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ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए सरकार ने सख्त किए नियम, एक्सक्लूसिव सेल के नाम पर नहीं चलेगी मनमानी

एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, इस कदम से ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा कीमतों को प्रभावित करने पर पूरी तरह से लगाम लगेगी

FP Staff

सरकार ने ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए नियमों को बुधवार को और सख्त कर दिया है. अब फ्लिपकार्ट और एमेजॉन जैसे ऑनलाइन ई-कॉमर्स कंपनियां उन कंपनियों के प्रोडक्ट नहीं बेच पाएंगी, जिनमें इनकी हिस्सेदारी है. इसके साथ ही ई-कॉमर्स कंपनियों के एक्सक्लूसिव मार्केटिंग अरेंजमेंट पर भी रोक लगा दी गई है. कॉमर्स एंड इंडस्ट्री मिनिस्ट्री ने ऑनलाइन रिटेल में एफडीआई पर रिवाइज्ड पॉलिसी में कहा कि इन कंपनियों को अपने सभी वेंडर को बिना भेदभाव किए समान सेवाएं और सुविधाएं उपलब्ध करानी होंगी.

मंत्रालय ने कहा कि रिवाइज्ड पॉलिसी का लक्ष्य घरेलू कंपनियों के हितों को उन ई-कंपनियों से बचाना है जिनके पास एफडीआई के जरिए बड़ी पूंजी उपलब्ध है. ये रिवाइज्ड पॉलिसी एक फरवरी 2019 से लागू होगी.


मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक नए नियमों के मुताबिक ई कॉमर्स कंपनियों को अपने बिजनेस मॉडल में बदलाव करना पड़ेगा. नए नियमों के मुताबिक कोई भी ई कॉमर्स कंपनी किसी एक सप्लायर को खास सुविधा नहीं दे सकती. इसी के साथ किसी एक खास ई कॉमर्स कंपनी के पॉर्टल पर ब्रांड के लॉन्च, कैशबैक या एक्सलूसिव सेल जैसी डील्स देने में भी परेशानी हो सकती है.

एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘इस कदम से ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा कीमतों को प्रभावित करने पर पूरी तरह से लगाम लगेगी. इससे ई-कॉमर्स कंपनियों में एफडीआई गाइडलाइंस को बेहतर तरीके से लागू किया जा सकेगा.’

सामान बेचने की लिमिट तय

पॉलिसी के अनुसार, कोई भी वेंडर ज्यादा से ज्यादा 25 फीसदी प्रोडक्ट्स को ही किसी एक ऑनलाइन मार्केटप्लेस के जरिए बेच सकेंगे. मंत्रालय ने कहा, ‘अगर किसी वेंडर के 25 प्रतिशत से ज्यादा उत्पादों को कोई एक ई-कॉमर्स कंपनी खरीदती है तो उस पर ई-कॉमर्स कंपनी का नियंत्रण माना जाएगा.’

उसने कहा, ‘ऐसी कोई भी इकाई जिनके ऊपर ई-कॉमर्स कंपनी या उसके समूह की किसी कंपनी का नियंत्रण हो या उनके भंडार में ई-कॉमर्स कंपनी या उसके समूह की किसी कंपनी की हिस्सेदारी हो तो वह इकाई संबंधित ऑनलाइन मार्केटप्लेस (मंच) के जरिए अपने उत्पादों की बिक्री नहीं कर सकेंगी.’

नोटिस में कहा गया है कि ई-कॉमर्स कंपनी किसी भी बिक्रेता को अपना कोई प्रोडक्ट सिर्फ अपने मंच के जरिए बेचने के लिए मजबूर नहीं कर सकती हैं.

ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष या साझी हिस्सेदारी वाले वेंडरों को दी जाने वाली लॉजिस्टिक जैसी अन्य सेवाएं उचित और बगैर भेदभाव के होनी चाहिए.'

(भाषा से इनपुट)