नवरात्रि में दूसरे दिन की पूजा माता ब्रह्मचारिणी स्वरुप की होती है. माता ब्रह्मचारिणी हिमालय और मैना की पुत्री हैं. इन्होंने देवर्षि नारद जी के कहने पर भगवान शंकर की ऐसी कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने इन्हें मनोवांछित वरदान दिया. जिसके फलस्वरूप यह देवी भगवान भोले नाथ की वामिनी अर्थात पत्नी बनी. जो व्यक्ति अध्यात्म और आत्मिक आनंद की कामना रखते हैं उन्हें इस देवी की पूजा से सहज यह सब प्राप्त होता है.
पूजा का समय
शुक्रवार को पूजा का समय सुबह 6 बजे से दिन के 10.14 बजे तक पूजा का मुहूर्त है. ऐसे भक्त जो नियमानुसार पूजा करते हैं वह सुबह 10.14 तक पूजा की शुरुआत कर सकते हैं. बाकि भक्त दिन भर पूजा कर सकते हैं.
इनकी पूजन विधि इस प्रकार है-
देवी ब्रह्मचारिणी जी की पूजा का विधान इस प्रकार है, सर्वप्रथम आपने जिन देवी-देवताओ एवं गणों व योगिनियों को कलश में आमंत्रित किया है उनकी फूल, अक्षत, रोली, चंदन, से पूजा करें उन्हें दूध, दही, शर्करा, घृत, व मधु से स्नान कराएं व देवी को जो कुछ भी प्रसाद अर्पित कर रहे हैं उसमें से एक अंश इन्हें भी अर्पण करें.
प्रसाद के पश्चात आचमन और फिर पान, सुपारी भेंट कर इनकी प्रदक्षिणा करें. कलश देवता की पूजा के पश्चात इसी प्रकार नवग्रह, दशदिक्पाल, नगर देवता, ग्राम देवता, की पूजा करें। इनकी पूजा के पश्चात माता ब्रह्मचारिणी की पूजा करें.
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
अर्थ - हे मां! सर्वत्र विराजमान और ब्रह्मचारिणी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है. या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ.
मां की उपासना का मंत्र
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली. देवी का यह रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है. मां के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में यह कमण्डल धारण किए हैं.