें किसानों को कर्ज न केवल बिना सिक्योरिटी के मिल जाता है बल्कि उसे चुकाने के लिए भी उन्हें कई तरह विकल्प दिए जाते हैं.

नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रुरल डेवलपमेंट (नाबार्ड) ने 2017 में प्रकाशित अपनी एक स्टडी में बताया है कि 2017 में 31 मार्च 2015 तक 7.41 करोड़ किसान क्रेडिट कार्ड ऑपरेटिव हैं. नाबार्ड की स्टडी में ये भी खुलासा हुआ है कि कई मामलों में फर्जी जमीन के कागजातों के आधार पर किसान क्रेडिट कार्ड प्रात कर लिया गया है या फिर एक ही जमीन के आधार पर दो-दो बैंकों में केसीसी अकाउंट खोल दिए गए हैं.

नाबार्ड के मुताबिक ऐसा इसलिए होता है क्योंकि भूमि और राजस्व के रिकार्ड ऑनलाइन नहीं है ऐसे में बैंकों को जमीन के रिकार्डों को जांचने का कोई विश्वसनीय आधार नहीं होता है.

हालांकि नाबार्ड ने किसान क्रेडिट कार्ड योजना की तारीफ करते हुए कहा है कि किसान क्रेडिट कार्ड रखने वाले किसान कार्ड नहीं रखने वाले किसानों से मुकाबले ज्यादा कमा रहे हैं. नाबार्ड कि रिपोर्ट के मुताबिक केसीसी योजना के क्रियान्वयन से निश्चित रूप से किसानों को फायदा पहुंचा है लेकिन अलग-अलग किसानों को अलग-अलग तरीके से इसका लाभ मिला है. जिसने अपने भूमि संसाधनों को बेहतर तरीके से इस्तेमाल किया उसे ज्यादा लाभ मिला.

किसानों का हक छीना 

दूसरी तरफ किसान क्रेडिट कार्ड से इतर घोटालेबाज मुद्रा योजना को भी अपने निशाने पर लिए हुए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक है ‘माइक्रो यूनिट्स डेवलेपमेंट एंड रिफायनेंस ऐजेंसी’ (मुद्रा). इस योजना का लक्ष्य है उद्यमियों को समावेशी विकास के लिए मदद करना.

प्रतीकात्मक तस्वीर

चौधरी की शिकायत के महज दो दिनों के बाद राजस्थान के बाड़मेड़ जिले में एक मामला सामने आया जिसमें पंजाब नेशनल बैंक को 62 लाख रुपए की चपत लगी थी. वहां के शाखा प्रबंधक ने कुछ लोगों के साथ मिलकर 26 मुद्रा लोन स्वीकृत कर दिए.

सीबीआई ने इस संबंध में 21 फरवरी को एक केस भी दर्ज कर लिया है. सीबीआई ने कहा कि लोन स्वीकार करने से पहले तय मानकों की पूरी तरह से अनदेखी की गयी और न तो लोन लेने से पहले ही किसी तरह का निरीक्षण या सत्यापन किया गया और न ही लोने देने के बाद इस तरह की कोई जांच की गई.

मुद्रा लोन क्यों है खास?

मुद्रा लोन में अन्य कर्जों की अपेक्षा ब्याज की दर कम होती है इसके अलावा मुद्रा से कर्ज लेने में किसी तरह के कोलैटरल सिक्योरिटी की जरूरत नहीं होती है. हालांकि लोन लेने के बाद संपत्ति हासिल करना और हासिल की गई संपत्ति को बैंक के पास सिक्योरिटी के रूप में रखना आवश्यक होता है.

सीबीआई को जांच में पता चला कि जिन लोगों के नाम पर कर्ज स्वीकृत किया गया है वो बाड़मेड़ में रहते तक नहीं है और बैंक 62 लाख 40 हजार 773 रुपया का अपना कर्ज उनसे वसूलने में इसलिए नाकामयाब रहा क्योंकि उनके पास इस कर्ज की कोई सिक्योरिटी ही नहीं थी.

जांच के दौरान इस बात का भी पता चला कि इस मामले की पहले जांच पीएनबी के जोधपुर डीजीएम ऑफिस ने कराई थी. इसके बाद बैंक के एसओ को सस्पेंड भी किया गया था लेकिन बाद में उसका सस्पेंशन खत्म कर दिया गया और फिलहाल वो पीएनबी के आबू रोड ब्रांच में काम कर रहा है.

2015-16 में 132954 करोड़ रुपया मुद्रा योजना के तहत वितरित हुआ जबकि 2016-17 में 175312 करोड़ और 2017-18 में 201977 करोड़ रुपया बांटा गया.  चौधरी ने पीएमओ और वित्त मंत्रालय से गुहार लगायी है कि उनके आरोपों की गहन जांच कराई जाए.

चौधरी का दावा है कि कई सरकारी बैंकों के बिहार स्थित शाखाओं में मुद्रा लोन स्वीकृत और वितरित करने में भारी भ्रष्टाचार हुआ है. चौधरी का कहना है कि ये गंभीर मसला है और सरकार को चाहिए कि वो इन मामलों की सीबीआई से जांच कराए जिससे की आगे इस तरह के घोटालों पर लगाम लग सके.