साल 2017 का पितृपक्ष छह सितंबर से शुरू है. तिथियों के घटने बढ़ने की वजह से इसबार पितृपक्ष 15 का न होकर सिर्फ 14 दिन का है मतलब ये कि एक दिन की हानि है. मान्यता है कि पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म और तर्पण करने से पितरों को शांति और मुक्ति मिलती है लेकिन कुछ बातों का ध्यान रखने की भी जरूरत होती है. हम इसके बारे में विस्तार से बताते हैं.
पितृपक्ष कब शुरू हो रहा है, इसका क्या महत्व है और किसे करना होता है, किसके लिए किया जाता है, और कैसे जैसी कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना आवश्यक है.
पितृ पक्ष भाद्र पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन महिने के अमावस्या पर खत्म होता है. शास्त्रों में मनुष्य पर तीन तरह के ऋण (कर्ज) होते हैं. (पितृ ऋण, देव ऋण और ऋषि ऋण) प्रमुख माने गए हैं. जिसमें पितृ ऋण सबसे ऊपर माना जाता है.
किसे करना चाहिए
श्राद्ध मुख्य रूप से पुत्र, पोता, भतीजा या भांजा करते हैं. जिनके घर में कोई पुरुष सदस्य नहीं है, उनमें महिलाएं भी श्राद्ध कर सकती हैं.
श्राद्ध तीन पीढ़ियों तक होता है. दरअसल, देवतुल्य स्थिति में तीन पीढ़ियों के पूर्वज गिने जाते हैं. पिता को वासु, दादा को रूद्र और परदादा को आदित्य के समान दर्जा दिया गया है.
कैसे करें
जल में दूध, काले तिल, लाल सफेद फूल और कुश लेनी है. फिर दक्षिण दिशा में मुंह करके ‘ओम पितृदेवताभ्यो नमः’ मंत्र का उच्चारण करें और सूर्य को जल चढ़ाएं. यम का प्रतीक माने जाने वाले कौए, कुत्ते और गाय को भोजन कराएं.
इन बातों का ध्यान रखना बहुत जरुरी है
पितृ पक्ष के दौरान जो पुरुष अपने पितरों को जल अर्पण कर श्राद्ध, पिंडदान आदि देते हैं, उन्हें जब तक पितृ पक्ष चल रहा है तब तक शराब और मांस को भी हाथ नहीं लगाना चाहिए.
जब भी पितरों को जल अर्पण कर रहे हों तो उसके साथ भोजन के साथ काले तिल का प्रयोग जरूर करें. इसके साथ ही पंडित को साफ आसन पर बैठाकर भोजन परोसें. इस दौरान ध्यान रहे कि मौन होकर ही खाना परोसें और कुर्सी का प्रयोग न करें.
इसको करने की वजह
जल, जन्म से मोक्ष तक साथ देता है. काले तिल देवान्न काहे जाते हैं जो पितरों की आत्मा को तृप्ति देते हैं. कुश मोक्ष का प्रतिक है, क्योंकि इसकी शिरा पर ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और अंत में शंकर का वास है.
सबसे अहम् बातें हैं कि किस दिन किनका श्राद्ध करना जरूरी है.
पूर्णिमा: जिन पूर्वजों की मृत्यु साल की किसी पूर्णिमा को हुई हो.
प्रतिपदा: नाना-नानी
पंचमी: जिनकी मृत्यु अविवाहित रहते हुए हुई है.
नवमी: माँ और अन्य महिलाएं.
एकादशी और द्वादशी: पिता, पितामह
अमावस्या: ज्ञात-अज्ञात सभी पितरों का
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