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जानें लोगों के दुख हरने वाले बाबा साईं को लेकर क्या है मान्यता, क्यों और कैसे की जाती है उनकी पूजा

साईं बाबा कोई काल्पनिक शख्सियत नहीं थे. वो सशरीर इस धरती पर आए थे, लोगों के बीच रहे और लोगों को इंसानियत का पाठ पढ़ाया

FP Staff

साईं बाबा कोई काल्पनिक शख्सियत नहीं थे. वो सशरीर इस धरती पर आए थे. वो लोगों के बीच रहे और लोगों को इंसानियत का पाठ पढ़ाया. उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा करने में लगा दिया. साईं बाबा ने जो शिक्षा और ज्ञान अपने भक्तों को दिए थे उसे आज भी उनके भक्त संभाल कर रखें हुए हैं. आज सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के कोने-कोने में साईं मंदिर हैं, जिनमें साईं बाबा की पूजा की जाती है. इन्हीं मंदिरों में से एक है शिरडी का साईं मंदिर.

क्या है मान्यता?


ऐसी मान्यता है कि साईं के दरबार में जो भी जाता है वह खाली हाथ नही लौटता है. साईं के दर्शन के बाद यही विश्वास और आस्था हर भक्त के जीवन से निराशा व दुखों को दूर कर उसे मन-मस्तिष्क दोनों से बलवान करती है.

ऐसी मान्यता है कि साईं को कुमकुम लगाने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है, मौली (कलावा या रक्षा सूत्र) बांधने से इंसान मर्यादा में रहता है, दूध अर्पित करने से वंश की वृद्धि होती है, दही अर्पित करने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है और शहद अर्पित करने से जीवन में मधुरता आती है.

साईं बाबा की पूजा करते समय हमेशा दाहिनी ओर घी का दीपक और बायीं और तेल का दीपक जलाना चाहिए. घी का दीपक प्रज्वलित करने से घर में यश और खुशी आती है और तेल का दीपक प्रज्वलित करने से किसी भी प्रकार की गृहदशा, मंगल दोष और शनिदोष दूर होता है.

गुरुवार के दिन रखा जाता है व्रत

गुरुवार के दिन शुक्लपक्ष या कृष्णपक्ष किसी भी तिथि में व्रत शुरु कर सकते हैं. नौ गुरुवार लगातार व्रत करने से घर मिलना, नौकरी मिलना या विदेश यात्रा पर जाना संभव हो जाता है. हफ्ते के सात दिनों में गुरुवार का दिन बाबा के नाम पर है. शिरडी में आज भी हर गुरुवार साईं की पालकी निकलती है, जिसके दर्शन के लिए हजारों भक्तों की भीड़ उमड़ती है. ऐसा माना जाता है कि जिसने भी पालकी में बाबा के दर्शन कर लिए उन्हें साक्षात साईं के दर्शनों का सौभाग्य मिलता है.

साईं बाबा के मंत्र

ॐ सांईं देवाय नम:

ॐ शिर्डी वासाय विद्महे सच्चिदानंदाय धीमहि तन्नो सांईं प्रचोदयात

ॐ सांईं गुरुवाय नम:

ॐ शिर्डी देवाय नम:

ॐ समाधिदेवाय नम:

ॐ सांईं राम

ॐ सर्वदेवाय रूपाय नम: