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Hartalika Teej 2018: क्यों मनाई जाती है हरतालिका तीज, जानिए पूजन का शुभ मुहूर्त और विधि

भाद्रपद यानि भादों मास की शुक्ल तृतीया तिथि को हरतालिका तीज के रूप में मनाया जाता है. तृतीया तिथि को तीज भी कहा जाता है.

Ashutosh Gaur

भाद्रपद यानि भादों मास की शुक्ल तृतीया तिथि को हरतालिका तीज के रूप में मनाया जाता है. तृतीया तिथि को तीज भी कहा जाता है. हरतालिका तीज भादों में जिसका अपना विशेष महत्व होता है. दरअसल, मान्यता है कि इस दिन माता पार्वती जी की आराधना करने, व्रत रखने से सुहागिन स्त्रियों को अपने सुहाग की लंबी आयु और अविवाहित कन्याओं को मनोवांछित वर प्राप्त होने का वरदान मिलता है.

क्यों कहते हैं हरतालिका


यह दो शब्दों के मेल से बना माना जाता है हरत और आलिका. हरत का तात्पर्य हरण से लिया जाता है और आलिका सखियों को संबोंधित करता है. मान्यता है कि इस दिन माता पार्वती की सहेलियां उनका हरण कर उन्हें जंगल में ले गई थीं. जहां माता पार्वती ने भगवान शिव को वर रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था. हरतालिका तीज के पिछे एक मान्यता यह भी है कि जंगल में स्थित गुफा में जब माता भगवान शिव की कठोर आराधना कर रही थी तो उन्होंने रेत के शिवलिंग को स्थापित किया था. मान्यता है कि यह शिवलिंग माता पार्वती के जरिए हस्त नक्षत्र में भाद्रपद शुक्ल तृतीया तिथि को स्थापित किया था. इसी कारण इस दिन को हरतालिका तीज के रूप में मनाया जाता है.

हरतालिका तीज व्रत कथा

शिव जी ने माता पार्वती जी को इस व्रत के बारे में विस्तार पूर्वक समझाया था. मां गौरा जी ने सती जी के रूप में अवतार लेने के बाद माता पार्वती जी के रूप में हिमालय के घर में जन्म लिया था. बचपन से ही माता पार्वती जी शिव जी को वर के रूप में पाना चाहती थी और उसके लिए उन्होंने कठोर तप किया. 12 वर्षों तक निराहार रह करके तप किया. एक दिन नारद जी ने उन्हें आकर कहा कि पार्वती के कठोर तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु आपकी पुत्री से विवाह करना चाहते हैं. नारद मुनि की बात सुनकर महाराज हिमालय बहुत प्रसन्न हुए. उधर भगवान विष्णु के सामने जाकर नारद मुनि बोले कि महाराज हिमालय अपनी पुत्री पार्वती से आपका विवाह करवाना चाहते हैं. भगवान विष्णु ने भी इसकी अनुमति दे दी.

फिर माता पार्वती के पास जाकर नारद जी ने सूचना दी कि आपके पिता ने आपका विवाह भगवान विष्णु से तय कर दिया है. यह सुनकर पार्वती बहुत निराश हुई उन्होंने अपनी सखियों से अनुरोध कर उसे किसी एकांत गुप्त स्थान पर ले जाने को कहा. माता पार्वती की इच्छानुसार उनके पिता महाराज हिमालय की नजरों से बचाकर उनकी सखियां माता पार्वती को घने सुनसान जंगल में स्थित एक गुफा में छोड़ आईं. यहीं रहकर उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप शुरू किया जिसके लिए उन्होंने रेत के शिवलिंग की स्थापना की. संयोग से हस्त नक्षत्र में भाद्रपद शुक्ल तृतीया का वह दिन था जब माता पार्वती ने शिवलिंग की स्थापना की. इस दिन निर्जला उपवास रखते हुए उन्होंने रात्रि में जागरण भी किया.

उनके कठोर तप से भगवान शिव प्रसन्न हुए माता पार्वती जी को उनकी मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दिया. अगले दिन अपनी सखी के साथ माता पार्वती ने व्रत का पारण किया और समस्त पूजा सामग्री को गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया. उधर माता पार्वती जी के पिता अपनी भगवान विष्णु जी से पार्वती जी के विवाह का वचन दिए जाने के पश्चात पुत्री के घर छोड़ देने से व्याकुल थे. पार्वती जी को ढूंढते हुए वे उस स्थान तक आ पंहुचे इसके पश्चात माता पार्वती ने उन्हें अपने घर छोड़ देने का कारण बताया और भगवान शिव से विवाह करने के अपने संकल्प और शिव द्वारा मिले वरदान के बारे में बताया. तब पिता महाराज हिमालय भगवान विष्णु से क्षमा मांगते हुए भगवान शिव से अपनी पुत्री के विवाह को राजी हुए.

हरितालिका तीज मुहूर्त

हरितालिका तीज भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है. इसे गौरी तृतीया व्रत भी कहते हैं, यह इस वर्ष 12 सितम्बर दिन बुधवार को मनाई जाएगी.

पूजन मुहूर्त

प्रातः काल 6 :15 - 9:20 तक

हरितालिका पूजा विधि

- हरितालिका पूजन प्रातः काल और प्रदोष बेला में किया जाता है.

- हरितालिका पूजन के लिए मिट्टी अथवा बालू से शिव पार्वती जी और गणेश जी की मूर्ति बनाई जाती है.

- फुलेरा बनाकर उसे सजाएं. उसमें रंगोली डालकर चौकी रखें. उस पर स्वस्तिक बनाकर उसमें थाल के साथ केले का पत्ता रखकर उसमें भगवान स्थापित करें.

- फिर कलश बना कर उसको स्थापित करें.

- सर्वप्रथम कलश का पूजन करें. कलश को जल से स्नान कराकर के रोली चन्दन चांवल चढ़ाएं.

- कलश के पश्चात गणेश जी का पूजन करें.

- उसके पश्चात् शिव जी और माता पार्वती जी का पूजन कर पार्वती जी का श्रृंगार करें.

- उसके बाद हरितालिका की कथा कर उनकी आरती करें.

- रात में रतजगा किया जाता है.

- अगले दिन प्रातः काल पूजन करके पार्वती जी को सिन्दूर अर्पित करके सिन्दूर लें.

- उसके बाद उनको ककड़ी और हलवे का भोग लगा करके उपवास खोला जाता है.

- आखिर में सभी सामग्री को जल में प्रवाहित कर देते हैं.