हमारे शरीर में मौजूद है हमारी आत्मा, जोकि प्रकाश, प्रेम, और शांति से भरपूर है. हमारी आत्मा तो हमेशा प्रेम और आनंद की अवस्था में ही रहना चाहती है, लेकिन उसे ऐसा करने से रोकता है हमारा मन, जोकि हर समय कभी न खत्म होने वाली इच्छाओं की पूर्ति करने में ही लगा रहना चाहता है. हमारे आत्मिक खजाने मन, माया, और भ्रम की परतों के नीचे ही दबे रहते हैं.
हमारा मन बाहरी दुनिया के भोगों-रसों से ही आनंद प्राप्त करता है और सदा उनमें ही लीन रहना चाहता है. इसीलिए हमारा ध्यान आंतरिक संसार के बजाय हर वक्त बाहरी दुनिया में ही लगा रहता है. मन की इच्छाएं हमारी आत्मा पर और भी अधिक पर्दे डालती चली जाती है. हमारे क्रोध, काम, लोभ, मोह, धोखा, और अहंकार में बढ़ोतरी करती है.
बाहरी दुनिया के आकर्षण होते हैं अस्थाई
दुर्भाग्य तो यह है कि बाहरी दुनिया के आकर्षण अस्थाई होते हैं, क्योंकि या तो ये हमसे छिन जाते हैं या नष्ट हो जाते हैं. तब हमारे मन को बहुत अधिक दुःख और तकलीफ का सामना करना पड़ता है. इस तरह हमारा जीवन एक झूले की तरह ही है, जो लगातार सुख और दुःख के उतार-चढ़ाव से गुज़रता रहता है, तो क्या कोई ऐसा तरीका है जिससे हम इन बाधाओं को दूर कर, अपनी आत्मा का अनुभव कर सकें? इस भौतिक संसार के समुद्र में बह जाने से आखिर हम कैसे बच सकते हैं?
सौभाग्यवश, युगों-युगों से संत-महापुरुष आत्मा के क्षेत्र में तरक्की करते रहे हैं. जिस प्रकार कुछ लोगों ने उस वक्त समुद्री यात्राएं करके नए-नए देशों की खोज की. जब बाकी लोग समझते थे कि धरती गोल नहीं बल्कि चपटी है. जिस प्रकार बहादुर अंतरिक्ष यात्रियों ने अंतरिक्ष में यात्राएं करके नई-नई खोजें की हैं, उसी प्रकार संतों ने अंतर में ध्यान टिकाकर आत्मा के संसार में यात्राएं की हैं.
जीवन को इस प्रकार करें व्यवस्थित कि आत्मा से कर सकें संपर्क
उन्होंने महान अवरोधों को पार किया, मन और इंद्रियों के आकर्षणों से ऊपर उठे, तथा अपने ध्यान को अंतर्मुख किया. अपनी आत्मा के प्रवेषद्वार तक पहुंचकर, उन्होंने उसके भीतर प्रवेश कर, आत्मा पर पड़ी मन-माया की परतों को साफ किया. जिससे कि उनकी आत्मा अपने मौलिक प्रकाश से जगमगा उठी.
उन्होंने अपने जीवन को इस प्रकार व्यवस्थित किया कि वे समय निकालकर अपनी आत्मा के संपर्क में आ सकें. उसकी असीम शक्ति का अनुभव कर सकें. वे अपने जीवन में इस प्रकार संतुलन लाए कि उन्होंने अपने सभी सांसारिक उत्तरदायित्व निभाने के साथ-साथ अपने आत्मिक पहलू का भी विकास किया. उन्होंने आंतरिक दिव्य-अमृत का रसपान स्वयं ही नहीं किया बल्कि उस अमृत को अन्य प्यासे जिज्ञासुओं में भी बांटा.
संतों-महापुरुषों के अनुसार यदि हम अपने सच्चे आत्मिक स्वरूप का अनुभव कर लें, तो हम हर समय खुशी और शांति की अवस्था में रहेंगे. प्रतिदिन अंतर में ध्यान टिकाकर और अपने मन को शांत कर, हम सुख और संतुष्टि से भरपूर जीवन बिता सकते हैं. ऐसी समस्त इच्छाओं से मुक्त हो सकते हैं जो हमें नैतिक मार्ग से भटका देती हैं.
(लेखक सावन कृपाल रूहानी मिशन के प्रमुख हैं)