शास्त्रों में सूर्यषष्ठी नाम से बताए गए चार दिनों तक चलने वाले छठ पूजा का काफी महत्व है. इस बार छठ का यह पर्व 11 नवंबर नहाय खाय से शुरू है. इसके बाद उगते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य देने तक यह पर्व मनाया जाता है. सूर्य उपासना का महापर्व छठ कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से सप्तमी की तिथि तक भगवान सूर्यदेव की अटल आस्था के रूप में मनाया जाता है.
इस पर्व में पहले दिन नहाय-खाय में काफी सफाई से बनाए गए चावल, चने की दाल और लौकी की सब्जी का भोजन व्रती के बाद प्रसाद के तौर लेने से इसकी शुरुआत होती है. दूसरे दिन लोहंडा या खरना में शाम की पूजा के बाद सबको खीर का प्रसाद मिलता है. अगले दिन शाम में डूबते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. फिर अगली सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद पूजा का समापन होता है. छठ पर्व के आखिर के दोनों दिन ही नदी, तालाब या किसी जल स्रोत में कमर तक पानी में जाकर सूर्य को अर्घ्य देना होता है. सबसे कठिन व्रत कहा जाने वाला 'दंड देना' भी इन दो दिन के दौरान ही किया जाता है. इसे करने वाले शाम और सुबह अपने घर से पूजा होने की जगह तक दंडवत प्रणाम करते हुए पहुंचते और जल स्रोत की परिक्रमा करते हैं.
छठ पर्व की तारीख
नहाय-खाए- 11 नवंबर
खरना (लोहंडा)- 12 नवंबर
सायंकालीन अर्घ्य- 13नवंबर
प्रात:कालीन अर्घ्य- 14 नवंबर