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Chhath Puja 2017: जानिए छठ में हर एक दिन का महत्व

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से सप्तमी तक चलने वाला ये चार दिन का पर्व खाए नहाय के साथ शुरू होता है

FP Staff

बिहार और यूपी के कई इलाकों में मनाए जाने वाले छठ पर्व की शुरुआत हो चुकी है. छठ का त्‍योहार एक साल में दो बार मनाया जाता है. पहली बार ये त्योहार चैत्र महीने में और दूसरी बार कार्तिक महीने में आता है. भगवान सूर्य की उपासना के साथ छठ पर्व की शुरुआत होती है. हिंदू धर्म में किसी भी पर्व की शुरुआत स्नान के साथ ही होती है और ये पर्व भी स्नान यानी नहाय-खाय के साथ होता है. कार्तिक महीने में छठ मानने का विशेष महत्व है.


पहला दिन

छठ पर्व का पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी नहाय खाय के रूप में मनाया जाता है.नहाय-खाय के मौके घर की पूरी तरह से सफाई की जाती है. शुद्ध शाकाहारी भोजन बनाते हैं. इस दिन व्रती महिलाएं स्नान और पूजा-अर्चना के बाद कद्दू व चावल के बने प्रसाद को ग्रहण करती हैं.

दूसरा दिन

खरना, छठ पूरा का दूसरा दिन होता है. इस दिन खरना की विधि की जाती है. खरना का मतलब है पूरे दिन का व्रत. व्रती महिला या पुरुष इस दिन जल की एक बूंद तक ग्रहण नहीं करते हैं. खास बात ये है कि खरना का प्रसाद नए चूल्हे पर ही बनाया जाता है. शाम होने पर गन्ने का जूस या गुड़ के चावल या गुड़ की खीर का प्रसाद बना कर बांटा जाता है.

तीसरा दिन

छठ व्रत के तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ का प्रसाद बनाया जाता है. प्रसाद के रूप में ठेकुआ जिसे टिकरी भी कहते हैं. इसके अलावा चावल के आटे से बने लाडुआ बनाते हैं. इस दिन शाम का अर्घ्य दिया जाता है.आज पूरे दिन के उपवास के बाद शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. मान्‍यता के अनुसार शाम का अर्घ्य के बाद रात में छठी माता के गीत गाए जाते हैं और व्रत कथा भी सुनी जाती है.

चौथा दिन

कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उगते सूर्य को अ‌र्घ्य दिया जाता है. छठ पर्व के चौथे और अंतिम दिन सुबह का अर्घ्य दिया जाता है. चौथे  दिन सुबह सूर्य निकलने से पहले ही घाट पर पहुंचना होता है और उगते सूर्य को अर्घ्य देना होता है. अर्घ्य देने के बाद घाट पर छठ माता से संतान-रक्षा और घर परिवार के सुख शांति का वर मांगा जाता है.