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मराठा मोर्चा में डब्बेवालों के शामिल होने से 2 लाख लोगों को नहीं मिला लंच

FP Staff

मुंबई में आरक्षण की मांग को लेकर 9 अगस्त को ऐतिहासिक मराठा मोर्चा निकला. आयोजकों का दावा है कि इस मोर्चे में लाखों मराठा समाज के लोग शामिल हुए. इस मराठा मोर्चा में शामिल होने का ऐलान करते हुए डब्बेवाले एक दिन की छुट्टी पर चले गए.

डब्बेवालों के इस ऐलान से हजारों नौकरीपेशा मुंबईकर परेशान रहे क्योंकि इन डब्बेवालों की छुट्टी की वजह से उन्हें भूखे रहना पड़ा. डब्बेवालों के छुट्टी पर जाने से उन्हें हर रोज मिलने वाला घर का खाना बुधवार के दिन नहीं मिल सका. इसकी वजह से ज्यादातर मुंबईकरों को भूखे रहना पड़ा या फिर बाहर का खाना खाना पड़ा जो काफी महंगा होता है.


कौन हैं ये डब्बेवाले?

रोजाना घर से दफ्तर जाने वाले नौकरीपेशा लोगों को खाना पहुंचाने वाले लोगों को डब्बेवाला कहते हैं. सुबह या दोपहर के वक्त मुंबई की सड़कों, रेलवे स्टेशन, बस स्टॉप या साइकिल पर सवार इन डब्बेवालों को आप देख सकते हैं. सफेद ड्रेस, सिर पर गांधी टोपी और हाथों में डब्बा यही डब्बेवालों की पहचान हैं. मुंबई में रोजाना 5 हजार डब्बेवाले 2 लाख मुंबईकरों को घर का बना हुआ खाना पहुंचाते हैं.

डब्बेवालों को क्यों कहतें हैं मैनेजमेंट गुरु?

पूरी दुनिया में डब्बेवाले मैनेजमेंट गुरु के नाम से मशहूर हैं. मुंबई में लोकल ट्रेन के तीन रूट हैं- सेंट्रल, हार्बर और वेस्टर्न. इसके अलावा मेट्रो और बेस्ट बस सेवा से गुजरते हुए एक डब्बा अपने मालिक तक पहुंचता हैं. इन डब्बों पर किसी का नाम नहीं लिखा होता. होता है तो सिर्फ एक कलर कोड जो सिर्फ डब्बेवाले जानते हैं. ये डब्बेवाले बिना किसी नाम के सिर्फ एक कलर कोड के आधार पर नौकरीपेशा लोगों तक डब्बा पहुंचाते हैं.

कैसे शुरू हुई डब्बेवाली सर्विस?

1890 में पहली बार डब्बेवाला सर्विस की शुरुआत हुई थी. हुआ ये कि एक पारसी बैंकर को टिफिन की जरूरत आन पड़ी तब उसने पहली बार एक शख्स को खाने का डिब्बा लाने के लिये कहा. खाना वक्त पर आ गया. अन्य लोगों को ये आइडिया पसंद आया. उन लोगों ने भी ये सेवा लेनी शुरू की. शुरुआत में ये महज निजी सेवा थी लेकिन मांग बढ़ने के साथ ही डब्बेवालों की तादाद बढ़ती गई और आज 127 साल बाद भी डब्बेवाले मुंबईकरों को खाना पहुंचा रहें हैं.

(साभार न्यूज़ 18)