उद्योग मंडल एसोचैम का मानना है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में चल रहे मौजूदा संकट को एक अवसर के रूप में इस्तेमाल करते हुए इन बैंकों का निजीकरण किया जाना चाहिए.
हालांकि, उद्योग मंडल ने कहा कि यह प्रक्रिया इस तरीके से आगे बढ़ाई जानी चाहिए कि इसकी व्यापक स्वीकार्यता हो.
एसोचैम के महासचिव डी एस रावत ने कहा, ‘शुरुआत में जिन सरकारी बैंकों में सरकार की इक्विटी 80 प्रतिशत तक है उसे घटाकर 50 प्रतिशत और फिर इससे भी नीचे लाया जाना चाहिए.’
रावत ने कहा, ‘जैसे ही बैंक में सरकार की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत से नीचे आएगी, बैंक सीवीसी, सीबीआई और कैग के घेरे से बाहर आ जाएंगे. इससे उन्हें अधिक स्वायत्तता मिलेगी और शीर्ष प्रबंधन का भरोसा बढ़ेगा और बैंक बिना किसी भय के कर्ज दे सकेंगे.’
उन्होंने कहा कि इससे इन बैंकों के निदेशक मंडल अधिक पेशेवर तरीके से काम कर सकेगें और स्वतंत्र निदेशक वास्तव में पूरी स्वतंत्रता के साथ अपनी राय दे सकेंगे.
रावत ने कहा कि इससे अलावा बैंक के बोर्ड अधिक सशक्त होंगे और उन्हें रणनीतिक फैसलों के लिए वित्त मंत्रालय के पास जाने की जरूरत नहीं होगी. हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) नियामक की भूमिका निभाता रहेगा, लेकिन वह यह कार्य अधिक दक्षता से कर सकेगा.
हालांकि, रावत ने कहा कि बैंकों का निजीकरण कड़ाई के साथ नहीं होना चाहिए. यह इस तरह से होना चाहिए जिसमें की राजनीतिक नेतृत्व की स्वीकार्यता भी हो.