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ये सोशल मीडिया की जनता क्या जाने, क्यों भावुकता में 'बेरहम' हो जाते हैं कुमारस्‍वामी

वैसे भी कुमारस्‍वामी पहली बार भावुक नहीं हुए हैं. बीते नवंबर महीने में भी भावुकता में बहकर उन्‍होंने एक महिला किसान अनाप-शनाप बोल दिया

Shivaji Rai

कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी की भावुकता जग जाहिर है. कुमारस्‍वामी सूबे में बाढ़ के हालात से भले ही सहज उबर जाते हैं पर भावुकता में अक्‍सर बह जाते हैं. हालिया घटनाक्रम में भावुकता में बहकर कुमारस्‍वामी ने एक हत्‍या के आरोपियों को बेरहमी से मारने का आदेश तक दे डाला. अब 'रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय' के सिद्धांत से अंजान कुमारस्‍वामी को क्‍या पता था कि भावुकता ही उनको पानी और भैंस वाली स्थिति में ला देगी. और उससे उबरने के लिए माफी तक मांगनी पड़ेगी. सोशल मीडिया वाली जनता की बात क्‍या कहें, वो कल भी भावुकता को समझने में नाकाम रही और आज भी. चार सालों से पीएम मोदी की इतनी ‘मन की बात’ सुनने के बाद भी, नेताओं के मन की बातें समझ आनी अब भी शुरू नहीं हुई हैं. लोग अब भी शब्दों पर ही अटककर और लटककर रह जाते हैं.

कनार्टक की कुर्सी अपने मुख्यमंत्री को लात मारने के लिए कितनी प्रसिद्ध है, ये सभी जानते हैं फिर भी सोशल मीडिया के शूरवीर कुमार की बात को सहजता से नहीं लेते, तूल देते रहते हैं. पिछले दिनों ही जब कुमारस्‍वामी ने गठबंधन को लेकर रोते हुए अपना दर्द उड़ेला तो सोशल मीडिया पर मजाक उड़ने लगा. लोग ठहाका मारने लगे. वो कहते रहे कि विषकंठ बनकर गठबंधन का जहर पी रहा हूं. लेकिन लोग संवेदना जताने की जगह चुटकी और मुस्‍कान बिखेरते रहे.


कुमारस्‍वामी के दर्द से आहत अवधू गुरु कहते हैं कि माबदौलत क्‍या वक्‍त आ गया है कि सूबे के शहंशाह को भी अपनी सोच को सही साबित करने के लिये मशविरा करना पड़ेगा? भावुकता को जाहिर करने से पहले व्‍याकरण पर कसना पड़ेगा. अब कुमारस्‍वामी फिराक गोरखपुरी तो नहीं हैं जो गाली को भी गजल का रूप दे दें. खुरदरे मन के भाव को भी रसीली जुबान से पेश करें.

दुनिया बदल रही है. ग्‍लोबलाइजेशन के दौर में धमकी और गाली जहालत की निशानी नहीं रही. दुनिया के कई देशों में गाली देने वाले को जाहिल, गंवार, असभ्य नहीं कहा जाता. कनाडा के कालगरी में तो गाली को इलाज के तौर पर शुरू किया गया है. इसे 'रेज योगा' नाम दिया गया है.

'रेज योगा' यानी गुस्से वाला योग. प्राचीन शैली में योग के दौरान लोग मन और तन को स्थिर रखने का प्रयत्‍न करते हैं. लेकिन 'रेज योगा' इसके ठीक उलट है. इसमें भावुकता को आजाद छोड़ दिया जाता है. यानी योगासन के बीच चीखने-चिल्लाने और गालियां देने की भरपूर आजादी होती है. 'रेज योगा' को लेकर लिंडसे इस्टेस की मान्‍यता है.

गालियों से तनाव दूर करने का नुस्खा सबसे नया और सृजनात्‍मक है. गालियों का स्‍वघोषित धर्मसंसद 'बिग बॉस' में भी इस मुद्दे पर सर्वसम्‍मति है कि गालियां देने से दर्द बर्दाश्त करने की कूवत बढ़ जाती है. गालियां सत्‍ताधारी के लिए उत्‍प्रेरक का काम करती हैं और शासनिक-प्रशासनिक स्‍तर पर संबंध को बेहतर बनाती हैं.

कुमारस्‍वामी की भावु‍कता भरी धमकी को भले ही संवैधानिक मान्यता न मिली हो, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि गाली-गलौज, धमकाना, गिरना-गिराना सियासत के सबसे ज्यादा प्रचलित कार्यप्रणालियों में से हैं. पंचायत से लेकर राजनीति के राष्ट्रीय मैदान तक इसे बड़े चाव से आजमाया जाता है. आखिर राजनीति में रहकर कोई संन्यासी होने का ढोंग भला कब तक कर सकता है. और हमारे यहां तो संन्यासी भी खुलकर राजनीति कर रहे हैं.

कुमारस्‍वामी ही क्‍या दुनिया के दूसरे देशों के भी कई नेता सार्वजनिक रूप से अपनी भावनाओं पर काबू रख पाने में नाकाम नजर आए हैं. ओबामा से लेकर ओवैसी तक भावनाओं में बहकर क्‍या-क्‍या नहीं कह गए. फिर कुमारस्‍वामी पर हंगामा बरपाना ठीक नहीं. क्‍योंकि रस्‍सी जल गई वाली कहावत कुमारस्‍वामी पर लागू नहीं होती. अभी न उनकी रस्‍सी जली है और न ही गठबंधन की गांठ कमजोर हुई है. फिर उनके गुस्‍से की आग में जलन होना तो स्‍वाभाविक है.

एच डी कुमारस्वामी

वैसे भी कुमारस्‍वामी पहली बार भावुक नहीं हुए हैं. बीते नवंबर महीने में भी भावुकता में बहकर उन्‍होंने एक महिला किसान अनाप-शनाप बोल दिया. जुबान चाहे भावुकता में फिसली हो या वैमनस्‍यता में कुमारस्‍वामी का दर्द खबरों में तो आया. मशहूर शायर अदम गोंडवी साहब तो यहां तक कह गए हैं.... 'तलब-ए-शोहरत है कैसे भी मिले मिलती रहे,. आए दिन अखबार में नाम और तस्वीर छपती रहे....!!