उसके दर पर हिंदू और मुस्लिम का भेद मिट जाता है. हर धर्म के लोग उसके दरवाजे पर आते हैं, यह एक ऐसे भक्त या संत का दरबार है, जो खुद को हमेशा फकीर मानता रहा. ये हैं शिरडी के साईं बाबा. साईं बाबा की सिर्फ किसी एक समाज में प्रतिष्ठा नहीं है. उन्होंने अपने आप को एक सच्चे सद्गुरु को समर्पित कर दिया था, लोग उन्हें भगवान का अवतार ही समझते थे.
कब हुआ था साईं का जन्म?
हर कोई जानना चाहता है कि वो कौन थे, कहां से आए और कहां गए? उनके चमत्कारों का राज क्या है? साईं बाबा का जन्म कब हुआ, इसे लेकर पूरे भरोसे से नहीं कहा जा सकता. कुछ लोगों का ऐसा मानना है कि उनका जन्म 28 सितंबर 1835 को हुआ था, लेकिन इससे संबंधित पर्याप्त दस्तावेज नहीं हैं. उन्होंने शरीर कब छोड़ा, इसे लेकर आम राय है. तारीख थी 15 अक्टूबर 1918.
साईं बाबा के लिए मंदिर और मस्जिद एक जैसे थे
उन्होंने पूरी जिंदगी फकीरों की तरह जी. नश्वर चीजों का उन्हें कोई मोह नहीं था. पूरी जिंदगी वो लोगों को प्यार, दया, मदद, समाज कल्याण जैसे पाठ पढ़ाते थे. वो लोगों को धर्म के आधार पर भेदभाव से मना करते थे. उनके लिए मंदिर और मस्जिद एक जैसे थे. वो हमेशा कहते थे– 'सबका मालिक एक.'
साईं नाम उन्हें उनके शिरडी आने पर दिया गया था, जो महाराष्ट्र का एक गांव है. साईं बाबा के कुछ अनुयायी भी उस समय में धार्मिक संत और गुरु के नाम से प्रसिद्ध हुए थे, जैसे शिरडी के खंडोबा मंदिर का पुजारी महालसापति और उपासनी महाराज.
लोग उन्हें पागल समझते थे
साईं सत्चरित्र किताब के अनुसार, जब वो 16 साल के थे तभी ब्रिटिश भारत के महाराष्ट्र राज्य के अहमदनगर जिले के शिरडी गांव में आए थे. वह एक संन्यासी बनकर जिंदगी जी रहे थे. बुनकर का काम भी वो करते थे. ज्यादातर समय नीम के पेड़ के नीचे ध्यान लगाकर बैठे रहते या आसन में बैठकर भगवान की भक्ति में लीन रहते थे.
लोग चकित रहते थे. कुछ लोग उन्हें पागल समझते थे. उन पर पत्थर फेंकते थे. कुछ समय के लिए साईं शिरडी से चले गए. करीब एक साल बाद आए और उसके बाद यहीं रहे.
वापस आने के बाद तकरीबन 4 से 5 साल तक साईंबाबा एक नीम के पेड़ के नीचे रहते थे और अक्सर लंबे समय के लिए शिरडी के जंगलों में भी चले जाते थे. लंबे समय तक ध्यान में लगे रहने की वजह से वे कई दिनों तक लोगों से बात भी नहीं करते थे.
भिक्षा मांगकर रहते थे साईं बाबा
कुछ समय बाद लोगों ने उन्हें एक मस्जिद रहने के लिए दी. वहां वे लोगों से भिक्षा मांगकर रहते थे. मस्जिद में पवित्र धार्मिक आग भी जलाते थे जिसे उन्होंने धुनी का नाम दिया था, लोगों के अनुसार उस धुनी में एक अद्भुत चमत्कारिक शक्तियां थीं. वे बीमार लोगों को अपनी धुनी से ठीक करते थे. साईं बाबा अपने भक्तों को धार्मिक पाठ भी पढ़ाते थे. हिंदुओं को रामायण और भगवद् गीता और मुस्लिमों को कुरान पढ़ने के लिए कहते थे.
1910 के बाद साईं बाबा की ख्याति तेजी से फैलती गई. उनके मंदिर बनाए जाने लगे. 15 अक्टूबर का दिन आया. वो विजयदशमी थी. लोग दर्शन के लिए आ रहे थे. बाबा उनके सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद और प्रसाद दे रहे थे. उसके बाद आरती का समय आया. दोपहर के ढाई बज गए थे. बाबा ने बताया कि अब वह शरीर छोड़ने वाले हैं. इसे लेकर तमाम कहानियां हैं. दिव्य ज्योति के प्रकट होने की बात भी कही जाती है.