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Hartalika Teej 2018: सुहाग की लंबी उम्र के लिए हरतालिका तीज पर रखा जाता है व्रत, जानिए कथा

इस बार हरतालिका तीज 12 सितम्बर दिन बुधवार को मनाई जाएगी. इस बार पूजन मुहूर्त प्रात काल 6:15 से 9:20 तक है.

FP Staff

भाद्रपद मास की शुक्ल तृतीया तिथि को हरतालिका तीज के रूप में मनाया जाता है. तृतीया तिथि को तीज भी कहा जाता है. मान्यता है कि इस दिन माता पार्वती जी की आराधना करने, व्रत रखने से सुहागिन स्त्रियों को अपने सुहाग की लंबी आयु और अविवाहित कन्याओं को मनोवांछित वर प्राप्त होने का वरदान मिलता है. माना जाता है कि इस दिन माता पार्वती की सहेलियां उनका हरण कर उन्हें जंगल में ले गई थीं. जहां माता पार्वती ने भगवान शिव को वर रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था. इस बार हरतालिका तीज 12 सितम्बर दिन बुधवार को मनाई जाएगी. इस बार पूजन मुहूर्त प्रात काल 6:15 से 9:20 तक है.

हरतालिका तीज व्रत कथा


शिव जी ने माता पार्वती जी को इस व्रत के बारे में विस्तार पूर्वक समझाया था. मां गौरा जी ने सती जी के रूप में अवतार लेने के बाद माता पार्वती जी के रूप में हिमालय के घर में जन्म लिया था. बचपन से ही माता पार्वती जी शिव जी को वर के रूप में पाना चाहती थी और उसके लिए उन्होंने कठोर तप किया. 12 वर्षों तक निराहार रह करके तप किया. एक दिन नारद जी ने उन्हें आकर कहा कि पार्वती के कठोर तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु आपकी पुत्री से विवाह करना चाहते हैं. नारद मुनि की बात सुनकर महाराज हिमालय बहुत प्रसन्न हुए. उधर भगवान विष्णु के सामने जाकर नारद मुनि बोले कि महाराज हिमालय अपनी पुत्री पार्वती से आपका विवाह करवाना चाहते हैं. भगवान विष्णु ने भी इसकी अनुमति दे दी.

फिर माता पार्वती के पास जाकर नारद जी ने सूचना दी कि आपके पिता ने आपका विवाह भगवान विष्णु से तय कर दिया है. यह सुनकर पार्वती बहुत निराश हुई उन्होंने अपनी सखियों से अनुरोध कर उसे किसी एकांत गुप्त स्थान पर ले जाने को कहा. माता पार्वती की इच्छानुसार उनके पिता महाराज हिमालय की नजरों से बचाकर उनकी सखियां माता पार्वती को घने सुनसान जंगल में स्थित एक गुफा में छोड़ आईं. यहीं रहकर उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप शुरू किया जिसके लिए उन्होंने रेत के शिवलिंग की स्थापना की. संयोग से हस्त नक्षत्र में भाद्रपद शुक्ल तृतीया का वह दिन था जब माता पार्वती ने शिवलिंग की स्थापना की. इस दिन निर्जला उपवास रखते हुए उन्होंने रात्रि में जागरण भी किया.

उनके कठोर तप से भगवान शिव प्रसन्न हुए माता पार्वती जी को उनकी मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दिया. अगले दिन अपनी सखी के साथ माता पार्वती ने व्रत का पारण किया और समस्त पूजा सामग्री को गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया. उधर माता पार्वती जी के पिता अपनी भगवान विष्णु जी से पार्वती जी के विवाह का वचन दिए जाने के पश्चात पुत्री के घर छोड़ देने से व्याकुल थे. पार्वती जी को ढूंढते हुए वे उस स्थान तक आ पंहुचे इसके पश्चात माता पार्वती ने उन्हें अपने घर छोड़ देने का कारण बताया और भगवान शिव से विवाह करने के अपने संकल्प और शिव द्वारा मिले वरदान के बारे में बताया. तब पिता महाराज हिमालय भगवान विष्णु से क्षमा मांगते हुए भगवान शिव से अपनी पुत्री के विवाह को राजी हुए.