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कर्बला में शिया ही नहीं सुन्नी भी जाते हैं चेहल्लुम में

इमाम हुसैन की मजार पर जाने वालों की गिनती हज पर जाने वालों से भी ज्यादा हो जाती है

FP Staff

मुहम्मद साहब के छोटे नवासे (नाती) हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में इमाम हुसैन का चेहलुम (चालीसवां) मनाया जाता है. चेहल्लुम को हुसैन की शहादत के चालिस दिन हुए थे.

इमाम हुसैन ने यजीद के आतंक के खिलाफ जंग लड़ी जिसमें 72 लोग शहीद हुए थे. आतंकियों ने सभी को मार डाला था. उन्हीं शहीदों का गम मोहर्रम में मनाया जाता है, जो सवा दो महीने तक होता है. 10 नवंबर को चेहल्लुम में हिंदुस्तान में भी कई जगह मातम किया गया.


कर्बला की जंग शहजादों की जंग नहीं थी

कर्बला की जंग इसकी मिसाल है कि आतंक से कैसे लड़ा जाता है. मुस्लिमों के मुताबिक कर्बला की जंग दो शहजादों की जंग नहीं थी. बल्कि ये इस्लाम की वो जंग थी. जिसमें एक तरफ हुसैन थे और दूसरी तरफ यजीद थे.

कर्बला इराक में मौजूद है. कर्बला में होने वाली जंग इस्लामिक जंगों में सबसे अलग जंग कही जाती है. क्योंकि इस जंग में इमाम हुसैन को कत्ल कर दिया गया था. मुहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन की शहादत की याद में मातम करते है.

कर्बला में मौजूद हैं इमाम हुसैन की कब्र

कर्बला वो जगह है जहां मुहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन को शहीद कर दिया गया था. तकरीबन 1400 साल पहले तीन दिन तक भूखा प्यासा रखकर कुंद खंजर से गला काट दिया गया था. इस कब्र पर चेहलुम मनाने के लिए शिया मुस्लिम ही नहीं बल्की सुन्नी मुस्लिम भी इनकी मज़ार (रौज़ा) पर जाते हैं.

'लब्बैक या हुसैन' (हुसैन हाज़िर हूं) की सदाएं बुलंद करते हुए दुनिया भर से इमाम के चाहने वाले उनकी कब्र पर पहुंचते हैं. दिलचस्प बात है की इनकी तादाद हज जाने वालों से भी कई गुना हो जाती है.